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सोशल मीडिया के दुरुपयोग पर माकूल नियंत्रण इस चुनाव में संभव नहीं, कानून नाकाफी : पवन दुग्गल

साइबर विशेषज्ञ पवन दुग्गल ने सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के उपायों पर विस्तार से जानकारी दी है. पढ़ें क्या कहा पवन दुग्गल ने..

पवन दुग्गल
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Published : Apr 8, 2019, 12:03 AM IST

नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव में सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के लिये चुनाव आयोग मुस्तैद है, लेकिन जानकारों की राय में मौजूदा नियम कानूनों में प्रभावी प्रावधान नहीं होने के कारण आयोग की पहल कारगर हो पायेगी, इस पर संदेह है.

सोशल मीडिया के दुरुपयोग का चुनाव पर प्रभाव
भारत में सोशल मीडिया के पिछले कुछ सालों में तेजी से हुये प्रसार को देखते हुये चुनाव में इसके प्रभावी असर की संभावना से इंकार करना कठिन है. भारत में सोशल मीडिया के कंटेंट की सच्चाई को प्रमाणित नहीं करने की प्रवृत्ति, चुनाव में इसके दुरुपयोग के खतरे को बढ़ा देती हैं. लोगों की धारणायें बदलने में सक्षम सोशल मीडिया से मतदाताओं की सोच प्रभावित होने का खतरा बढ़ गया है.

सोशल मीडिया का दुरुपयोग रोकने के लिये मौजूदा कानून
सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने की दिशा में अभी हमने शुरुआत मात्र की है. चुनाव में सोशल मीडिया के दुरुपयोग से निपटने के लिये फिलहाल हमारे पास दो कानून हैं. पहला सूचना प्रोद्योगिकी (आईटी) कानून और दूसरा जनप्रतिनिधित्व कानून (आरपी).

नए दिशा-निर्देश बनाने की जरूरत
दोनों ही कानून चुनाव के दौरान आने वाली चुनौती से निपटने में सक्षम नहीं हैं. इसीलिये चुनाव आयोग को इसके लिये नये दिशानिर्देश बनाने पड़े. ये सभी फर्जी खबरों के प्रसार के खतरे की बढ़ती चुनौती से निपटने में पूरी तरह से नाकाफी हैं.

निगरानी एजेंसियां का नियंत्रण
विदेशों से संचालित सोशल मीडिया अकांउट पर नियंत्रण और प्रचार थमने के बाद 'साइलेंस पीरियड' में सोशल मीडिया से प्रचार को रोकने के लिये आईटी कानून और आरपी कानून के अलावा चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों में कोई प्रावधान नहीं है. यही खामियां फर्जी खबरों के प्रसार और सोशल मीडिया के दुरुपयोग का सबसे बड़ा कारण हैं.

सोशल मीडिया के दुरुपयोग में राजनीतिक दलों की भूमिका
चुनाव प्रक्रिया के प्रमुख भागीदार के रूप में राजनीतिक दलों के हित सर्वाधिक दांव पर होते हैं. इस कारण राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिये हर तरीका अपनाते हैं. सोशल मीडिया का दुरुपयोग भी इनमें से एक है.

मलेशिया की तरह कानून बनाया जाए
किसी उम्मीदवार को खुद साइलेंस पीरियड में सोशल मीडिया के मार्फत चुनाव प्रचार करने और फर्जी खबरों का प्रसार करने की कोई जरूरत नहीं है. यह काम उम्मीदवार की ओर से कोई भी कर सकता है. फर्जी खबरों को रोकने का एक ही उपाय है प्रभावी कानून को बना कर इसे प्रभावी रूप से लागू करना. मलेशिया में भी इसके लिये पुख्ता कानून है. भारत में ऐसा कानून नहीं होना दुखद है.

सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों की पहचान
फिलहाल हकीकत तो ये है कि 17वीं लोकसभा के चुनाव तो सोशल मीडिया के दुरुपयोग और फर्जी खबरों के खतरे के साये में ही लड़े जायेंगे. अब पूरा ध्यान अगले चुनाव में इन खतरों से निपटने में लगाना होगा. इस स्थिति से निपटने के लिये भविष्य में आर पी कानून और आईटी कानून में सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के सख्त प्रावधान करने के अलावा इसे भारतीय दंड संहिता में शामिल कर अपराध घोषित करना होगा.

10 साल तक चुनाव न लड़ने देने की सजा
साथ ही सोशल मीडिया का दुरुपयोग करने वालों को सख्त सजा और उम्मीदवारों को कम से कम दस साल तक चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित करने जैसे प्रावधान करना होगा. अगर ऐसा नहीं हुआ तो भारत को भी वही खामियाजा भुगतना होगा जो अमेरिका, राष्ट्रपति चुनाव में सोशल मीडिया के दुरुपयोग से भुगत रहा है.

राजनेता इसके दुरुपयोग में शामिल, इसलिए नहीं बनाते कानून
कानून बनाने का काम चुनाव आयोग का नहीं, सरकारों का है. लेकिन यह भी सच है कि भारत में कोई सरकार यह क्यों करना चाहेगी. क्योंकि राजनेता खुद इस दुरुपयोग के भागीदार होते हैं.

नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव में सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के लिये चुनाव आयोग मुस्तैद है, लेकिन जानकारों की राय में मौजूदा नियम कानूनों में प्रभावी प्रावधान नहीं होने के कारण आयोग की पहल कारगर हो पायेगी, इस पर संदेह है.

सोशल मीडिया के दुरुपयोग का चुनाव पर प्रभाव
भारत में सोशल मीडिया के पिछले कुछ सालों में तेजी से हुये प्रसार को देखते हुये चुनाव में इसके प्रभावी असर की संभावना से इंकार करना कठिन है. भारत में सोशल मीडिया के कंटेंट की सच्चाई को प्रमाणित नहीं करने की प्रवृत्ति, चुनाव में इसके दुरुपयोग के खतरे को बढ़ा देती हैं. लोगों की धारणायें बदलने में सक्षम सोशल मीडिया से मतदाताओं की सोच प्रभावित होने का खतरा बढ़ गया है.

सोशल मीडिया का दुरुपयोग रोकने के लिये मौजूदा कानून
सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने की दिशा में अभी हमने शुरुआत मात्र की है. चुनाव में सोशल मीडिया के दुरुपयोग से निपटने के लिये फिलहाल हमारे पास दो कानून हैं. पहला सूचना प्रोद्योगिकी (आईटी) कानून और दूसरा जनप्रतिनिधित्व कानून (आरपी).

नए दिशा-निर्देश बनाने की जरूरत
दोनों ही कानून चुनाव के दौरान आने वाली चुनौती से निपटने में सक्षम नहीं हैं. इसीलिये चुनाव आयोग को इसके लिये नये दिशानिर्देश बनाने पड़े. ये सभी फर्जी खबरों के प्रसार के खतरे की बढ़ती चुनौती से निपटने में पूरी तरह से नाकाफी हैं.

निगरानी एजेंसियां का नियंत्रण
विदेशों से संचालित सोशल मीडिया अकांउट पर नियंत्रण और प्रचार थमने के बाद 'साइलेंस पीरियड' में सोशल मीडिया से प्रचार को रोकने के लिये आईटी कानून और आरपी कानून के अलावा चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों में कोई प्रावधान नहीं है. यही खामियां फर्जी खबरों के प्रसार और सोशल मीडिया के दुरुपयोग का सबसे बड़ा कारण हैं.

सोशल मीडिया के दुरुपयोग में राजनीतिक दलों की भूमिका
चुनाव प्रक्रिया के प्रमुख भागीदार के रूप में राजनीतिक दलों के हित सर्वाधिक दांव पर होते हैं. इस कारण राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिये हर तरीका अपनाते हैं. सोशल मीडिया का दुरुपयोग भी इनमें से एक है.

मलेशिया की तरह कानून बनाया जाए
किसी उम्मीदवार को खुद साइलेंस पीरियड में सोशल मीडिया के मार्फत चुनाव प्रचार करने और फर्जी खबरों का प्रसार करने की कोई जरूरत नहीं है. यह काम उम्मीदवार की ओर से कोई भी कर सकता है. फर्जी खबरों को रोकने का एक ही उपाय है प्रभावी कानून को बना कर इसे प्रभावी रूप से लागू करना. मलेशिया में भी इसके लिये पुख्ता कानून है. भारत में ऐसा कानून नहीं होना दुखद है.

सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों की पहचान
फिलहाल हकीकत तो ये है कि 17वीं लोकसभा के चुनाव तो सोशल मीडिया के दुरुपयोग और फर्जी खबरों के खतरे के साये में ही लड़े जायेंगे. अब पूरा ध्यान अगले चुनाव में इन खतरों से निपटने में लगाना होगा. इस स्थिति से निपटने के लिये भविष्य में आर पी कानून और आईटी कानून में सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के सख्त प्रावधान करने के अलावा इसे भारतीय दंड संहिता में शामिल कर अपराध घोषित करना होगा.

10 साल तक चुनाव न लड़ने देने की सजा
साथ ही सोशल मीडिया का दुरुपयोग करने वालों को सख्त सजा और उम्मीदवारों को कम से कम दस साल तक चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित करने जैसे प्रावधान करना होगा. अगर ऐसा नहीं हुआ तो भारत को भी वही खामियाजा भुगतना होगा जो अमेरिका, राष्ट्रपति चुनाव में सोशल मीडिया के दुरुपयोग से भुगत रहा है.

राजनेता इसके दुरुपयोग में शामिल, इसलिए नहीं बनाते कानून
कानून बनाने का काम चुनाव आयोग का नहीं, सरकारों का है. लेकिन यह भी सच है कि भारत में कोई सरकार यह क्यों करना चाहेगी. क्योंकि राजनेता खुद इस दुरुपयोग के भागीदार होते हैं.

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