नई दिल्ली : पिछले सप्ताह जम्मू-कश्मीर के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों- उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती समेत कई अन्य नेताओं पर जन सुरक्षा कानून (पीएसए) लगा दिया गया. इस पर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) नेता नजीर अहमद लवे ने कहा कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है और यहां पर इस तरह की घटना सही नहीं है और इस एक्ट का इस्तेमाल राजनीतिक नेताओं पर सही नहीं है.
ईटीवी भारत से खास बातचीत में लवे ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में पीएसए 1978 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के कार्यकाल में लागू किया गया था. इस एक्ट का मूल उद्देश्य यहां पर लकड़ी की तस्करी रोकना और तस्करों को प्रचलन से बाहर करना था.
लवे ने कहा कि जिन लोगों ने यह कानून बनाया था, आज उन्हीं का परिवार पीएसए एक्ट के घेरे में आ रहा है. उन्होंने कहा कि यदि यह एक्ट किसी बुरे आदमी के खिलाफ लगाया जाता हो तो सहीं है, लेकिन राजनेताओं के खिलाफ इस एक्ट का उपयोग सहीं नहीं है.
गौरतलब है कि पिछले साल दिसंबर में पीएसए के तहत फारूक अब्दुल्ला की नजरबंदी को तीन महीने तक के लिए बढ़ा दिया गया था.
हालांकि लवे ने पूर्व मुख्यमंत्रियों और अन्य राजनेताओं के खिलाफ पीएसए लगाने के लिए सरकार की आलोचना की.
अनुच्छेद 370 पर लवे ने कहा कि इसके रद होने के बाद लोग खामोश हैं. वह इस पर बात नहीं करना चाहते. साथ ही कहा कि घाटी में अनुच्छेद के रद होने पहले जो स्थिति थी, वही स्थिति मौजूदा समय में भी है.
ये भी पढ़ें-इंटेलीजेंस इनपुट : आरएसएस नेताओं को निशाना बना सकते हैं आतंकी समूह
क्या है जन सुरक्षा कानून या पीएसए
साल 1978 में उमर अब्दुल्ला के दादा और फारुक अब्दुल्ला के पिता शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने इस कानून को इमारती लकड़ी की तस्करी को रोकने और तस्करों को 'प्रचलन से बाहर' रखने के लिए जम्मू-कश्मीर में लागू किया था. जन सुरक्षा अधिनियम उन लोगों पर लगाया जा सकता है, जिन्हें लोगों की सुरक्षा और शांति के लिए खतरा माना जाता हो. यह देश के अन्य राज्यों में लागू राष्ट्रीय सुरक्षा कानून की तरह से है. वर्ष 2010 में इसमें संशोधन किया गया था, जिसके तहत बगैर ट्रायल के ही लोगों को कम से कम छह महीने तक जेल में रखा जा सकता है. राज्य सरकार चाहे तो इस अवधि को बढ़ाकर दो साल तक भी किया जा सकता है.