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राजस्थान कबड्डी टीम की थीं कप्तान, आज खेतों में काम करने को मजबूर 'मांगी' - kabaddi player maangi chaudhary

राजस्थान की कबड्डी प्लेयर मांगी चौधरी को परिवार के आर्थिक हालातों और सरकारी उदासीनता के चलते खेल छोड़ कर घर और खेती-बाड़ी के काम करने पर मजबूर होना पड़ रहा है. मांगी दो बार राजस्थान की महिला कबड्डी टीम का नेतृत्व कर चुकी हैं. मांगी का सपना है कि वह इंटरनेशनल लेवल पर भारत के लिए खेले. पढ़ें मांगी चौधरी की कहानी...

खेतों में काम करने को मजबूर 2 बार राजस्थान कबड्डी टीम की कप्तानी कर चुकी मांगी चौधरी
खेतों में काम करने को मजबूर 2 बार राजस्थान कबड्डी टीम की कप्तानी कर चुकी मांगी चौधरी
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Published : Dec 15, 2020, 3:39 PM IST

Updated : Dec 15, 2020, 4:00 PM IST

बाड़मेर : राजस्थान के रेतीले धोरों में ऐसी कम ही मिसालें देखने को मिलती हैं, जहां बेटियां राज्य ही नहीं, राष्ट्रीय स्तर पर अपना और अपने परिवार का नाम रोशन कर देती हैं. लेकिन जब उन्हें सरकार मदद नहीं करती तो उनका क्या हाल होता है, ऐसे ही दास्तान लिए आर्थिक संकटों से जूझ रही है, दो बार राजस्थान महिला कबड्डी टीम का नेतृत्व करने वाली मांगी चौधरी.

कबड्डी प्लेयर खेतों में काम करने पर मजबूर

कबड्डी पैशन है मांगी का
बाड़मेर के सोडियार गांव की मांगी चौधरी शुरू से ही खेलकूद में अव्वल रहीं. मांगी चौधरी ने पहली कक्षा से ही कबड्डी खेलना शुरू कर दिया था. बचपन से ही कबड्डी के दांव पेंचों में महारथ हासिल करने वाली मांगी चौधरी ने बारहवीं कक्षा तक पढ़ाई के साथ-साथ अपने कबड्डी के जुनून को भी अलग पहचान दी. वह दो बार राजस्थान की महिला कबड्डी टीम का नेतृत्व कर चुकी हैं. मगर अब आलम यह है कि सरकार की उदासीनता के चलते मांगी इन दिनों अपने घर में पशुओं को चारा खिलाने और खेती-बाड़ी तक सिमट रह गई है.

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पिता की खराब तबीयत के चलते खेतों में काम करने को मजबूर मांगी

मांगी चौधरी ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि वे कई जिलों और राज्यों में कबड्डी खेल चुकी हैं. उन्होंने बताया कि मेरी इच्छा है कि मैं बाड़मेर की कबड्डी कोच बनूं. मगर सरकार से प्रोत्साहन नहीं मिला और मुझे घर के काम-काज में लगना पड़ा. चौधरी ने अभावों और तमाम तरह के मुश्किल हालातों में भी हिम्मत नहीं हारी. पिता की तबीयत खराब हो गई तो मांगी को घर के साथ-साथ खेती बाड़ी का काम भी देखना पड़ा. जिसके चलते कभी कबड्डी मैदान में प्रतिद्वंदियों को धूल चटाने वाली मांगी सरकारी उदासीनता के कारण गुमनामी और मजबूरियों के अंधेरे में चली गई.

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मांगी चौधरी ने 2 बार किया है राजस्थान का नेतृत्व

मांगी चौधरी को 2010 में राजस्थान कबड्डी टीम का नेतृत्व करने वाली पहली छात्रा का गौरव हासिल है. इसी तरह 2012 में फिर राजस्थान टीम का नेतृत्व करने का मौका मिला. मांगी ने 10 से अधिक बार अपने जिले की कबड्डी टीम में नेतृत्व किया और अपने जुनून को उंचाइयों तक लेकर गई. लेकिन परिवार के आर्थिक हालातों ने उसे तोड़कर रख दिया. जिससे मांगी का वो मैदान भी छूट गया, जिसने उन्हें एक पहचान दी थी. आज मांगी अपने खेल से दूर होकर खेतों में काम करने को मजबूर है.

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इंटरनेशनल खेलने का है मांगी का सपना

पढ़ें: संयम लोढ़ा ने लिखा गहलोत को पत्र, कि ये मांग...

मांगी का सपना है कि वह इंटरनेशनल लेवल पर भारत के लिए खेलें, लेकिन परिवार के हालात के चलते और गाइडेंस के अभाव में उसे अपने सपनों का गला घोंटना पड़ रहा है. मांगी कहती हैं कि उसके अंदर अभी भी कबड्डी के मैदान में वापस लौटने का जुनून है, लेकिन आजादी के इतनों सालों बाद भी अपने खिलाड़ियों को सपोर्ट करने में सरकारें उदासीन रवैया अपनाती हैं. जिसके चलते मांगी जैसा टैलेंट उस जगह नहीं पहुंच पाता जहां उसे होना चाहिए.

बाड़मेर : राजस्थान के रेतीले धोरों में ऐसी कम ही मिसालें देखने को मिलती हैं, जहां बेटियां राज्य ही नहीं, राष्ट्रीय स्तर पर अपना और अपने परिवार का नाम रोशन कर देती हैं. लेकिन जब उन्हें सरकार मदद नहीं करती तो उनका क्या हाल होता है, ऐसे ही दास्तान लिए आर्थिक संकटों से जूझ रही है, दो बार राजस्थान महिला कबड्डी टीम का नेतृत्व करने वाली मांगी चौधरी.

कबड्डी प्लेयर खेतों में काम करने पर मजबूर

कबड्डी पैशन है मांगी का
बाड़मेर के सोडियार गांव की मांगी चौधरी शुरू से ही खेलकूद में अव्वल रहीं. मांगी चौधरी ने पहली कक्षा से ही कबड्डी खेलना शुरू कर दिया था. बचपन से ही कबड्डी के दांव पेंचों में महारथ हासिल करने वाली मांगी चौधरी ने बारहवीं कक्षा तक पढ़ाई के साथ-साथ अपने कबड्डी के जुनून को भी अलग पहचान दी. वह दो बार राजस्थान की महिला कबड्डी टीम का नेतृत्व कर चुकी हैं. मगर अब आलम यह है कि सरकार की उदासीनता के चलते मांगी इन दिनों अपने घर में पशुओं को चारा खिलाने और खेती-बाड़ी तक सिमट रह गई है.

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पिता की खराब तबीयत के चलते खेतों में काम करने को मजबूर मांगी

मांगी चौधरी ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि वे कई जिलों और राज्यों में कबड्डी खेल चुकी हैं. उन्होंने बताया कि मेरी इच्छा है कि मैं बाड़मेर की कबड्डी कोच बनूं. मगर सरकार से प्रोत्साहन नहीं मिला और मुझे घर के काम-काज में लगना पड़ा. चौधरी ने अभावों और तमाम तरह के मुश्किल हालातों में भी हिम्मत नहीं हारी. पिता की तबीयत खराब हो गई तो मांगी को घर के साथ-साथ खेती बाड़ी का काम भी देखना पड़ा. जिसके चलते कभी कबड्डी मैदान में प्रतिद्वंदियों को धूल चटाने वाली मांगी सरकारी उदासीनता के कारण गुमनामी और मजबूरियों के अंधेरे में चली गई.

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मांगी चौधरी ने 2 बार किया है राजस्थान का नेतृत्व

मांगी चौधरी को 2010 में राजस्थान कबड्डी टीम का नेतृत्व करने वाली पहली छात्रा का गौरव हासिल है. इसी तरह 2012 में फिर राजस्थान टीम का नेतृत्व करने का मौका मिला. मांगी ने 10 से अधिक बार अपने जिले की कबड्डी टीम में नेतृत्व किया और अपने जुनून को उंचाइयों तक लेकर गई. लेकिन परिवार के आर्थिक हालातों ने उसे तोड़कर रख दिया. जिससे मांगी का वो मैदान भी छूट गया, जिसने उन्हें एक पहचान दी थी. आज मांगी अपने खेल से दूर होकर खेतों में काम करने को मजबूर है.

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इंटरनेशनल खेलने का है मांगी का सपना

पढ़ें: संयम लोढ़ा ने लिखा गहलोत को पत्र, कि ये मांग...

मांगी का सपना है कि वह इंटरनेशनल लेवल पर भारत के लिए खेलें, लेकिन परिवार के हालात के चलते और गाइडेंस के अभाव में उसे अपने सपनों का गला घोंटना पड़ रहा है. मांगी कहती हैं कि उसके अंदर अभी भी कबड्डी के मैदान में वापस लौटने का जुनून है, लेकिन आजादी के इतनों सालों बाद भी अपने खिलाड़ियों को सपोर्ट करने में सरकारें उदासीन रवैया अपनाती हैं. जिसके चलते मांगी जैसा टैलेंट उस जगह नहीं पहुंच पाता जहां उसे होना चाहिए.

Last Updated : Dec 15, 2020, 4:00 PM IST
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