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अंतिम विदाई: अन्य राजनेताओं से हटकर था दीक्षित का व्यक्तित्व

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Published : Jul 21, 2019, 11:46 AM IST

70 के दशक में अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत करने के बाद शीला दीक्षित ने लंबा सफर तय किया. इस बात को उनके विरोधी भी नहीं नकार पाए कि उनका व्यक्तित्व बाकी नेताओं से हट के था.

कांग्रेस नेता शीला दीक्षित

नई दिल्लीः दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का 81 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. प्रभावशाली, विनम्र और हमेशा मुस्कुराते रहने वाली शीला दीक्षित का व्यक्तित्व अन्य राजनेताओं की तुलना में कुछ हटकर था.

मिरांडा हाउस की एक जिंदादिल लड़की, जिसे कार की सवारी करनें का बड़ा शौक था. मगर जब उनकी शादी एक राजनीतिक परिवार में हुई तो उनकी किस्मत हमेशा के लिए बदल गई. शीला दीक्षित की शादी उत्तर प्रदेश के दिग्गज नेता रहे उमाशंकर दीक्षित के घर हुई. उमाशंकर दीक्षित ने एक समाजसेवी के तौर पर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था. अपने काम के चलते वह आगे चल कर इंदिरा गांधी की कैबिनेट में मंत्री बने. अपने ससुर से ही शीला दिक्षित ने राजनीति के दाव सीखे.

दीक्षित परिवार की गांधी परिवार से करीबियां नेहरू के समय से ही थीं. अपने काम और क्षमताओं की बदौलत शीला इंदिरा गांधी की नजर में आई और इंदिरा गांधी ने उनको संयुक्त राष्ट्र कमिशन दल का सदस्य बनाया. उनके राजनीतिक सफर की शुरूआत यहीं से हुई.

उनका जन्म पंजाब मे हुआ और दिल्ली में रहकर उन्होंने अपनी शख्सियत को बुलंद किया. 1984 में उत्तर प्रदेश के कंनौज से जीत हांसिल करने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय राजधानी को अपनी कर्मभूमि बनाया.

राजधानी में अपने 15 साल के शासन के दौरान उन्होंने दिल्ली का चेहरा पूरी तरह से बदलकर रख दिया. उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में बुनियादी स्तर पर काम कराए. इन्ही कामों का नतीजा है कि उनके राजनीतिक विरोधी भी इस बात को नकार नहीं सकते कि वह दिल्ली में आए परिवर्तन के पीछे की एक बड़ी ताकत थीं.

सड़कों और फ्लाईओवरों का निर्माण कराकर शहर के बुनियादी ढांचे में क्रांतिकारी बदलाव लाने में वह सफल रहीं. उन्होंने जो भी हासिल किया उसमें एक गरिमा थी और आज भी है. यही वजह है कि उन्होंने अपने विरोधियों से भी खूब सम्मान पाया.

उनके निधन के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दिग्गज नेता विजय कुमार मल्होत्रा ने उन्हें अपनी बहन बताया, जबकि 2019 के लोकसभा चुनावों में उन्हें हराने वाले भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने कहा कि वह उनके जीवन में एक मां की तरह थीं.

पढ़ें-शीला दीक्षित को आज आखिरी विदाई, निगम बोध घाट पर होगा अंतिम संस्कार

उनके राजनीतिक सफर में काफी उतार चढ़ाव आए. 1998 में विधानसभा चुनावों से पहले वह चौधरी प्रेम सिंह की जगह दिल्ली की कांग्रेस प्रमुख बनीं. उसके बाद शीला दीक्षित ने पार्टी का नेतृत्व करते हुए 70 में से 52 सीटें जीतीं और वहां से कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने 2003 और 2008 में फिर से जीत हासिल की.

उनके पतन की शुरुआत तब हुई जब केंद्र में कांग्रेस सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के घोटालों का सिलसिला शुरू हुआ. वह 2010 में कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए सवालों के घेरे में आ गई.

उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले दिल्ली कांग्रेस के प्रमुख के तौर पर दोबारा वापसी की. वह उत्तर पूर्वी दिल्ली से चुनाव लड़ीं लेकिन राज्य में भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी से हार गईं.

शीला दीक्षित अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारी कर रहीं थी मगर दिल की बीमारी से वह उबर नहीं सकी और अनगिनत यादों के साथ दुनिया से विदा हो गई.

नई दिल्लीः दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का 81 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. प्रभावशाली, विनम्र और हमेशा मुस्कुराते रहने वाली शीला दीक्षित का व्यक्तित्व अन्य राजनेताओं की तुलना में कुछ हटकर था.

मिरांडा हाउस की एक जिंदादिल लड़की, जिसे कार की सवारी करनें का बड़ा शौक था. मगर जब उनकी शादी एक राजनीतिक परिवार में हुई तो उनकी किस्मत हमेशा के लिए बदल गई. शीला दीक्षित की शादी उत्तर प्रदेश के दिग्गज नेता रहे उमाशंकर दीक्षित के घर हुई. उमाशंकर दीक्षित ने एक समाजसेवी के तौर पर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था. अपने काम के चलते वह आगे चल कर इंदिरा गांधी की कैबिनेट में मंत्री बने. अपने ससुर से ही शीला दिक्षित ने राजनीति के दाव सीखे.

दीक्षित परिवार की गांधी परिवार से करीबियां नेहरू के समय से ही थीं. अपने काम और क्षमताओं की बदौलत शीला इंदिरा गांधी की नजर में आई और इंदिरा गांधी ने उनको संयुक्त राष्ट्र कमिशन दल का सदस्य बनाया. उनके राजनीतिक सफर की शुरूआत यहीं से हुई.

उनका जन्म पंजाब मे हुआ और दिल्ली में रहकर उन्होंने अपनी शख्सियत को बुलंद किया. 1984 में उत्तर प्रदेश के कंनौज से जीत हांसिल करने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय राजधानी को अपनी कर्मभूमि बनाया.

राजधानी में अपने 15 साल के शासन के दौरान उन्होंने दिल्ली का चेहरा पूरी तरह से बदलकर रख दिया. उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में बुनियादी स्तर पर काम कराए. इन्ही कामों का नतीजा है कि उनके राजनीतिक विरोधी भी इस बात को नकार नहीं सकते कि वह दिल्ली में आए परिवर्तन के पीछे की एक बड़ी ताकत थीं.

सड़कों और फ्लाईओवरों का निर्माण कराकर शहर के बुनियादी ढांचे में क्रांतिकारी बदलाव लाने में वह सफल रहीं. उन्होंने जो भी हासिल किया उसमें एक गरिमा थी और आज भी है. यही वजह है कि उन्होंने अपने विरोधियों से भी खूब सम्मान पाया.

उनके निधन के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दिग्गज नेता विजय कुमार मल्होत्रा ने उन्हें अपनी बहन बताया, जबकि 2019 के लोकसभा चुनावों में उन्हें हराने वाले भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने कहा कि वह उनके जीवन में एक मां की तरह थीं.

पढ़ें-शीला दीक्षित को आज आखिरी विदाई, निगम बोध घाट पर होगा अंतिम संस्कार

उनके राजनीतिक सफर में काफी उतार चढ़ाव आए. 1998 में विधानसभा चुनावों से पहले वह चौधरी प्रेम सिंह की जगह दिल्ली की कांग्रेस प्रमुख बनीं. उसके बाद शीला दीक्षित ने पार्टी का नेतृत्व करते हुए 70 में से 52 सीटें जीतीं और वहां से कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने 2003 और 2008 में फिर से जीत हासिल की.

उनके पतन की शुरुआत तब हुई जब केंद्र में कांग्रेस सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के घोटालों का सिलसिला शुरू हुआ. वह 2010 में कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए सवालों के घेरे में आ गई.

उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले दिल्ली कांग्रेस के प्रमुख के तौर पर दोबारा वापसी की. वह उत्तर पूर्वी दिल्ली से चुनाव लड़ीं लेकिन राज्य में भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी से हार गईं.

शीला दीक्षित अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारी कर रहीं थी मगर दिल की बीमारी से वह उबर नहीं सकी और अनगिनत यादों के साथ दुनिया से विदा हो गई.

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