नई दिल्ली : एक छह साल का बच्चा स्कूल जाने के अपने रास्ते में पड़ने वाले एक छोटे से दुकान से जब बेगम अख्तर की गजल 'दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे' को सुनता था तो उसके कदम यूं ही रूक जाते थे. बाद में जाकर यही नन्हा सा बालक दुनिया में पंडित जसराज के नाम से जाना गया जिन्होंने अपने गायन में आध्यात्म को लाकर श्रोताओं को अपना मुरीद बनाया.
सोमवार, 16 अगस्त को अमेरिका में स्थित अपने घर में दिल का दौरा पड़ने के साथ इस महान संगीतज्ञ ने दुनिया को अलविदा कह दिया. पंडित जसराज भारतीय शास्त्रीय संगीत गायकों के स्वर्णिम युग के सितारों उस्ताद बड़े गुलाम अली खान, उस्ताद आमिर खान, पंडित भीमसेन जोशी और पंडित कुमार गंधर्व की परंपरा के अंतिम कड़ी थे. पंडित जसराज ने भारत ही नहीं, कनाडा और अमेरिका के लोगों को भी संगीत की शिक्षा दी. वह सन् 1972 से ही हैदराबाद में पंडित मोतीराम पंडित मणिराम संगीत समारोह का वार्षिक आयोजन किया करते थे.
वह 90 साल के थे, लेकिन इसके बावजूद वह संगीत के बारे में प्रशंसा करने से नहीं थकते थे और उनसे मिली इसी तारीफ से आजकल के संगीतकारों को बेहद प्रेरणा मिलती थी.
उनके करियर का विस्तार आठ दशक से अधिक लंबे समय तक रहा. महज 14 साल की उम्र में उन्होंने गायन में अपना पहला प्रशिक्षण प्राप्त किया, बाद में बड़े भाई पंडित प्रताप नारायण से उन्होंने तबला बजाने का प्रशिक्षण भी लिया. पंडित मणिराम से उन्होंने शास्त्रीय गायन की शिक्षा ली और बाद में मात्र 22 साल की आयु में जयवंत सिंह वाघेला, गुलाम कादिर खान और स्वामी वल्लभास दामुलजी के साथ उन्होंने नेपाल में अपने पहले सोलो कॉन्सर्ट में प्रस्तुति दी.
हवेली संगीत के इस विशेषज्ञ ने जसरंगी जुगलबंदी का भी निर्माण किया. वह मेवाती घराना से ताल्लुक रखते थे जिन्हें उनके समकालीन व जूनियरों द्वारा एक ऐसे कलाकार के रूप में याद किया जाता है जो खुद को नई-नई चीजों में ढालने से नहीं कतराते थे, लेकिन जब एक व्यक्तित्व के तौर पर वह मंच पर पहुंचते थे तब उन्हें अपनी कला से भिन्न महसूस करना काफी मुश्किल हो जाता था.
प्रख्यात सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खान पंडित जसराज के निधन को संगीत के एक स्वर्ण युग के अंत के तौर पर देखते हैं. उन्होंने कहा, 'मैंने साठ के दशक से पंडित जसराज के साथ कई कार्यक्रमों में हिस्सा लिया. उन्होंने बेहद ही सहजता से गायन को एक अनूठा आयाम दिया. वह एक ऐसे कलाकार थे जो अपने समय से काफी आगे थे. भारतीय शास्त्रीय संगीत के स्वर्ण युग के गायकों में वह अंतिम कलाकार थे जिनमें उस्ताद बड़े गुलाम अली खान साहब, उस्ताद अमीर खान साहब, पंडित भीमसेन जोशी और पंडित कुमार गंधर्व जैसे संगीतज्ञ शामिल थे. मेवाती घराने की पहचान आज उन्हीं की वजह से है. यह मेरे लिए एक बहुत बड़ी व्यक्तिगत क्षति है.'
उन्हें याद करते हुए मशहूर सितार वादक उस्ताद शुजात खान कहते हैं, 'मैं हमेशा उनसे कहा करता था कि उनकी प्रस्तुति के बाद ही मुझे अपनी प्रस्तुति पेश करते हुए काफी अजीब लगता था क्योंकि वह मुझसे काफी सीनियर थे, लेकिन वह इस बात को हमेशा हंसी में उड़ा देते थे. उनका जाना न केवल एक व्यक्तिगत क्षति है बल्कि यह पूरे देश के लिए एक नुकसान है. मुझे आज ग्रीन रूम मे बैठकर अपने बीच हुई बातें, हमारे सफर, कॉन्सर्ट सभी की बहुत याद आ रही है. उनकी अपनी एक अलग जगह थी. दिल्ली में कुछ साल पहले सुबह के वक्त आयोजित उनके एक कार्यक्रम को मैं कभी नहीं भुला सकता. उस दिन भैरव राग की उनकी प्रस्तुति ने मुझे एहसास दिलाया था कि संगीत का इंसान की भावनाओं के साथ क्या जोड़ है.'
प्रख्यात गायिका आशा भोंसले इस दिग्गज के बारे में कहती हैं, उनमें बच्चों की तरह उत्साह था. उनकी छत्रछाया में रहना एक आशीर्वाद था. वे पल काफी बेहतरीन थे. उनका जाना संगीत जगत की एक अपार क्षति है. आज मैंने अपने बड़े भाई को खो दिया.'
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अमेरिका से बात करते हुए सितार वादक शाहिद परवेज ने कहा कि संगीत की दुनिया के लिए पंडित भीमसेन जोशी के बाद पंडित जसराज का जाना एक बड़ी क्षति है. कई यादें उनसे जुड़ी हैं. वो हमेशा हमारी मदद के लिए तैयार रहते थे. उन्होंने ही मुझे पहली बार उस्ताद कहा था.
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(आईएएनएस)