नई दिल्ली : नागरिकता संशोधन कानून को लेकर असम में अशांति व्याप्त है. इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील उपमन्यु हजारिका का कहना है कि असम में व्याप्त मौजूदा अशांति एक धार्मिक मुद्दा नहीं है.
उपमन्यु हजारिका ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में कहा, 'नेताओं ने असम के लोगों के साथ विश्वासघात किया है. राज्य के लोगों की भावनाएं सरकार के नागरिकता कानून से आहत हुईं. इससे बवाल होना तो तय है.'
हजारिका ने आगे कहा कि बहुत सारे विदेशियों के नाम NRC में शामिल किए गए हैं और इसे सुधारने की बजाय आप अब और विदेशी ला रहे हैं.
उन्होंने कहा, 'असम में अशांति एक धार्मिक मुद्दा नहीं है. हमारे पास भारत में 150 जातीय समुदाय हैं. नागरिकता अधिनियम के पारित होने के बाद लोग अब पहचान के लिए लड़ रहे हैं और यह एक सहज आंदोलन है.'
हजारिका ने कहा कि सरकार को चाहिए कि नामों को फिर से व्यवस्थित कर दिया जाए ताकि वास्तविक विदेशियों की पहचान की जा सके.
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गौरतलब है कि गत 31 अगस्त को अंतिम एनआरसी के प्रकाशन के बाद, असम सरकार और केंद्र सरकार दोनों ने कथित तौर पर दावा किया कि वे असम में एनआरसी को स्वीकार नहीं करेंगे और इसके बजाय एक राष्ट्रव्यापी एनआरसी प्रक्रिया को अंजाम दिया जाएगा.
हजारिका ने असम में वर्तमान नागरिकता विरोधी आंदोलन को सही ठहराते हुए कहा, 'आप (वर्तमान सरकार) ने यह संकेत देकर असम के लोगों का अपमान किया है कि आपको कोई फर्क नहीं पड़ता ... यह सोचते हुए कि हम कई विदेशियों को प्राथमिकता देने जा रहे हैं.'
संसद ने जब से नागरिकता संशोधन विधेयक (CAB) पारित किया और बाद में राष्ट्रपति ने इसे अधिनियम बनाने के लिए सहमति दी, इसने असम ही नहीं बल्कि देश के विभिन्न राज्यों में अशांति पैदा कर दी.
यह 70 के दशक में था, जब असम में बड़े पैमाने पर बांग्लादेशी-विरोधी आंदोलन देखा गया था. वह आंदोलन प्रभावशाली ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) द्वारा चलाया गया था.
वर्ष 1985 में असम समझौते पर हस्ताक्षर के बाद आंदोलन समाप्त हो गया, जो ऐतिहासिक अकॉर्ड में असम के अवैध विदेशियों का पता लगाने और निर्वासित करने का ही एक भाग था.