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'पाटली श्रीक्षेत्र' में 144 वर्षों तक भूमिगत थे भगवान श्री जगन्नाथ - पाटली श्रीक्षेत्र की गुफा

रक्तबाहु आक्रमणकारी ने श्री जगन्नाथ मंदिर पर पहला हमला किया था. उस दौरान मंदिर के पीठासीन देवताओं को रक्तबाहु के आक्रमण से बचाने के लिए सुबर्णपुर ले जाया गया था, जहां उन्हें सुरक्षित रखने के लिए भूमिगत कर दिया गया था. इस स्थान को भगवान जगन्नाथ के गुप्त निवास अथवा 'पाटली श्रीक्षेत्र' के रूप में वर्णित किया गया है.

Patali Srekhetra Hidden abode of Lord Jagannth
भगवान जगन्नाथ के छिपे हुए निवास
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Published : Jun 20, 2020, 8:11 PM IST

पुरी: कालिया ठाकुर (श्री जगन्नाथ) सिर्फ कलिंग (ओडिशा का प्राचीन नाम) के सम्राट नहीं बल्कि पूरे ब्रह्मांड के सर्वोच्च भगवान के रूप में प्रसिद्ध हैं. भगवान जगन्नाथ ओडिया जाति के मुकुट रत्न हैं. उनके लिए जगन्नाथ से बड़ा कोई और नाम नहीं है. प्राचीनकाल में बर्बर जबान (मुस्लिम) शासकों ने ओडिशा फतह के क्रम में आराध्य देवता की मूर्ति नष्ट करने के लिए श्री मंदिर (श्री जगन्नाथ मंदिर) पर कई बार हमला किया. लेकिन राज्य के वीरों ने हमलावरों के गौरव, शक्ति और क्षमता को ध्वस्त कर दिया.

मडाला पणजी (श्री जगन्नाथ मंदिर की घटनाओं का दर्ज इतिहास) के अनुसार रक्तबाहु आक्रमणकारी ने श्री जगन्नाथ मंदिर पर पहला हमला किया था. इस अवधि के दौरान मंदिर के पीठासीन देवताओं को रक्तबाहु के आक्रमण से बचाने के लिए सुबर्णपुर ले जाया गया था, जहां उन्हें सुरक्षित रखने के लिए भूमिगत कर दिया गया था. इस स्थान को भगवान जगन्नाथ के छिपे हुए निवास अथवा 'पाटली श्रीक्षेत्र' के रूप में वर्णित किया गया है.

भगवान जगन्नाथ का गुप्त निवास 'पाटली श्रीक्षेत्र'.

144 वर्षों तक भूमिगत रहे थे कालिया ठाकुर
यह जगह बिरमहाराजपुर के कोटासामलाई की त्रिकुट कंदरा (एक छोटी पहाड़ी) है, जो सुबर्णपुर जिले के उलुंडा ब्लॉक के अंतर्गत आती है. इस पवित्र स्थान में भगवान जगन्नाथ 144 वर्षों तक भूमिगत रहे थे. गुप्त रहते हुए भगवान ने इस स्थान पर अपनी क्रीड़ा जारी रखी थी. ऐसा कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ ने गुप्त निवास के लिए खुद इस स्थान को चुना था और अपना छिपा हुआ अतीत प्रदर्शित किया था. इसीलिए इस पहाड़ी को छलिया पहाड़ी भी कहा जाता है.

पाटली श्रीक्षेत्र की गुफाओं में भगवान की आकृति
भगवान श्री जगन्नाथ और अन्य देवताओं की मूर्तियां 144 सालों तक इस गुफा में छिपाई गई थीं. इसके बाद सोम वंश के राजा जजाती केशरी ने मूर्तियों को उबारा और उन्हें श्री मंदिर (पुरी का मुख्य मंदिर) में स्थापित किया. इसके प्रमाण के रूप में श्री जगन्नाथ की उत्कीर्ण आकृति अब भी 'पाटली श्रीक्षेत्र' की माधव गुफा में दिखाई देती है. वर्ष 2006 से छलिया पहाड़ी की तलहटी पर एक मनोरम और प्राकृतिक वातावरण के बीच श्रीक्षेत्र त्योहार मनाया जाता है.

पढ़ें- इस साल पुरी में रथ यात्रा पर रोक लगाने का आदेश वापस लेने के लिए न्यायालय में याचिका

श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन द्वारा इस पवित्र स्थान को प्रभु के एक अन्य सुखमय स्थल के रूप में मान्यता दी है, जिसके बाद से इस स्थान की सांस्कृतिक सुगंधि दूर-दूर तक फैल गई है. सुबर्णपुर जिले को रहस्यमयी भगवान श्री जगन्नाथ की यादों को जीवंत बनाए रखने के लिए समृद्ध और सुशोभित किया गया है. श्रद्धालुगण जगन्नाथ पुरी मंदिर के बाद यहां भी दर्शन के लिए आते हैं और श्री जगन्नाथ भगवान का आशीर्वाद ग्रहण करते हैं.

पुरी: कालिया ठाकुर (श्री जगन्नाथ) सिर्फ कलिंग (ओडिशा का प्राचीन नाम) के सम्राट नहीं बल्कि पूरे ब्रह्मांड के सर्वोच्च भगवान के रूप में प्रसिद्ध हैं. भगवान जगन्नाथ ओडिया जाति के मुकुट रत्न हैं. उनके लिए जगन्नाथ से बड़ा कोई और नाम नहीं है. प्राचीनकाल में बर्बर जबान (मुस्लिम) शासकों ने ओडिशा फतह के क्रम में आराध्य देवता की मूर्ति नष्ट करने के लिए श्री मंदिर (श्री जगन्नाथ मंदिर) पर कई बार हमला किया. लेकिन राज्य के वीरों ने हमलावरों के गौरव, शक्ति और क्षमता को ध्वस्त कर दिया.

मडाला पणजी (श्री जगन्नाथ मंदिर की घटनाओं का दर्ज इतिहास) के अनुसार रक्तबाहु आक्रमणकारी ने श्री जगन्नाथ मंदिर पर पहला हमला किया था. इस अवधि के दौरान मंदिर के पीठासीन देवताओं को रक्तबाहु के आक्रमण से बचाने के लिए सुबर्णपुर ले जाया गया था, जहां उन्हें सुरक्षित रखने के लिए भूमिगत कर दिया गया था. इस स्थान को भगवान जगन्नाथ के छिपे हुए निवास अथवा 'पाटली श्रीक्षेत्र' के रूप में वर्णित किया गया है.

भगवान जगन्नाथ का गुप्त निवास 'पाटली श्रीक्षेत्र'.

144 वर्षों तक भूमिगत रहे थे कालिया ठाकुर
यह जगह बिरमहाराजपुर के कोटासामलाई की त्रिकुट कंदरा (एक छोटी पहाड़ी) है, जो सुबर्णपुर जिले के उलुंडा ब्लॉक के अंतर्गत आती है. इस पवित्र स्थान में भगवान जगन्नाथ 144 वर्षों तक भूमिगत रहे थे. गुप्त रहते हुए भगवान ने इस स्थान पर अपनी क्रीड़ा जारी रखी थी. ऐसा कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ ने गुप्त निवास के लिए खुद इस स्थान को चुना था और अपना छिपा हुआ अतीत प्रदर्शित किया था. इसीलिए इस पहाड़ी को छलिया पहाड़ी भी कहा जाता है.

पाटली श्रीक्षेत्र की गुफाओं में भगवान की आकृति
भगवान श्री जगन्नाथ और अन्य देवताओं की मूर्तियां 144 सालों तक इस गुफा में छिपाई गई थीं. इसके बाद सोम वंश के राजा जजाती केशरी ने मूर्तियों को उबारा और उन्हें श्री मंदिर (पुरी का मुख्य मंदिर) में स्थापित किया. इसके प्रमाण के रूप में श्री जगन्नाथ की उत्कीर्ण आकृति अब भी 'पाटली श्रीक्षेत्र' की माधव गुफा में दिखाई देती है. वर्ष 2006 से छलिया पहाड़ी की तलहटी पर एक मनोरम और प्राकृतिक वातावरण के बीच श्रीक्षेत्र त्योहार मनाया जाता है.

पढ़ें- इस साल पुरी में रथ यात्रा पर रोक लगाने का आदेश वापस लेने के लिए न्यायालय में याचिका

श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन द्वारा इस पवित्र स्थान को प्रभु के एक अन्य सुखमय स्थल के रूप में मान्यता दी है, जिसके बाद से इस स्थान की सांस्कृतिक सुगंधि दूर-दूर तक फैल गई है. सुबर्णपुर जिले को रहस्यमयी भगवान श्री जगन्नाथ की यादों को जीवंत बनाए रखने के लिए समृद्ध और सुशोभित किया गया है. श्रद्धालुगण जगन्नाथ पुरी मंदिर के बाद यहां भी दर्शन के लिए आते हैं और श्री जगन्नाथ भगवान का आशीर्वाद ग्रहण करते हैं.

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