पटना : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को मन की बात कार्यक्रम को संबोधित किया. इस कार्यक्रम में उन्होंने बिहार के चंपारण के एक पर्व की चर्चा की. इस पर्व को 'बरना' के नाम से जाना जाता है.
प्रकृति की रक्षा के लिए ही मनाए जाते हैं कई पर्व
लोगों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि गहनता से विचार करने पर हमें पर्व और पर्यावरण के रिश्ते की जानकारी मिलती है. दोनों के बीच एक गहरा रिश्ता है. पर्वों में पर्यावरण और प्रकृति के साथ सहजीवन का संदेश छिपा होता है. कई पर्व प्रकृति की रक्षा के लिए ही मनाए जाते हैं.
![lockdown practice in west champaran](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/8613709_img_3.jpg)
थारु आदिवासी समुदाय सदियों से निभाता है 'लॉकडाउन'
पीएम ने कहा कि बिहार के चंपारण में सदियों से थारु आदिवासी समुदाय के लोग 60 घंटे के लॉकडाउन का पालन करते हैं. उनके शब्दों में कहें तो वह '60 घंटे के बरना' का पालन करते हैं. प्रकृति की रक्षा के लिए बरना को इस समुदाय ने अपनी परंपरा का हिस्सा बना लिया है और सदियों से निभाते आ रहे हैं.
![lockdown practice in west champaran](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/8613709_img_2.jpg)
मन की बात में पीएम मोदी ने दी जानकारी
पीएम मोदी ने पर्व की जानकारी देते हुए कहा कि इस पर्व के दौरान न कोई गांव में आता है, न ही कोई अपने घरों से बाहर निकलता है. लोग मानते हैं कि अगर वह बाहर निकले या कोई आया, तो उनके रोजमर्रा की इस गतिविधि से, नए पेड़-पौधों को नुकसान हो सकता है.
![-lockdown practice in west champaran-](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/8613709_img_5.jpg)
भव्य तरीके से की जाती है बरना की शुरुआत
प्रधानमंत्री ने कहा कि बरना की शुरुआत भव्य तरीके से की जाती है. हमारे आदिवासी भाई-बहन पूजा-पाठ करते हैं. पर्व की समाप्ति पर आदिवासी परंपरा के गीत-संगीत, नृत्य के कार्यक्रम भी होते हैं.
![lockdown practice in west champaran](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/8613709_img_6.jpg)
पश्चिमी चंपारण से ताल्लुक रखता है थारू समुदाय
जी हां देश दुनिया के लिए लॉकडाउन का अनुभव भले ही नया हो, लेकिन पश्चिमी चंपारण के थारू समुदाय के लिए यह काफी पुराना है. प्रकृति की पूजा करने वाला यह समाज सदियों से लॉकडाउन की परंपरा को अपनाए हुए है.
![lockdown practice in west champaran](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/8613709_img_4.jpg)
सावन महीने के अंतिम सप्ताह में 60 घंटे का लॉकडाउन
पेड़ पौधों की सुरक्षा के लिए थारू समाज के लोग हर साल सावन महीने के अंतिम सप्ताह में 60 घंटे का लॉकडाउन करते हैं. स्थानीय भाषा में इसे ही बरना कहा जाता है. इस दौरान घर से कोई बाहर नहीं निकलता. उस दिन एक तिनका तक तोड़ने की मनाही होती है.
![lockdown practice in west champaran](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/300820-bh-bet-barna-lockdown-photo-7204108_30082020123418_3008f_1598771058_162.jpg)
यह भी पढ़ें- प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय नस्ल के कुत्तों को पालने पर दिया जोर
प्रकृति रक्षा के लिए बरना पर्व
पश्चिमी चंपारण जिले के 214 राजस्व गांव में 2.57 लाख थारू समाज के लोग रहते हैं. इस समाज का जीवन प्रकृति के रंग में रंगा है. प्रकृति रक्षा के लिए ही सदियों से हर साल ये बरना मनाते हैं.
बारीश के मौसम में प्रकृति की देवी सृजित करतीं हैं पौधे
समाज के लोगों का मानना है कि बारीश के मौसम में प्रकृति की देवी पौधे सृजित करतीं हैं. इसलिए गलती से भी धरती पर पांव पड़ने से किसी पौधे को कोई नुकसान न हो जाए, इसका पूरा ध्यान रखा जाता है.
थारू समाज के गांव बैठक कर तय करते है तिथि
थारू समाज की आबादी के जितने गांव हैं उनमें बैठक कर बरना की तिथि तय की जाती है. जन सहयोग से राशि जुटाकर आराध्य देव बरखाना यानी पीपल के वृक्ष की पूजा की तैयारी होती है, जिस दिन से 60 घंटे का बरना शुरू होता है, उस दिन सुबह गांव के हर घर से कम से कम एक सदस्य पूजा स्थल पर पहुंचता है.
प्रकृति की देवी से समुदाय की रक्षा की मन्नत
इसके अलावा महिलाएं हलवा पूड़ी का भोग लगाकर प्रकृति की देवी से समुदाय की रक्षा की मन्नत मांगती हैं. पीपल की पूजा भी होती है. युवा गांव के सीमा क्षेत्र में भ्रमण कर जंगल से लाई गई जड़ी बूटी को जलाकर वातावरण शुद्ध करते हैं. ताकि, पर्यावरण पूरी तरह से शुद्ध हो जाए.
60 घंटों के लिए बंद हो जाते हैं थारू समाज के लोग
पूजा-पाठ की यह पद्धति पूरी करने के बाद समाज के सभी लोग अपने अपने घरों में जाकर 60 घंटों के लिए बंद हो जाते हैं. किसी भी परिस्थिति में थारू समाज के लोग उन 60 घंटों के बीच घर से बाहर नहीं निकलते.