नई दिल्ली : कांग्रेस ने बुधवार को राफेल लड़ाकू विमानों के पहले जत्थे के भारत आने का स्वागत किया और साथ ही यह भी कहा कि हर देशभक्त को यह पूछना चाहिए कि 526 करोड़ रुपये का विमान 1670 करोड़ रुपये में क्यों खरीदा गया.
पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट किया, राफेल का भारत में स्वागत ! वायुसेना के जाबांज लड़ाकों को बधाई.
उन्होंने कहा, आज हर देशभक्त यह ज़रूर पूछे कि 526 करोड़ रुपये का एक राफेल अब 1670 करोड़ रुपये में क्यों ? 126 राफेल की बजाय 36 राफेल ही क्यों ? मेक इन इंडिया के बजाय मेक इन फ्रांस क्यों ? 5 साल की देरी क्यों ?
भारतीय वायु सेना के लिए ऐतिहासिक क्षणों के बीच बुधवार को राफेल लड़ाकू विमानों का पहला जत्था भारत पहुंच गया। फ्रांस से खरीदे गए ये राफेल लड़ाकू विमान अंबाला एयरबेस पर उतरे.
राजग सरकार ने 23 सितंबर, 2016 को फ्रांस की एरोस्पेस कंपनी दसाल्ट एविएशन के साथ 36 लड़ाकू विमान खरीदने के लिए 59,000 करोड़ रुपये का सौदा किया था.
गौरतलब है कि इससे पहले तत्कालीन संप्रग सरकार करीब सात साल तक भारतीय वायुसेना के लिए 126 मध्य बहुउद्देशीय लड़ाकू विमानों के खरीद की कोशिश करती रही थी, लेकिन वह सौदा सफल नहीं हो पाया था.
दसाल्ट एविएशन के साथ आनन-फानन में राफेल विमानों की खरीद का यह सौदा भारतीय वायुसेना की युद्धक क्षमता में अहम सुधार के लिए किया गया था, क्योंकि वायुसेना के पास लड़ाकू स्क्वाड्रन की स्वीकृत संख्या कम से कम 42 के मुकाबले फिलहाल 31 लड़ाकू स्क्वाड्रन हैं.
अंबाला पहुंचे पांच राफेल विमानों में से तीन राफेल एक सीट वाले जबकि दो राफेल दो सीट वाले लड़ाकू विमान हैं. इन्हें भारतीय वायुसेना के अंबाला स्थित स्क्वाड्रन 17 में शामिल किया जाएगा जिसे‘गोल्डन एरोज’ के नाम से भी जाना जाता है.
दो सीट वाले विमान प्रशिक्षण विमान हैं तथा एक सीट वाले विमानों का इस्तेमाल युद्धक अभियानों में किया जाता है.
सरकार ने सोमवार को एक बयान में कहा था कि भारत को 10 राफेल विमानों की आपूर्ति हुई है, जिनमें से पांच प्रशिक्षण मिशन के लिए फ्रांस में ही रुक रहे हैं. सरकार ने कहा कि खरीदे गए सभी 36 राफेल विमानों की आपूर्ति 2021 के अंत तक भारत को हो जाएगी.
राफेल विमानों को आसमान में उनकी बेहतरीन क्षमता और लक्ष्य पर सटीक निशाना साधने के लिए जाना जाता है. करीब 23 साल पहले रूस से सुखोई विमानों की खरीद के बाद भारत ने पहली बार लड़ाकू विमानों की इतनी बड़ी खेप खरीदी है.
इन विमानों को अलग-अलग किस्म के और अलग-अलग मारक क्षमता वाले अस्त्रों से लैस किया जा सकता है. राफेल लड़ाकू विमानों को जिन मुख्य अस्त्रों से लैस किया जाएगा, उनमें यूरोपीय मिसाइल निर्माता एमबीडीए की, दृष्टि सीमा से परे लक्ष्यों पर भी हवा से हवा में वार करने में सक्षम मेटयोर मिसाइल, स्कैल्प क्रूज मिसाइल और मिका हथियार प्रणाली शामिल हैं.
भारतीय वायुसेना राफेल लड़ाकू विमानों का साथ देने के लिए मध्यम दूरी की मारक क्षमता वाली, हवा से जमीन पर वार करने में सक्षम अत्याधुनिक हथियार प्रणाली 'हैमर' भी खरीद रही है.
हैमर (हाइली एजाइल मॉड्यूलर म्यूनिशन एक्स्टेंडेड रेंज) लंबी दूरी की मारक क्षमता वाली क्रूज मिसाइल है, जिसका निशाना अचूक है और इसे फ्रांस की रक्षा कंपनी सैफरॉन ने विकसित किया है. इस मिसाइल को मूल रूप से फ्रांस की वायुसेना और नौसेना के लिए डिजाइन किया गया और बनाया गया था.
मेटयोर हवा से हवा में मारक क्षमता रखने वाली बीवीआर मिसाइलों का अत्याधुनिक संस्करण है और इसे हवा में होने वाले युद्ध के लिए विशेष रूप से डिजाइन किया गया है. इसे एमबीडीए ने ब्रिटेन, जर्मनी, इटली, फ्रांस, स्पेन और स्वीडन के समक्ष मौजूद संयुक्त खतरों से निपटने के लिए डिजाइन किया है.
उच्चतम न्यायालय ने 59 हजार करोड़ रुपये में 36 लड़ाकू विमानों की खरीद के मामले में अदालत की निगरानी में जांच की मांग करने वाली जनहित याचिकाओं को दिसंबर 2018 में खारिज कर दिया और कहा था कि उसे इसमें कुछ गलत नजर नहीं आया. हालांकि इसके बाद भी राजनीतिक दोषारोपण का दौर जारी रहा. तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में, राफेल सौदे में रिश्वत के आरोप लगाये थे और इसे चुनावी मुद्दा बनाया था.
इस बीच, कांग्रेस ने बुधवार को राफेल लड़ाकू विमानों की पहली खेप के भारत आने का स्वागत किया और साथ ही इसमें देरी और इसकी कीमत के मुद्दे पर सवालों को फिर उठाया.
लड़ाकू विमानों को औपचारिक रूप से वायु सेना में शामिल करने के लिए अगस्त के मध्य में समारोह आयोजित किया जा सकता है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और शीर्ष सैन्य पदाधिकारी इसमें भाग ले सकते हैं.
वायु सेना को पहला राफेल लड़ाकू विमान पिछले साल अक्टूबर में रक्षा मंत्री की फ्रांस यात्रा के दौरान सौंपा गया था.
राफेल विमानों का पहला बेड़ा अंबाला वायुसेना केंद्र पर रहेगा, वहीं दूसरा बेड़ा पश्चिम बंगाल के हासिमारा बेस पर तैनात रहेगा.
अंबाला एयरबेस को देश में भारतीय वायुसेना के सामरिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण वायुसेना स्टेशनों में से एक माना जाता है क्योंकि यहां से भारत-पाकिस्तान की सीमा करीब 220 किलोमीटर की दूरी पर है.
अंबाला प्रशासन ने राफेल विमानों के पहुंचने से पहले अंबाला एयरबेस के आसपास निषेधाज्ञा लगा दी थी और तस्वीरें लेने तथा वीडियो बनाने पर प्रतिबंध लगाया था. एयरबेस के आसपास तीन किलोमीटर के क्षेत्र में बड़ी संख्या में पुलिस बल को तैनात किया गया था.
वायुसेना ने अंबाला और हासीमारा एयरबेस पर शेल्टर, हैंगर और मरम्मत/देखभाल संबंधी अवसंरचना विकसित करने में करीब 400 करोड़ रुपये निवेश/खर्च किए हैं.
भारत ने जो 36 राफेल विमान खरीदे हैं, उनमें से 30 लड़ाकू विमान और छह प्रशिक्षण विमान हैं. प्रशिक्षु विमानों में दो सीटें हैं और उनमें लड़ाकू विमानों के लगभग सभी फीचर मौजूद हैं.