नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने आज केरल सरकार से कहा कि ऐतिहासिक सबरीमाला मंदिर के प्रशासन के लिए एक विशेष कानून तैयार किया जाए.
न्यायमूर्ति एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्य सरकार से कहा कि अगले साल जनवरी के तीसरे सप्ताह तक उसके समक्ष कानून का मसौदा पेश किया जाए, जिसमें सबरीमाला मंदिर आने वाले तीर्थयात्रियों के कल्याण के पहलुओं को भी शामिल हों.
राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि उसने त्रावणकोर देवस्वओम बोर्ड को शासित करने वाले कानून में संशोधन तैयार किये हैं किए, जिसके तहत मंदिरों और उनके प्रशासन के मुद्दे आएंगे.
उन्होंने कहा कि कानून के प्रस्तावित मसौदे में मंदिर की सलाहकार समिति में महिलाओं का एक तिहाई प्रतिनिधित्व होगा.
इस पहलू ने न्यायालय में ही शीर्ष अदालत के सितंबर, 2018 के फैसले को लेकर बहस छिड़ गई. इस फैसले के अंतर्गत सबरीमाला मंदिर मे सभी आयु वर्ग की महिलाओं और लड़कियों को प्रवेश की अनुमति दी गई थी.
राज्य सरकार ने कहा कि फिलहाल तो उसका प्रस्ताव मंदिर की सलाहकार समिति में सिर्फ उन महिलाओं को ही प्रतिनिधत्व दिया जाएगा, जिनकी आयु 50 वर्ष से अधिक है.
इस पर पीठ के एक सदस्य न्यायाधीश ने संविधान पीठ के 28 सितंबर, 2018 के फैसले का जिक्र किया और कहा कि सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने संबंधी निर्देश अभी प्रभावी हैं.
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गौरतलब है कि शीर्ष अदालत 2011 में दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सबरीमाला मंदिर के प्रशासन का मुद्दा उठाया गया था.
राज्य सरकार ने इस साल अगस्त में न्यायालय से कहा था कि वह सबरीमाला मंदिर के प्रशासन के लिए अलग से कानून बनाने पर विचार कर रही है.
बता दें, सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश संबंधी फैसले पर पुनर्विचार के लिए दायर याचिकाओं को मुस्लिम और पारसी समुदाय की महिलओं के साथ होने वाले कथित पक्षपात से संबंधित मुद्दों के साथ पिछले सप्ताह तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 3:2 के बहुमत से सात सदस्यीय संविधान पीठ को सौंप दिया था.