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पीर अली की हुंकार से कांप गया था अंग्रेज कमिश्नर, जानें आजादी में योगदान

क्रांतिकारी पीर अली ने अंग्रेजी की गुलामी से देश को आजाद कराने के लिए जीवन भर संघर्ष किया. देश की आजादी को उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया था. वह दिल्ली के क्रांतिकारी अजीमुल्ला खान से वह मार्गदर्शन प्राप्त करते थे. जानें इनकी शौर्य गाथा

क्रांतिकारी पीर अली पार्क
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Published : Aug 11, 2019, 1:23 PM IST

Updated : Sep 26, 2019, 3:24 PM IST

पटना: भारत को आजादी दिलाने में कई लोगों ने अहम भूमिका निभाई है. बिहार की धरती को इन क्रांतिकारियों ने अपने लहू से सींचा है. देश को स्वतंत्रता दिलाने वाले क्रांतिकारियों में एक नाम पीर अली खान का भी है.

पीर अली ने अंग्रेजों के हजार जुल्म सहे. लेकिन, उनके आगे झुकना स्वीकार नहीं किया. उन्होंने अपने साथियों का नाम बताने से मरना बेहतर समझा. लेकिन, आजाद भारत में पीर अली खान इतिहास के पन्नों में ही सिमट कर रह गए हैं.

क्रांतिकारी पीर अली पर ईटीवी भारत की रिपोर्ट

बिहार को बनाया कर्मभूमि
यूं तो पीर अली उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे. लेकिन, उन्होंने बिहार को अपनी कर्मभूमि बनाया. प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उन्होंने अंग्रेजी शासन को हिलाने में अपनी भूमिका निभाई. विरोध के दौरान उन्होंने अंग्रेजों का सामना किया. वह उनके दबाव में नहीं आए बल्कि हंसते हुए फांसी पर चढ़ गए.

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क्रांतिकारी पीर अली की कब्र

जन मानस को आंदोलन से जोड़ा
क्रांतिकारी पीर अली ने अंग्रेजी की गुलामी से देश को आजाद कराने के लिए जीवन भर संघर्ष किया. देश की आजादी को उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया था. दिल्ली के क्रांतिकारी अजीमुल्ला खान से वह मार्गदर्शन प्राप्त करते थे. 1857 की क्रांति के समय उन्होंने पूरे बिहार में घूम-घूम कर लोगों में आजादी के संघर्ष का जज्बा पैदा किया. जन मानस को इक्ट्ठा करने में पीर अली ने अहम भूमिका अदा की.

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शहीद पीर अली पार्क

सैकड़ों साथियों के साथ धावा बोला
पीर अली के नेतृत्व में 3 जुलाई 1857 को 200 से ज्यादा आजादी के दीवाने इकट्ठे हुए. उन्होंने अपने सैकड़ों हथियारबंद साथियों के साथ पटना के गुलजार बाग स्थित अंग्रेजों के प्रशासनिक भवन पर धावा बोल दिया. गुलजारबाग के उस भवन से क्रांतिकारी गतिविधियों पर नजर रखी जाती थी.

अंग्रेज अधिकारी को मार गिराया

क्रांतिकारियों के चौतरफा हमले से घिरे अंग्रेज अधिकारी डॉ. लायल ने क्रांतिकारियों पर फायरिंग शुरू कर दी. क्रांतिकारियों की जवाबी फायरिंग में डॉक्टर लायल अपने कई साथियों समेत मारा गया. अंग्रेजी हुकूमत की अंधाधुंध गोलीबारी में कई क्रांतिकारी भी शहीद हुए. लेकिन, पीर अली और उनके ज्यादातर साथी हमले के बाद बच निकलने में कामयाब हुए.

आज क्रांतिकारियों को सम्मान भी नसीब नहीं
7 जुलाई 1857 को अंग्रेजों ने पीर अली और उनके कई साथियों को कलेक्टर आवास के पास बीच सड़क पर फांसी दे दी. साहित्यकार अरुण कुमार सिंह ने कहा कि यहां क्रांतिकारियों को सम्मान देना भी सरकारें मुनासिब नहीं समझती हैं. सरकारें बस औपचारिकता तक ही सिमट गई हैं.

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अरुण कुमार सिंह, साहित्यकार
बगावत के जुर्म में हुई गिरफ्तारी
दो दिनों के बाद 5 जुलाई 1857 को पीर अली और उनके दर्जनों साथियों को पुलिस ने बगावत के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के बाद उन्हें यातनाएं दी गई. पटना के तत्कालीन कमिश्नर विलियम टेलर ने बिजली से कहा कि अगर आप अपने क्रांतिकारी साथियों के नाम बता देंगे तो आपकी सजा टल जाएगी. लेकिन, पीर अली ने प्रस्ताव को ठुकरा दिया.

पढ़ेंः कारगिल विजय दिवस: गर्व के 20 साल, जानिए कैसे मनाया जाएगा शहीदों के शौर्य गाथा का दिन

पीर अली के वो ऐतिहासिक बोल...

पीर अली ने जवाब में कहा कि 'जिंदगी में ऐसे कई मौके आते हैं, जब जान बचाना जरूरी नहीं होता है. कई ऐसे मौके भी आते हैं, जब जान देना जरूरी हो जाता है. यह वक्त जान देने का है.'

पटना: भारत को आजादी दिलाने में कई लोगों ने अहम भूमिका निभाई है. बिहार की धरती को इन क्रांतिकारियों ने अपने लहू से सींचा है. देश को स्वतंत्रता दिलाने वाले क्रांतिकारियों में एक नाम पीर अली खान का भी है.

पीर अली ने अंग्रेजों के हजार जुल्म सहे. लेकिन, उनके आगे झुकना स्वीकार नहीं किया. उन्होंने अपने साथियों का नाम बताने से मरना बेहतर समझा. लेकिन, आजाद भारत में पीर अली खान इतिहास के पन्नों में ही सिमट कर रह गए हैं.

क्रांतिकारी पीर अली पर ईटीवी भारत की रिपोर्ट

बिहार को बनाया कर्मभूमि
यूं तो पीर अली उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे. लेकिन, उन्होंने बिहार को अपनी कर्मभूमि बनाया. प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उन्होंने अंग्रेजी शासन को हिलाने में अपनी भूमिका निभाई. विरोध के दौरान उन्होंने अंग्रेजों का सामना किया. वह उनके दबाव में नहीं आए बल्कि हंसते हुए फांसी पर चढ़ गए.

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क्रांतिकारी पीर अली की कब्र

जन मानस को आंदोलन से जोड़ा
क्रांतिकारी पीर अली ने अंग्रेजी की गुलामी से देश को आजाद कराने के लिए जीवन भर संघर्ष किया. देश की आजादी को उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया था. दिल्ली के क्रांतिकारी अजीमुल्ला खान से वह मार्गदर्शन प्राप्त करते थे. 1857 की क्रांति के समय उन्होंने पूरे बिहार में घूम-घूम कर लोगों में आजादी के संघर्ष का जज्बा पैदा किया. जन मानस को इक्ट्ठा करने में पीर अली ने अहम भूमिका अदा की.

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शहीद पीर अली पार्क

सैकड़ों साथियों के साथ धावा बोला
पीर अली के नेतृत्व में 3 जुलाई 1857 को 200 से ज्यादा आजादी के दीवाने इकट्ठे हुए. उन्होंने अपने सैकड़ों हथियारबंद साथियों के साथ पटना के गुलजार बाग स्थित अंग्रेजों के प्रशासनिक भवन पर धावा बोल दिया. गुलजारबाग के उस भवन से क्रांतिकारी गतिविधियों पर नजर रखी जाती थी.

अंग्रेज अधिकारी को मार गिराया

क्रांतिकारियों के चौतरफा हमले से घिरे अंग्रेज अधिकारी डॉ. लायल ने क्रांतिकारियों पर फायरिंग शुरू कर दी. क्रांतिकारियों की जवाबी फायरिंग में डॉक्टर लायल अपने कई साथियों समेत मारा गया. अंग्रेजी हुकूमत की अंधाधुंध गोलीबारी में कई क्रांतिकारी भी शहीद हुए. लेकिन, पीर अली और उनके ज्यादातर साथी हमले के बाद बच निकलने में कामयाब हुए.

आज क्रांतिकारियों को सम्मान भी नसीब नहीं
7 जुलाई 1857 को अंग्रेजों ने पीर अली और उनके कई साथियों को कलेक्टर आवास के पास बीच सड़क पर फांसी दे दी. साहित्यकार अरुण कुमार सिंह ने कहा कि यहां क्रांतिकारियों को सम्मान देना भी सरकारें मुनासिब नहीं समझती हैं. सरकारें बस औपचारिकता तक ही सिमट गई हैं.

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अरुण कुमार सिंह, साहित्यकार
बगावत के जुर्म में हुई गिरफ्तारी
दो दिनों के बाद 5 जुलाई 1857 को पीर अली और उनके दर्जनों साथियों को पुलिस ने बगावत के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के बाद उन्हें यातनाएं दी गई. पटना के तत्कालीन कमिश्नर विलियम टेलर ने बिजली से कहा कि अगर आप अपने क्रांतिकारी साथियों के नाम बता देंगे तो आपकी सजा टल जाएगी. लेकिन, पीर अली ने प्रस्ताव को ठुकरा दिया.

पढ़ेंः कारगिल विजय दिवस: गर्व के 20 साल, जानिए कैसे मनाया जाएगा शहीदों के शौर्य गाथा का दिन

पीर अली के वो ऐतिहासिक बोल...

पीर अली ने जवाब में कहा कि 'जिंदगी में ऐसे कई मौके आते हैं, जब जान बचाना जरूरी नहीं होता है. कई ऐसे मौके भी आते हैं, जब जान देना जरूरी हो जाता है. यह वक्त जान देने का है.'

Intro:बिहार की धरती को कई क्रांतिकारियों ने अपने खून से सींचा और देश को स्वतंत्रता दिलाई क्रांतिकारियों की फेहरिस्त में एक नाम पीर अली खान का है जिन्होंने अंग्रेजों को नाकों चने चबाने के लिए मजबूर कर दिया लेकिन आजाद भारत में पीर अली खान इतिहास के पन्नों में ही सिमट कर रह गए


Body:पीर अली खान बाबू वीर कुंवर सिंह की तरह 1857 स्वतंत्रता संग्राम के बिहार चैप्टर के क्रांतिकारी नायक थे 1820 में आजमगढ़ के मुहम्मदपुर में जन्मे पीर अली पारिवारिक बजह से अपनी किशोरावस्था में ही घर से भागकर पटना आ गए थे पटना में एक जमींदार नवाब मीर अब्दुल्लाह आजम की परवरिश की और पढ़ा लिखा है बाद में पीर अली नहीं पटना सिटी में एक किताब की दुकान खोली और वह किताब की दुकान धीरे-धीरे क्रांतिकारियों के अड्डे में तब्दील हो गया क्रांतिकारियों के संपर्क में आने के बाद दुकान पर देश भर से क्रांतिकारी साहित्य मंगाकर बेची जाने लगी ।
पीर अली रहने वाले तो उत्तर प्रदेश के थे लेकिन उन्होंने अपनी कर्मभूमि बिहार को बनाया प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उन्होंने अंग्रेजी शासन को हिलाने में अपनी भूमिका निभाई पीर अली अंग्रेजों के दबाव में ना आए और हंसते हुए फांसी पर चढ़ गए


Conclusion:क्रांतिकारी पीर अली ने अंग्रेजी में की गुलामी से देश को आजाद कराने के लिए जीवन भर संघर्षरत रहे क्रांति को उन्होंने अपने जीवन का मकसद बना लिया। दिल्ली के क्रांतिकारी अजीमुल्ला खान से वह मार्गदर्शन प्राप्त करते थे 1857 की क्रांति के वक्त वह बिहार में घूम-घूम कर लोगों में आजादी के संघर्ष का जज्बा पैदा करते थे उन्होंने लोगों को संगठित करने में बड़ी भूमिका निभाई।
पीर अली के नेतृत्व में 3 जुलाई 1857 को 200 से ज्यादा आजादी के दीवाने इकट्ठे हुए और सैकड़ों हथियारबंद साथियों के साथ पटना के गुलजार बाग स्थित अंग्रेजों के प्रशासनिक भवन पर धावा बोल दिया गुलजारबाग के उस भवन से क्रांतिकारी गतिविधियों पर नजर रखी जाती थी और उन पर कार्यवाही की रूपरेखा भी तय होती थी ।
क्रांतिकारियों के चौतरफा हमले से घिरे अंग्रेज अधिकारी डॉ लायल ने क्रांतिकारियों पर फायरिंग शुरू कर दी क्रांतिकारियों की जवाबी फायरिंग में डॉक्टर लायल अपने कई साथियों समेत मारा गया अंग्रेजी हुकूमत की अंधाधुंध गोलीबारी में कई क्रांतिकारी वि
शहीद हुए और दर्जनों घायल हो गए पीर अली और उनके ज्यादातर साथी हमले के बाद बच निकलने में कामयाब हुए।
2 दिनों के बाद 5 जुलाई 1857 को पीर अली और उनके दर्जनों साथियों को पुलिस ने बगावत के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गिरफ्तारी के बाद उन्हें यातनाएं दी गई पटना के तत्कालीन कमिश्नर विलियम टेलर ने बिजली से कहा कि अगर आप अपने क्रांतिकारी साथियों के नाम बता देंगे तो आप की सजा टल जाएगी लेकिन पीर अली ने टेलर के प्रस्ताव को ठुकरा दिया पीर अली ने टेलर को कहा कि जिंदगी में ऐसे कई मौके आते हैं जब जान बचाना जरूरी नहीं होता है कई ऐसे मौके भी आते हैं जब जान देना जरूरी हो जाता है या वक्त जान देने का ही है ।
7 जुलाई अट्ठारह सौ सत्तावन को पीर अली और उनके कई साथियों को कलेक्टर के आवास के पास बीच सड़क पर फांसी पर लटका दिया फांसी के फंदे पर झूलते समय भी पीर अली को इसी तरह का अफसोस नहीं था ।
साहित्यकार अरुण कुमार सिंह ने कहा कि यहां क्रांतिकारियों को सम्मान देना भी सरकारें मुनासिब नहीं समझती पीर अली के नाम पर बिहार सरकार ने एक पेग बना कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर दी
Last Updated : Sep 26, 2019, 3:24 PM IST
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