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इस साल पुरी में रथ यात्रा पर रोक लगाने का आदेश वापस लेने के लिए न्यायालय में याचिका - भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का आयोजन

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का आयोजन 23 जून से होना था. इस रथ यात्रा में दुनिया भर के लाखों श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं. शीर्ष अदालत में रथ यात्रा को रोकने का आदेश वापस लेने और इसमें सुधार के लिए याचिका ‘जगन्नाथ संस्कृति जन जागरण मंच’ ने दायर की है.

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पुरी में रथ यात्रा पर रोक
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Published : Jun 20, 2020, 2:42 PM IST

नई दिल्ली : कोविड-19 महामारी के मद्देनजर पुरी में इस साल भगवान जगन्नाथ की ऐतिहासिक वार्षिक रथ यात्रा के आयोजन पर रोक लगाने का आदेश वापस लेने के लिये उच्चतम न्यायालय में शुक्रवार को एक याचिका दायर की गई.

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का आयोजन 23 जून से होना था और इसमें दुनिया भर के लाखों श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं. शीर्ष अदालत का गुरुवार का आदेश वापस लेने और इसमें सुधार के लिए यह याचिका ‘जगन्नाथ संस्कृति जन जागरण मंच’ ने दायर की है.

याचिका में कहा गया है कि यह महोत्सव भगवान जगन्नाथ के लाखों श्रद्धालुओं की धार्मिक आस्था से जुड़ा हुआ है और सामाजिक दूरी बनाये रखते हुए केन्द्र के दिशानिर्देशों के अनुसार रथ यात्रा का आयोजन करना राज्य और जिला प्रशासन के लिये असंभव नहीं है.

याचिका में कहा गया है कि इन तथ्यों और परिस्थितियों के मद्देनजर न्यायालय के 18 जून के आदेश में इस सीमा तक संशोधन करने का अनुरोध किया जाता है कि रथ यात्रा का धार्मिक अनुष्ठान जगन्नाथ मंदिर के 500-600 सेवकों की मदद से सामाजिक दूरी और सरकार के निर्देशों का पालन करते हुए करने की अनुमति दी जाए.

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने गुरुवार को अपने आदेश में कहा था कि सार्वजनिक स्वास्थ्य और नागरिकों की सुरक्षा के हित को ध्यान में रखते हुए इस वर्ष पुरी में ऐतिहासिक रथ यात्रा और इससे संबंधित दूसरी गतिविधियों के आयोजन की अनुमति नहीं दी जा सकती. न्यायालय ने यह भी कहा था कि अगर हम इसकी अनुमति देंगे तो भगवान जगन्नाथ हमें माफ नहीं करेंगे.

अधिवक्ता हितेन्द्र नाथ रथ के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि उड़ीसा उच्च न्यायालय के निर्देश और राज्य सरकार के पहले के फैसले के अनुसार पिछले डेढ़ महीने से भी अधिक समय से 372 व्यक्ति तीन रथों के निर्माण में जुड़े थे ओर ये सभी अलग रह रहे थे और उनकी कोविड -19 के लिए की गई जांच में उन्हें कोई संक्रमण नहीं पाया गया.

पीठ ने कहा कि कोरोना वायरस महामारी के दौरान इतना बड़ा समागम आयोजित नहीं हो सकता. जगन्नाथ रथ यात्रा में हर साल दुनिया भर के लाखों श्रद्धालु शामिल होते है.

यह रथ यात्रा महोत्सव 10 से 12 दिन चलता है जो 23 जून को शुरू होने वाला था और रथ यात्रा की वापसी 'बहुदा' जात्रा’ की तारीख एक जुलाई निर्धारित है.

इस महोत्सव के लिए भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा के लिए लकड़ी के तीन विशाल रथ बनाये जाते हैं और पुरी में नौ दिनों के दौरान श्रद्धालु इसे दो बार तीन किलोमीटर से ज्यादा दूर तक खींचते हैं.

पीठ ने अपने आदेश में कहा, 'रथ यात्रा के लिये इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के एकत्र होने से उत्पन्न खतरे को देखते हुए हम सार्वजनिक स्वास्थ्य और नागरिकों की सुरक्षा के हितों के मद्देनजर प्रतिवादियों को इस वर्ष रथ यात्रा का आयोजन करने से रोकना उचित समझते हैं.'

पीठ ने कहा के संविधान का अनुच्छेद 25(1) लोक व्यवस्था और स्वास्थ्य के अधीन रहते हुए सभी को अंत:करण की स्वतंत्रता का और धर्म के अबाध रूप से मानने, उसके अनुरूप आचरण करने और प्रचार करने का अधिकार प्रदान करता है.

शीर्ष अदालत ने ओडिशा स्थित एक गैर सरकारी संगठन ओडिशा विकास परिषद की जनहित याचिका पर यह आदेश दिया. याचिका में 10 से 12 दिन चलने वाली रथ यात्रा को इस साल रद्द करने या फिर इसे स्थगित करने का अनुरोध किया गया था. इस आयोजन में दुनिया भर के लाखों श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं.

इसके अलावा, भारतीय विकास परिषद नाम के संगठन के सुरेन्द्र पाणिग्रही ने उड़ीसा उच्च न्यायालय के नौ जून के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में अपील दायर कर रखी है. इस मामले में अदालत ने राज्य सरकार से कहा था कि वह कोविड-19 के दिशानिर्देशों को ध्यान में रखते हुए रथ यात्रा महोत्सव आयोजित करने के बारे में निर्णय ले.

नई दिल्ली : कोविड-19 महामारी के मद्देनजर पुरी में इस साल भगवान जगन्नाथ की ऐतिहासिक वार्षिक रथ यात्रा के आयोजन पर रोक लगाने का आदेश वापस लेने के लिये उच्चतम न्यायालय में शुक्रवार को एक याचिका दायर की गई.

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का आयोजन 23 जून से होना था और इसमें दुनिया भर के लाखों श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं. शीर्ष अदालत का गुरुवार का आदेश वापस लेने और इसमें सुधार के लिए यह याचिका ‘जगन्नाथ संस्कृति जन जागरण मंच’ ने दायर की है.

याचिका में कहा गया है कि यह महोत्सव भगवान जगन्नाथ के लाखों श्रद्धालुओं की धार्मिक आस्था से जुड़ा हुआ है और सामाजिक दूरी बनाये रखते हुए केन्द्र के दिशानिर्देशों के अनुसार रथ यात्रा का आयोजन करना राज्य और जिला प्रशासन के लिये असंभव नहीं है.

याचिका में कहा गया है कि इन तथ्यों और परिस्थितियों के मद्देनजर न्यायालय के 18 जून के आदेश में इस सीमा तक संशोधन करने का अनुरोध किया जाता है कि रथ यात्रा का धार्मिक अनुष्ठान जगन्नाथ मंदिर के 500-600 सेवकों की मदद से सामाजिक दूरी और सरकार के निर्देशों का पालन करते हुए करने की अनुमति दी जाए.

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने गुरुवार को अपने आदेश में कहा था कि सार्वजनिक स्वास्थ्य और नागरिकों की सुरक्षा के हित को ध्यान में रखते हुए इस वर्ष पुरी में ऐतिहासिक रथ यात्रा और इससे संबंधित दूसरी गतिविधियों के आयोजन की अनुमति नहीं दी जा सकती. न्यायालय ने यह भी कहा था कि अगर हम इसकी अनुमति देंगे तो भगवान जगन्नाथ हमें माफ नहीं करेंगे.

अधिवक्ता हितेन्द्र नाथ रथ के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि उड़ीसा उच्च न्यायालय के निर्देश और राज्य सरकार के पहले के फैसले के अनुसार पिछले डेढ़ महीने से भी अधिक समय से 372 व्यक्ति तीन रथों के निर्माण में जुड़े थे ओर ये सभी अलग रह रहे थे और उनकी कोविड -19 के लिए की गई जांच में उन्हें कोई संक्रमण नहीं पाया गया.

पीठ ने कहा कि कोरोना वायरस महामारी के दौरान इतना बड़ा समागम आयोजित नहीं हो सकता. जगन्नाथ रथ यात्रा में हर साल दुनिया भर के लाखों श्रद्धालु शामिल होते है.

यह रथ यात्रा महोत्सव 10 से 12 दिन चलता है जो 23 जून को शुरू होने वाला था और रथ यात्रा की वापसी 'बहुदा' जात्रा’ की तारीख एक जुलाई निर्धारित है.

इस महोत्सव के लिए भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा के लिए लकड़ी के तीन विशाल रथ बनाये जाते हैं और पुरी में नौ दिनों के दौरान श्रद्धालु इसे दो बार तीन किलोमीटर से ज्यादा दूर तक खींचते हैं.

पीठ ने अपने आदेश में कहा, 'रथ यात्रा के लिये इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के एकत्र होने से उत्पन्न खतरे को देखते हुए हम सार्वजनिक स्वास्थ्य और नागरिकों की सुरक्षा के हितों के मद्देनजर प्रतिवादियों को इस वर्ष रथ यात्रा का आयोजन करने से रोकना उचित समझते हैं.'

पीठ ने कहा के संविधान का अनुच्छेद 25(1) लोक व्यवस्था और स्वास्थ्य के अधीन रहते हुए सभी को अंत:करण की स्वतंत्रता का और धर्म के अबाध रूप से मानने, उसके अनुरूप आचरण करने और प्रचार करने का अधिकार प्रदान करता है.

शीर्ष अदालत ने ओडिशा स्थित एक गैर सरकारी संगठन ओडिशा विकास परिषद की जनहित याचिका पर यह आदेश दिया. याचिका में 10 से 12 दिन चलने वाली रथ यात्रा को इस साल रद्द करने या फिर इसे स्थगित करने का अनुरोध किया गया था. इस आयोजन में दुनिया भर के लाखों श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं.

इसके अलावा, भारतीय विकास परिषद नाम के संगठन के सुरेन्द्र पाणिग्रही ने उड़ीसा उच्च न्यायालय के नौ जून के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में अपील दायर कर रखी है. इस मामले में अदालत ने राज्य सरकार से कहा था कि वह कोविड-19 के दिशानिर्देशों को ध्यान में रखते हुए रथ यात्रा महोत्सव आयोजित करने के बारे में निर्णय ले.

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