पटना: भारत को आजादी दिलाने में कई लोगों ने अहम भूमिका निभाई है. बिहार की धरती को इन क्रांतिकारियों ने अपने लहू से सींचा है. देश को स्वतंत्रता दिलाने वाले क्रांतिकारियों में एक नाम पीर अली खान का भी है.
पीर अली ने अंग्रेजों के हजार जुल्म सहे. लेकिन, उनके आगे झुकना स्वीकार नहीं किया. उन्होंने अपने साथियों का नाम बताने से मरना बेहतर समझा. लेकिन, आजाद भारत में पीर अली खान इतिहास के पन्नों में ही सिमट कर रह गए हैं.
बिहार को बनाया कर्मभूमि
यूं तो पीर अली उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे. लेकिन, उन्होंने बिहार को अपनी कर्मभूमि बनाया. प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उन्होंने अंग्रेजी शासन को हिलाने में अपनी भूमिका निभाई. विरोध के दौरान उन्होंने अंग्रेजों का सामना किया. वह उनके दबाव में नहीं आए बल्कि हंसते हुए फांसी पर चढ़ गए.
जन मानस को आंदोलन से जोड़ा
क्रांतिकारी पीर अली ने अंग्रेजी की गुलामी से देश को आजाद कराने के लिए जीवन भर संघर्ष किया. देश की आजादी को उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया था. दिल्ली के क्रांतिकारी अजीमुल्ला खान से वह मार्गदर्शन प्राप्त करते थे. 1857 की क्रांति के समय उन्होंने पूरे बिहार में घूम-घूम कर लोगों में आजादी के संघर्ष का जज्बा पैदा किया. जन मानस को इक्ट्ठा करने में पीर अली ने अहम भूमिका अदा की.
सैकड़ों साथियों के साथ धावा बोला
पीर अली के नेतृत्व में 3 जुलाई 1857 को 200 से ज्यादा आजादी के दीवाने इकट्ठे हुए. उन्होंने अपने सैकड़ों हथियारबंद साथियों के साथ पटना के गुलजार बाग स्थित अंग्रेजों के प्रशासनिक भवन पर धावा बोल दिया. गुलजारबाग के उस भवन से क्रांतिकारी गतिविधियों पर नजर रखी जाती थी.
अंग्रेज अधिकारी को मार गिराया
क्रांतिकारियों के चौतरफा हमले से घिरे अंग्रेज अधिकारी डॉ. लायल ने क्रांतिकारियों पर फायरिंग शुरू कर दी. क्रांतिकारियों की जवाबी फायरिंग में डॉक्टर लायल अपने कई साथियों समेत मारा गया. अंग्रेजी हुकूमत की अंधाधुंध गोलीबारी में कई क्रांतिकारी भी शहीद हुए. लेकिन, पीर अली और उनके ज्यादातर साथी हमले के बाद बच निकलने में कामयाब हुए.
आज क्रांतिकारियों को सम्मान भी नसीब नहीं
7 जुलाई 1857 को अंग्रेजों ने पीर अली और उनके कई साथियों को कलेक्टर आवास के पास बीच सड़क पर फांसी दे दी. साहित्यकार अरुण कुमार सिंह ने कहा कि यहां क्रांतिकारियों को सम्मान देना भी सरकारें मुनासिब नहीं समझती हैं. सरकारें बस औपचारिकता तक ही सिमट गई हैं.
दो दिनों के बाद 5 जुलाई 1857 को पीर अली और उनके दर्जनों साथियों को पुलिस ने बगावत के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के बाद उन्हें यातनाएं दी गई. पटना के तत्कालीन कमिश्नर विलियम टेलर ने बिजली से कहा कि अगर आप अपने क्रांतिकारी साथियों के नाम बता देंगे तो आपकी सजा टल जाएगी. लेकिन, पीर अली ने प्रस्ताव को ठुकरा दिया.
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पीर अली के वो ऐतिहासिक बोल...
पीर अली ने जवाब में कहा कि 'जिंदगी में ऐसे कई मौके आते हैं, जब जान बचाना जरूरी नहीं होता है. कई ऐसे मौके भी आते हैं, जब जान देना जरूरी हो जाता है. यह वक्त जान देने का है.'