लातेहार : कभी लाल आतंक के लिए बदनाम झारखंड के लातेहार में बदलाव की बयार शुरू हो चुकी है. यहां के बच्चे शिक्षा की अलख जगाकर उम्मीदों के जहान में अपना मुकाम हासिल करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन कोरोना काल में ऑनलाइन क्लास के बीच डिजिटल डिवाइड की बढ़ती खाई ने उनके सपनों पर ग्रहण लगा दिया है. इसी जिले में मशहूर नेतरहाट स्कूल भी है, लेकिन गांव के बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं मिलती.
लातेहार की आवोहवा में बारूद की गंध फैली हुई रहती थी. बड़ों के साथ बच्चे भी लाल सलाम की मकड़जाल में फंस कर जिंदगी गंवा रहे थे. ऐसे में बच्चों के मन में जागरूकता बढ़ी की शिक्षा ही ऐसा माध्यम है, जिसके जरिए अपने भविष्य को सुधारा जा सकता है. बच्चे इस बदलाव की ओर धीरे-धीरे बढ़ रहे थे, लेकिन लॉकडाउन ने कुठाराघात कर दिया. लातेहार में दशकों तक नक्सलियों की चहलकदमी के कारण विकास का एक कदम भी नहीं उठाया जा सका. जब ग्रामीणों को विकास के मायने समझ आए तो वह अपने बच्चों को स्कूल भेजने लगे. जिले में कुल 1 हजार 234 स्कूल हैं, जिसमें करीब 1 लाख 49 हजार बच्चे पढ़ते हैं. यह बच्चे अपना भविष्य गढ़ पाते उससे पहले ही कोरोना महामारी के चलते स्कूल बंद हो गए और पढ़ाई चौपट हो गई. राज्य सरकार ने वैकल्पिक व्यवस्था के तहत झारखंड में ऑनलाइन क्लास शुरू की, लेकिन लातेहार के बच्चे इसका फायदा नहीं ले पा रहे.
ऑनलाइन क्लास में केवल 27% बच्चे
यह जिला इतना पिछड़ा है कि ज्यादातर लोगों के पास स्मार्ट फोन नहीं हैं. जिनके पास स्मार्ट फोन है भी, वह भी इंटरनेट नहीं होने की वजह से किसी काम के नहीं. जिन बच्चों के अभिभावकों के पास स्मार्ट फोन है, वह काम से बाहर रहते हैं. शिक्षा विभाग से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक महज 27 फीसद बच्चे ही ऑनलाइन क्लास कर पा रहे हैं. हालांकि जो बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कर पा रहे हैं, वह इससे खुश हैं. ब्यूटी कुमारी और रूपा कुमारी उन चंद खुशनसीब छात्राओं में एक हैं, जिन्हें ऑनलाइन पढ़ाई की सुविधा मयस्सर है. वहीं रूपेश कुमार, अजय टाना भगत और मुकेश उरांव जैसे ज्यादा छात्र स्कूल बंद होने के बाद पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं.
नौनिहालों के भविष्य की चिंता
अभिभावकों ने बताया कि शहरी क्षेत्र के बच्चों के पास तो पढ़ाई के कई साधन है, परंतु ग्रामीण क्षेत्रों में भारी समस्या है. एक बच्चे के पिता दिनेश उरांव ने ईटीवी भारत को बताया कि से में एक ही उपाय है कि शिक्षक घर-घर घूमकर बच्चों को गाइडलाइन दें. वहीं एक और अभिभावक सोमर उरांव ने कहा कि गांवों में ऑनलाइन क्लास सफल नहीं हो सकता क्योंकि कभी बिजली की समस्या है को कभी नेटवर्क की. वह अपने बच्चों को मोबाइल चलाना भी नहीं सिखा सकते. हेरहंज स्कूल प्रबंधन समिति के अध्यक्ष विनायक कुमार और शिक्षक विकास जायसवाल की मानें तो वह अपने स्तर पर एक-एक कर बच्चों से मिलते हैं, लेकिन सभी से मिलना और पढ़ाना संभव नहीं है. विनय कुमार ने बताया कि उनके स्कूल में डेढ़ सौ से अधिक अभिभावकों के बच्चे पढ़ाई करते हैं, लेकिन केवल 21 अभिभावक ही व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़े हुए हैं. ऐसे में ऑनलाइन शिक्षा का सच्चाई खुद पता चल जाता है. वहीं शिक्षक विकास जायसवाल ने कहा कि लोग तो अपने स्तर से ऑनलाइन के साथ-साथ वन टू वन ग्रामीणों से मिलकर बच्चों की पढ़ाई को लेकर दिशा निर्देश देते रहते हैं, लेकिन कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां न नेटवर्क है और ना ही किसी के पास मोबाइल है. ऐसे क्षेत्रों में ऑनलाइन शिक्षा असंभव सा लगता है. जिले के समाजसेवी प्रदीप यादव के अनुसार ऑनलाइन फढ़ाई शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों के बीच शिक्षा में अंतर उत्पन्न कर दे रहा है. ऐसे में नौनिहालों के भविष्य की चिंता लाजमी है.
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अधिकारियों के पास हल नहीं
लातेहार जिला शिक्षा विभाग इन समस्याओं से बाखबर है. लातेहार बुनियादी विद्यालय के प्रधानाध्यापक बलराम उरांव और जिला शिक्षा अधीक्षक छठु विजय सिंह सरकार के कामों को गिना रहे हैं. उन्हें यह भी मालूम है कि 73 फीसद छात्र ऑनलाइन क्लास नहीं कर पा रहे हैं. उन्होंने कहा कि जिले में 27 फीसद अभिभावक ऑनलाइन एजुकेशन से जुड़े हुए हैं. इनके मोबाइल में टीचिंग मटेरियल भेजी जाती है, शेष छात्रों के शिक्षा के लिए भी विभाग के कर्मी और शिक्षक पूरी तरह से लगे हुए हैं. उन्हें भरोसा है कि बाकी छात्रों की पढ़ाई रुकने नहीं दी जाएगी लेकिन यह काम होगा कैसे, इसका कोई जवाब उनके पास नहीं है.
झारखंड के पिछड़े जिलों में कमोबेश लातेहार जैसे ही हालात हैं. झारखंड शिक्षा परियोजना की रिपोर्ट के अनुसार राज्य के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले 74 फीसद बच्चों तक डिजिटल कंटेंट नहीं पहुंच पा रहा है. यह डिजिटल खाई इतनी गहरी होती जा रही है, जिसे पाटने में लंबा वक्त लगेगा और वह भी तभी संभव है जब सरकारी सिस्टम से जुड़े लोग इसे गंभीरता से लेंगे.