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गुणवत्तापूर्ण शिक्षण: जावड़ेकर ने दी स्टार्स परियोजना को मंजूरी

केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने देश में स्कूली शिक्षा को मजबूत करने के लिए स्टार्स परियोजना को मंजूरी दी है. उन्होंने कहा कि इस परियोजना का उद्देश्य शिक्षा प्रणाली में रोजगार पैदा करना है.

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Published : Oct 17, 2020, 8:14 PM IST

Quality teaching right
केंद्रीय मंत्री जावड़ेकर ने दी परियोजना को मंजूरी

नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने विश्व बैंक से आंशिक वित्तीय सहायता के साथ 'स्टार्स' (राज्यों के लिए शिक्षण-अधिगम और परिणामों का सुदृढ़ीकरण) नाम की एक नई परियोजना को मंजूरी दी है. जिसका उद्देश्य भविष्य में सहायक के रूप में गुणवत्तापूर्ण शिक्षण को तैयार करके स्कूली शिक्षा को मजबूत करना है. बता दें, केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इससे पहले फरवरी 2019 में भी इसी नाम के दूसरे ‘स्टार्स’ कार्यक्रम को मंजूरी दी थी. यह योजना करीब 250 करोड़ लागत की और जिसका उद्देश्य विज्ञान परियोजनाओं को अनुसंधान के लिए प्रोत्साहन देना था.

केंद्रीय मंत्री जावड़ेकर ने बताया परियोजना का उद्देश्य

केंद्रीय मंत्री जावड़ेकर ने कहा कि नई स्टार्स परियोजना का उद्देश्य शिक्षा प्रणाली में रोज़गार के अवसर पैदा करना, बोर्ड परीक्षाओं में सुधार और शिक्षक-प्रशिक्षण सुविधाओं को समृद्ध करना है. उन्होंने कहा कि 5,718 करोड़ रुपये की कुल अनुमानित लागत में से 3,700 करोड़ रुपये की लागत का खर्च विश्व बैंक वहन करेगी. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, केरल और ओडिशा राज्यों में इस परियोजना को लागू करेगी.

कई राज्यों में एडीबी कर रहा वित्तपोषित

एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) स्कूल शिक्षा में गुणवत्ता मानकों को स्थापित करने के उद्देश्य से गुजरात, तमिलनाडु, उत्तराखंड, झारखंड और असम जैसे राज्यों में पहले से ही इसी तरह की स्टार्स परियोजना का वित्तपोषण कर रहा है. हालांकि केंद्रीय मंत्री कह रहे हैं कि शगुन और देवेशा जैसे ऑनलाइन पोर्टलों की मदद से राज्यों को अपने साथी राज्यों के अनुभवों से लाभ मिल सकता है. मगर सवाल उठाना लाज़मी है कि क्या यह राष्ट्रीय स्तर पर स्कूली शिक्षा को मजबूत करने का एक व्यवहार्य तरीका है? जैसा कि केंद्रीय मंत्री ने कुछ समय पहले बताया था कि देश भर में 11 लाख शिक्षकों को शिक्षण में उचित प्रशिक्षण की कमी है. बिहार और पश्चिम बंगाल में, प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल के एक तिहाई शिक्षकों में आवश्यक योग्यता की कमी देखी गई है. ऐसे हालात में, क्या नई परियोजनाएं, जो कुछ ही राज्यों तक सीमित हैं, देश भर में स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार ला सकती हैं?

पढ़ें: निर्भया फंड : दावों और सच्चाई के बीच कितने फासले, एक नजर

कोविड महामारी ने कराया 30 लाख करोड़ का नुकसान

विश्व बैंक ने हाल ही में अनुमान लगाया था कि कोविड आपदा के कारण भारत में शैक्षणिक संस्थानों के बंद होने प्रति वर्ष में 30 लाख करोड़ रुपये तक का नुकसान होगा और देशभर के छात्रों को सीखने के अवसरों का गुणात्मक और मात्रात्मक नुकसान उठाना पड़ेगा. यदि देश कोविड आपदा की सूरत में एक ही वर्ष में इतना नुकसान उठाने जा रहा है, तो योग्य और प्रशिक्षित शिक्षण कर्मचारियों के अभाव और छात्रों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के नुकसान के कारण देश में वर्षों से हो रहे बड़े नुकसान का अनुमान कैसे लगाया जाए? यद्यपि कोठारी आयोग, चट्टोपाध्याय समिति और यशपाल समिति ने बताया है कि देश में शिक्षक की शिक्षा देने की प्रणाली कैसे विकसित होनी चाहिए, बावजूद इसके दशकों से सरकारों की प्रतिक्रिया उत्साहजनक नहीं है.

शिक्षा के अधिकार कानून में किया गया था संशोधन

स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने के लिए, तीन साल पहले शिक्षा का अधिकार कानून में संशोधन किया गया था, जिसमें स्कूल के शिक्षकों को अनिवार्य प्रशिक्षण दिया जाना था, लेकिन तब भी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है. 'शिक्षा' नामक विशेषज्ञों के समर्थन के साथ देशभर में 42 लाख स्कूल शिक्षकों के शिक्षण कौशल में सुधार के लिए पिछले साल परिकल्पित दो स्तरीय प्रशिक्षण कार्यक्रम अभी शुरू तक नहीं किया गया है. केंद्र को विदेशी देशों के अनुभवों से सीखना चाहिए जो उच्च शैक्षणिक मानकों को प्राप्त करने में उत्कृष्टता के केंद्र के रूप में उभर रहे हैं और युद्ध स्तर पर व्यापक सुधारात्मक कार्रवाई के लिए प्रतिबद्ध हैं.

पढ़ें: पराली की समस्या से निजात दिलाएगी पंतनगर कृषि वैज्ञानिकों की यह नई मशीन

सर्वोच्च संस्था की स्थापना करना जरूरी

दक्षिण कोरिया, फिनलैंड, सिंगापुर और हांगकांग प्रतिभा की पहचान करते हुए उन्हें निरंतर प्रशिक्षण और आकर्षक वेतन देकर शिक्षण पेशे में आमंत्रित कर रहे हैं और इस तरह से वे शिक्षा में रचनात्मक नवाचारों की राह पर अग्रसर हैं. कुशल शिक्षक और समर्पित शिक्षाविद् ही हैं जो किसी भी देश में सर्वश्रेष्ठ इंजीनियरों, डॉक्टरों, वकीलों और अन्य पेशेवरों को तैयार कर सकते हैं. शिक्षकों की शिक्षा के उच्चतम स्तर को प्राप्त करने के लिए देश में स्कूली शिक्षा प्रणाली में सुधार लाने के लिए आईआईटी और आईआईएम के साथ समान स्तर पर स्वायत्तता और स्वतंत्रता के साथ एक सर्वोच्च संस्था की स्थापना की जानी चाहिए.

नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने विश्व बैंक से आंशिक वित्तीय सहायता के साथ 'स्टार्स' (राज्यों के लिए शिक्षण-अधिगम और परिणामों का सुदृढ़ीकरण) नाम की एक नई परियोजना को मंजूरी दी है. जिसका उद्देश्य भविष्य में सहायक के रूप में गुणवत्तापूर्ण शिक्षण को तैयार करके स्कूली शिक्षा को मजबूत करना है. बता दें, केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इससे पहले फरवरी 2019 में भी इसी नाम के दूसरे ‘स्टार्स’ कार्यक्रम को मंजूरी दी थी. यह योजना करीब 250 करोड़ लागत की और जिसका उद्देश्य विज्ञान परियोजनाओं को अनुसंधान के लिए प्रोत्साहन देना था.

केंद्रीय मंत्री जावड़ेकर ने बताया परियोजना का उद्देश्य

केंद्रीय मंत्री जावड़ेकर ने कहा कि नई स्टार्स परियोजना का उद्देश्य शिक्षा प्रणाली में रोज़गार के अवसर पैदा करना, बोर्ड परीक्षाओं में सुधार और शिक्षक-प्रशिक्षण सुविधाओं को समृद्ध करना है. उन्होंने कहा कि 5,718 करोड़ रुपये की कुल अनुमानित लागत में से 3,700 करोड़ रुपये की लागत का खर्च विश्व बैंक वहन करेगी. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, केरल और ओडिशा राज्यों में इस परियोजना को लागू करेगी.

कई राज्यों में एडीबी कर रहा वित्तपोषित

एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) स्कूल शिक्षा में गुणवत्ता मानकों को स्थापित करने के उद्देश्य से गुजरात, तमिलनाडु, उत्तराखंड, झारखंड और असम जैसे राज्यों में पहले से ही इसी तरह की स्टार्स परियोजना का वित्तपोषण कर रहा है. हालांकि केंद्रीय मंत्री कह रहे हैं कि शगुन और देवेशा जैसे ऑनलाइन पोर्टलों की मदद से राज्यों को अपने साथी राज्यों के अनुभवों से लाभ मिल सकता है. मगर सवाल उठाना लाज़मी है कि क्या यह राष्ट्रीय स्तर पर स्कूली शिक्षा को मजबूत करने का एक व्यवहार्य तरीका है? जैसा कि केंद्रीय मंत्री ने कुछ समय पहले बताया था कि देश भर में 11 लाख शिक्षकों को शिक्षण में उचित प्रशिक्षण की कमी है. बिहार और पश्चिम बंगाल में, प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल के एक तिहाई शिक्षकों में आवश्यक योग्यता की कमी देखी गई है. ऐसे हालात में, क्या नई परियोजनाएं, जो कुछ ही राज्यों तक सीमित हैं, देश भर में स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार ला सकती हैं?

पढ़ें: निर्भया फंड : दावों और सच्चाई के बीच कितने फासले, एक नजर

कोविड महामारी ने कराया 30 लाख करोड़ का नुकसान

विश्व बैंक ने हाल ही में अनुमान लगाया था कि कोविड आपदा के कारण भारत में शैक्षणिक संस्थानों के बंद होने प्रति वर्ष में 30 लाख करोड़ रुपये तक का नुकसान होगा और देशभर के छात्रों को सीखने के अवसरों का गुणात्मक और मात्रात्मक नुकसान उठाना पड़ेगा. यदि देश कोविड आपदा की सूरत में एक ही वर्ष में इतना नुकसान उठाने जा रहा है, तो योग्य और प्रशिक्षित शिक्षण कर्मचारियों के अभाव और छात्रों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के नुकसान के कारण देश में वर्षों से हो रहे बड़े नुकसान का अनुमान कैसे लगाया जाए? यद्यपि कोठारी आयोग, चट्टोपाध्याय समिति और यशपाल समिति ने बताया है कि देश में शिक्षक की शिक्षा देने की प्रणाली कैसे विकसित होनी चाहिए, बावजूद इसके दशकों से सरकारों की प्रतिक्रिया उत्साहजनक नहीं है.

शिक्षा के अधिकार कानून में किया गया था संशोधन

स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने के लिए, तीन साल पहले शिक्षा का अधिकार कानून में संशोधन किया गया था, जिसमें स्कूल के शिक्षकों को अनिवार्य प्रशिक्षण दिया जाना था, लेकिन तब भी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है. 'शिक्षा' नामक विशेषज्ञों के समर्थन के साथ देशभर में 42 लाख स्कूल शिक्षकों के शिक्षण कौशल में सुधार के लिए पिछले साल परिकल्पित दो स्तरीय प्रशिक्षण कार्यक्रम अभी शुरू तक नहीं किया गया है. केंद्र को विदेशी देशों के अनुभवों से सीखना चाहिए जो उच्च शैक्षणिक मानकों को प्राप्त करने में उत्कृष्टता के केंद्र के रूप में उभर रहे हैं और युद्ध स्तर पर व्यापक सुधारात्मक कार्रवाई के लिए प्रतिबद्ध हैं.

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सर्वोच्च संस्था की स्थापना करना जरूरी

दक्षिण कोरिया, फिनलैंड, सिंगापुर और हांगकांग प्रतिभा की पहचान करते हुए उन्हें निरंतर प्रशिक्षण और आकर्षक वेतन देकर शिक्षण पेशे में आमंत्रित कर रहे हैं और इस तरह से वे शिक्षा में रचनात्मक नवाचारों की राह पर अग्रसर हैं. कुशल शिक्षक और समर्पित शिक्षाविद् ही हैं जो किसी भी देश में सर्वश्रेष्ठ इंजीनियरों, डॉक्टरों, वकीलों और अन्य पेशेवरों को तैयार कर सकते हैं. शिक्षकों की शिक्षा के उच्चतम स्तर को प्राप्त करने के लिए देश में स्कूली शिक्षा प्रणाली में सुधार लाने के लिए आईआईटी और आईआईएम के साथ समान स्तर पर स्वायत्तता और स्वतंत्रता के साथ एक सर्वोच्च संस्था की स्थापना की जानी चाहिए.

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