हैदराबाद : भारत सरकार ने पिछले वर्ष अनुच्छेद 370 के प्रावधानों में बदलाव किया था. इसके अलावा आर्टिकल 35-ए को भी रद्द किया जा चुका है. इसके बाद जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म हो गया और राज्य को एक केंद्र शासित प्रदेश बनाने का एलान किया गया. केंद्र के फैसले के बाद कश्मीरी पंडितों को कश्मीर घाटी में दोबारा बसाने को लेकर नए सिरे से चर्चा शुरू हो गई. अब जबकि केंद्र के फैसले को एक साल हो चुके हैं. ऐसे में पुनन कश्मीर संगठन ने पंडितों को दोबारा बसाने को लेकर सरकारों की उदासीनता पर सवाल खड़े किए हैं.
बता दें कि पनुन कश्मीर संगठन की स्थापना 1990 में कश्मीर के कश्मीरी हिंदुओं के पलायन के बाद की गई थी. इसमें लगभग 7,00,000 शरणार्थी कश्मीरी पंडित शामिल हैं. इस संगठन की मांग है कि कश्मीर के हिन्दुओं के लिये कश्मीर घाटी में एक अलग राज्य का निर्माण किया जाए.
कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी को लेकर पनुन कश्मीर के महासचिव राहुल राजदान का कहना है कि मेरे दृष्टिकोण से, जम्मू कश्मीर को लेकर सरकार और उसकी नीतियों की प्रमुख परीक्षण घाटी में कश्मीरी पंडितों के वापसी औप उनका पुनर्वास करना होगा. यह भारत पर एक बड़ा धब्बा है कि कश्मीरी पंडित अपने ही देश में 30 वर्षों से निर्वासन में रह रहा है. उन्होंने कहा कि कश्मीरी पंडित घाटी में अपनी वापसी की कम ही उम्मीद कर रहे हैं. राहुल का कहना है कि इसका एक कारण सरकार द्वारा किए गए वादे और भाषणों के अलावा कुछ ठोस कदम नहीं उठाना है.
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 और 35A को निरस्त करते हुए दावा किया कि यह कदम कश्मीरी पंडितों की सुरक्षित वापसी और पुनर्वास के लिए एक मार्ग प्रशस्त करेगा, लेकिन समुदाय को लगता है कि उनके लिए सरकार ने अब तक कुछ नहीं किया है.
राजदान ने सरकार की जम्मू-कश्मीर नीति के बारे में बात करते हुए कहा कि अनुच्छेद 370 और 35-ए के निरस्त होने के बाद हमें बहुत सारी उम्मीदें थीं कि सरकार हमारी वापसी के लिए ठोस कदम उठाएगी, लेकिन हमने अभी तक कुछ भी नहीं सुना है.' उन्होंने आगे कहा, 'सरकार कॉलोनियों, भूमि अनुदान और मौद्रिक लाभों के बारे में बात करती रहती है, लेकिन अभी तक कुछ भी सामने नहीं आया है.'
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गौरतलब है कि हाल ही में कश्मीरी पंडितों के एक समूह ने जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा और विशेष दर्जा बहाल करने की मांग की थी.