नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पूर्वोत्तर के विभिन्न उग्रवादी संगठनों से बंदूक छोड़, बातचीत की मेज पर आने का आह्वान करने के बाद अब कांग्रेस ने भी पूर्वोत्तर के विभिन्न उग्रवादी संगठनों के साथ बातचीत में शामिल होने की बात कही है और दावा किया कि असम के उग्रवाद संगठनों से बातचीत की शुरुआत कांग्रेस सरकार के दौर में ही हुई थी.
असम से कांग्रेस के राज्यसभा सांसद रिपुन बोरा ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि देश के किसी भी क्षेत्र में हिंसा नहीं होनी चाहिए. वैसे लोगों को, जो अलगाववादी है और हिंसा का रास्ता अपना चुके हैं, उन्हें बातचीत की मेज पर लाने के लिए राजी करना सरकार की जिम्मेदारी है क्योंकि वे भी इसी देश के नागरिक हैं.
आपको बता दें कि भारत सरकार और बोडो समुदाय के बीच हुए समझौते के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को कोकराझार पहुंचे थे और वहां लोगों को समझौते के जरिये स्थाई रूप से शांति आने का भरोसा दिलाया था.
वहीं कांग्रेस नेता रिपुन बोरा ने कहा, 'पूर्वोत्तर के अलगाववादी समूहों और उग्रवाद से जुड़े लोगों से पहली बार कांग्रेस ने ही बातचीत शुरू की थी. जब केंद्र में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार थी और असम में हितेश्वर सैकिया मुख्यमंत्री थे, उस दौर में यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के साथ पहली बार बातचीत शुरू की गई थी.
बोरा ने कहा, 'संभवत: 1992 में दोनों तत्कालीन कांग्रेसी सरकारों ने उल्फा से शांति वार्ता की पहल की थी. हालांकि उस वक्त बातचीत किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई थी क्योंकि बातचीत के लिए रिहा किए गए अधिकतर उल्फा नेता भूमिगत हो गए थे. बाद में सभी उल्फा नेता बांग्लादेश भाग गए और वहां जाकर उन्होंने अपना शिविर बना लिया था. बाद में कई शीर्ष उल्फा नेताओं ने आत्मसमर्पण कर दिया और मुख्यधारा में शामिल हो गए.'
गौरतलब है कि कुछ दिनों पहले गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि केंद्र सरकार 2019 से ही भूमिगत लोगों को बातचीत की मेज पर आने के लिए पहल कर रही थी, जिसके बाद यह वार्ता की मेज पर पहुंच सके हैं.
दूसरी तरफ बोरा ने कहा कि उग्रवाद और हिंसा से किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता. उन्होंने पूर्वोत्तर के सभी विद्रोही समूहों का आह्वान किया कि वे हिंसा के रास्ते का त्याग करें और बातचीत के लिए आगे आएं.
वहीं उन्होंने उल्फा से अलग सम्प्रभुता की नीति को त्याग कर राज्य की मुख्यधारा में शामिल होने की बात कही है.
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दरअसल उल्फा का गठन 1979 में असम में हुआ था. अपने गठन से ही वह असम की सम्प्रभुता की मांग कर रहा है, हालांकि केंद्र की सभी सरकारें उल्फा की इस मांग को अस्वीकार करती रही हैं.
दरअसल प्रधानमंत्री मोदी ऐतिहासिक बोडो समझौते के बाद शुक्रवार को असम के कोकराझार पहुंचे थे, जहां उनका भव्य स्वागत किया गया था . बाद में उन्होंने वहां एक विशाल जनसभा को संबोधित भी किया, संबोधन के दौरान ही उन्होंने सभी उग्रवादी संगठनों को बातचीत में शामिल होने का आह्वान किया था.