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पूर्वोत्तर में कांग्रेस सरकार ने शुरू की थी शांति की पहल : रिपुन बोरा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पूर्वोत्तर के विभिन्न उग्रवादी संगठनों से बंदूक छोड़, बातचीत की मेज पर आने  का आह्वान करने के बाद अब कांग्रेस ने भी पूर्वोत्तर के विभिन्न उग्रवादी संगठनों के साथ बातचीत में शामिल होने की बात कही है और दावा किया है कि असम के उग्रवादी संगठनों से बातचीत की शुरुआत कांग्रेस सरकार के दौर में ही हुई थी.

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रिपुन बोरा
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Published : Feb 8, 2020, 9:07 PM IST

Updated : Feb 29, 2020, 4:30 PM IST

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पूर्वोत्तर के विभिन्न उग्रवादी संगठनों से बंदूक छोड़, बातचीत की मेज पर आने का आह्वान करने के बाद अब कांग्रेस ने भी पूर्वोत्तर के विभिन्न उग्रवादी संगठनों के साथ बातचीत में शामिल होने की बात कही है और दावा किया कि असम के उग्रवाद संगठनों से बातचीत की शुरुआत कांग्रेस सरकार के दौर में ही हुई थी.

असम से कांग्रेस के राज्यसभा सांसद रिपुन बोरा ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि देश के किसी भी क्षेत्र में हिंसा नहीं होनी चाहिए. वैसे लोगों को, जो अलगाववादी है और हिंसा का रास्ता अपना चुके हैं, उन्हें बातचीत की मेज पर लाने के लिए राजी करना सरकार की जिम्मेदारी है क्योंकि वे भी इसी देश के नागरिक हैं.

आपको बता दें कि भारत सरकार और बोडो समुदाय के बीच हुए समझौते के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को कोकराझार पहुंचे थे और वहां लोगों को समझौते के जरिये स्थाई रूप से शांति आने का भरोसा दिलाया था.

वहीं कांग्रेस नेता रिपुन बोरा ने कहा, 'पूर्वोत्तर के अलगाववादी समूहों और उग्रवाद से जुड़े लोगों से पहली बार कांग्रेस ने ही बातचीत शुरू की थी. जब केंद्र में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार थी और असम में हितेश्वर सैकिया मुख्यमंत्री थे, उस दौर में यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के साथ पहली बार बातचीत शुरू की गई थी.

ईटीवी भारत से बात करते कांग्रेस सांसद रिपुन बोरा.

बोरा ने कहा, 'संभवत: 1992 में दोनों तत्कालीन कांग्रेसी सरकारों ने उल्फा से शांति वार्ता की पहल की थी. हालांकि उस वक्त बातचीत किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई थी क्योंकि बातचीत के लिए रिहा किए गए अधिकतर उल्फा नेता भूमिगत हो गए थे. बाद में सभी उल्फा नेता बांग्लादेश भाग गए और वहां जाकर उन्होंने अपना शिविर बना लिया था. बाद में कई शीर्ष उल्फा नेताओं ने आत्मसमर्पण कर दिया और मुख्यधारा में शामिल हो गए.'

गौरतलब है कि कुछ दिनों पहले गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि केंद्र सरकार 2019 से ही भूमिगत लोगों को बातचीत की मेज पर आने के लिए पहल कर रही थी, जिसके बाद यह वार्ता की मेज पर पहुंच सके हैं.

दूसरी तरफ बोरा ने कहा कि उग्रवाद और हिंसा से किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता. उन्होंने पूर्वोत्तर के सभी विद्रोही समूहों का आह्वान किया कि वे हिंसा के रास्ते का त्याग करें और बातचीत के लिए आगे आएं.

वहीं उन्होंने उल्फा से अलग सम्प्रभुता की नीति को त्याग कर राज्य की मुख्यधारा में शामिल होने की बात कही है.

पढ़ें- बोडो समझौता : असम में उमड़ा जनसैलाब, पीएम मोदी बोले- '21वीं सदी में पूर्वोत्तर की नई शुरुआत'

दरअसल उल्फा का गठन 1979 में असम में हुआ था. अपने गठन से ही वह असम की सम्प्रभुता की मांग कर रहा है, हालांकि केंद्र की सभी सरकारें उल्फा की इस मांग को अस्वीकार करती रही हैं.

दरअसल प्रधानमंत्री मोदी ऐतिहासिक बोडो समझौते के बाद शुक्रवार को असम के कोकराझार पहुंचे थे, जहां उनका भव्य स्वागत किया गया था . बाद में उन्होंने वहां एक विशाल जनसभा को संबोधित भी किया, संबोधन के दौरान ही उन्होंने सभी उग्रवादी संगठनों को बातचीत में शामिल होने का आह्वान किया था.

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पूर्वोत्तर के विभिन्न उग्रवादी संगठनों से बंदूक छोड़, बातचीत की मेज पर आने का आह्वान करने के बाद अब कांग्रेस ने भी पूर्वोत्तर के विभिन्न उग्रवादी संगठनों के साथ बातचीत में शामिल होने की बात कही है और दावा किया कि असम के उग्रवाद संगठनों से बातचीत की शुरुआत कांग्रेस सरकार के दौर में ही हुई थी.

असम से कांग्रेस के राज्यसभा सांसद रिपुन बोरा ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि देश के किसी भी क्षेत्र में हिंसा नहीं होनी चाहिए. वैसे लोगों को, जो अलगाववादी है और हिंसा का रास्ता अपना चुके हैं, उन्हें बातचीत की मेज पर लाने के लिए राजी करना सरकार की जिम्मेदारी है क्योंकि वे भी इसी देश के नागरिक हैं.

आपको बता दें कि भारत सरकार और बोडो समुदाय के बीच हुए समझौते के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को कोकराझार पहुंचे थे और वहां लोगों को समझौते के जरिये स्थाई रूप से शांति आने का भरोसा दिलाया था.

वहीं कांग्रेस नेता रिपुन बोरा ने कहा, 'पूर्वोत्तर के अलगाववादी समूहों और उग्रवाद से जुड़े लोगों से पहली बार कांग्रेस ने ही बातचीत शुरू की थी. जब केंद्र में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार थी और असम में हितेश्वर सैकिया मुख्यमंत्री थे, उस दौर में यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के साथ पहली बार बातचीत शुरू की गई थी.

ईटीवी भारत से बात करते कांग्रेस सांसद रिपुन बोरा.

बोरा ने कहा, 'संभवत: 1992 में दोनों तत्कालीन कांग्रेसी सरकारों ने उल्फा से शांति वार्ता की पहल की थी. हालांकि उस वक्त बातचीत किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई थी क्योंकि बातचीत के लिए रिहा किए गए अधिकतर उल्फा नेता भूमिगत हो गए थे. बाद में सभी उल्फा नेता बांग्लादेश भाग गए और वहां जाकर उन्होंने अपना शिविर बना लिया था. बाद में कई शीर्ष उल्फा नेताओं ने आत्मसमर्पण कर दिया और मुख्यधारा में शामिल हो गए.'

गौरतलब है कि कुछ दिनों पहले गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि केंद्र सरकार 2019 से ही भूमिगत लोगों को बातचीत की मेज पर आने के लिए पहल कर रही थी, जिसके बाद यह वार्ता की मेज पर पहुंच सके हैं.

दूसरी तरफ बोरा ने कहा कि उग्रवाद और हिंसा से किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता. उन्होंने पूर्वोत्तर के सभी विद्रोही समूहों का आह्वान किया कि वे हिंसा के रास्ते का त्याग करें और बातचीत के लिए आगे आएं.

वहीं उन्होंने उल्फा से अलग सम्प्रभुता की नीति को त्याग कर राज्य की मुख्यधारा में शामिल होने की बात कही है.

पढ़ें- बोडो समझौता : असम में उमड़ा जनसैलाब, पीएम मोदी बोले- '21वीं सदी में पूर्वोत्तर की नई शुरुआत'

दरअसल उल्फा का गठन 1979 में असम में हुआ था. अपने गठन से ही वह असम की सम्प्रभुता की मांग कर रहा है, हालांकि केंद्र की सभी सरकारें उल्फा की इस मांग को अस्वीकार करती रही हैं.

दरअसल प्रधानमंत्री मोदी ऐतिहासिक बोडो समझौते के बाद शुक्रवार को असम के कोकराझार पहुंचे थे, जहां उनका भव्य स्वागत किया गया था . बाद में उन्होंने वहां एक विशाल जनसभा को संबोधित भी किया, संबोधन के दौरान ही उन्होंने सभी उग्रवादी संगठनों को बातचीत में शामिल होने का आह्वान किया था.

Intro:New Delhi: A day after Prime Minister Narendra Modi gave a clarion call to militant organisations to come for negotiation table, Congress on Saturday claimed that talks with different militant outfits in northeast started during Congress regime.

Congress Rajya Sabha MP from Assam, Ripun Bora, however, said that it is the responsibility of the Governmnet to persue militant groups to shun the path of violence and bring them for talks.


Body:"It was during Congress regime talks started with militant groups. When PV Narsimha Rao was the Prime Minister and Hiteswar Saikia was the Chief Minister of Assam, the first talk started with United Liberation Front of Assam (Ulfa)," said Bora adding during that time many of the Ulfa leaders have come overground.

Mentionably it was in 1992, the then Congress government both at the Centre and State initiated a move to bring Ulfa for peace talks.

However, the attempt to bring Ulfa leadership for talks had failed as the leaders, who were released from jail for talks, took the opportunity to go underground and later flee to Bangladesh where they had set up their camps.

Later, several top Ulfa leaders have surrendered and joined main stream of life.

"Bringing underground organtions to the negotiation table is a very sensitive issue. And it should not be politicised," said Bora.

Significantly, Home Minister Amit Shah had recently said that it is due to the initiative taken by the BJP led central government since 2019 that many underground organtions came to the negotiation table.


Conclusion:"Insurgency and violence can't solve any problem. All rebel groups should shun the path of violence and come for talks...we believe that Ulfa should also come and they should leave their demand for a Sovereign state," said Bora.

Infact, ever since Ulfa was formed in 1979 in Assam, they have been demanding for Sovereignty of Assam. The demand was, however, denied by all successive governments at the Centre.

It may mentioned here that Prime Minister Modi on Friday has called all the militant organisations to come for talks. Prime Minister Modi gave this call while addressing a mammoth gathering in Assam's Kokrajhar district commemorating the historic Bodo Accord.

The central government is currently in talks with five militant groups of northeast including Khaplang and Issac Muivah factions of National Socialist Council of Nagaland (NSCN), United Peoples Democratic Solidarity (UPDS), Achik National Volunteer Council (ANVC), and United Liberation Front of Assam (Ulfa pro talk faction).

end.
Last Updated : Feb 29, 2020, 4:30 PM IST
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