बेंगलुरु : भारतीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने इसरो के साथ एक संयुक्त प्रयास के दौरान ईंट जैसी आकृति तैयार करने में सफलता हासिल की है. आईआईएससी की टीम के मुताबिक इस प्रक्रिया में यूरिया और चंद्रमा की मिट्टी का इस्तेमाल किया गया है.
आईआईएससी की ओर से जारी एक बयान के मुताबिक चांद की मिट्टी, बैक्टीरिया और गवार बीन (Guar Bean) को एक साथ मिलाने के बाद भार वहन की क्षमता रखने वाली आकृति बनाई जा सकती है. जानकारी के मुताबिक इस कामयाबी के बाद चंद्रमा पर ईंट जैसी आकृति से रिहायशी इमारत बनाने में सफलता मिलने के आसार हैं. शोध में शामिल लोगों ने भी इस बात का सुझाव दिया है.
इस संबंध में आईआईएससी के मैकेनिकल डिपार्टमेंट में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में काम कर रहे प्रोफेसर अलोके कुमार ने कहा कि यह काफी उत्साहजनक है. इसका कारण पूछे जाने पर प्रोफेसर अलोके ने कहा कि यह दो अलग-अलग क्षेत्रों जीव विज्ञान और मैकेनिकल इंजीनियरिंग को एक साथ लाता है. गौरतलब है कि प्रोफेसर अलोके उन दो अध्ययनों के सह लेखक हैं जिनका 'सेरामिक इंटरनेशनल' और 'पीएलओएस वन' में हाल ही में प्रकाशन हुआ है.
आईआईएससी की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि बाहरी अंतरिक्ष में एक पाउंड सामग्री भेजने की लागत लगभग 7.5 लाख रुपये है.
गौरतलब है कि पिछली सदी में अंतरिक्ष के क्षेत्र में शोध कार्यों में तेजी आई है. पृथ्वी के संसाधनों में तेजी से आ रही कमी के साथ, वैज्ञानिकों ने केवल चंद्रमा और अन्य ग्रहों पर इंसानों के संभावित निवास को लेकर शोध प्रयासों को तेज किया है.
आईआईएससी और इसरो टीम द्वारा विकसित प्रक्रिया में चंद्रमा की सतह पर निर्माण के लिए कच्चे माल के रूप में और चंद्रमा की मिट्टी का भी प्रयोग किया गया है.
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इसके अलावा यूरिया का उपयोग किया गया है. यह मानव मूत्र से हासिल किया जा सकता है. इससे कुल व्यय में काफी कमी आती है.
इस प्रक्रिया में कार्बन फुटप्रिंट भी कम है क्योंकि जोड़ने के लिए सीमेंट की बजाय गवार (Guar) गम का उपयोग किया गया है.
वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी पर टिकाऊ ईंट बनाने के लिए भी इस प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जा सकता है.