नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने पिछले साल पांच अगस्त को जम्मू और कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करने वाले अनुच्छेद 370 और 35 ए को रद्द कर दिया था. इसी कड़ी में जम्मू और कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों लद्दाख और जम्मू-कश्मीर के रूप में विभाजित कर दिया गया था. केंद्र सरकार के इस फैसले को आज एक वर्ष हो गया है.
केंद्र सरकार ने जम्मू और कश्मीर से अनुच्छेद 370 रद्द करने के बाद यहां पर में कर्फ्यू जैसे प्रतिबंध लगा दिए गए थे. इतना ही नहीं यहां पर सरकार ने संचार व्यवस्था पर पूरी तरह से रोक लगा दी थी.
जम्मू कश्मीर प्रसाशन के अनुसार, बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों के मद्देनजर, लैंडलाइन, मोबाइल फोन और इंटरनेट सेवाओं को बाधित किया गया था.
गौरतलब है कि सात महीने बाद, जम्मू और कश्मीर में 2 जी इंटरनेट सेवाओं को बहाल कर दी गई. हालांकि अब तक 4 जी इंटरनेट सेवा बहाल नहीं की गई है.
4 जी इंटरनेट सेवा बहाल न होने के चलते यहां पर छात्रों, पत्रकारों, व्यापारियों, विदेशी कंपनियों में काम करने वाले लोगों, डॉक्टर और अन्य लोग को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है.
स्थानीय पत्रकारों की बात करें तो इंटरनेट की हाई-स्पीड ने होने के चलते काफी दिक्कतों का समाना करना पड़ रहा है.
राष्ट्रीय मीडिया संगठन के लिए काम करने वाले पत्रकार वसीम नबी ने कहा कि जब केंद्र सरकार ने सात महीने बाद घाटी में 2 जी इंटरनेट सेवा बहाल कर दिया गया था. इसके साथ ही केंद्र सरकार ने आश्वसन भी दिया था कि जल्द ही घाटी में 4 जी इंटरनेट सेवा बहाल की जाएगी.
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने यह भी कहा था जब घाटी में स्थित सामान्य हो जाएगी तो 4 जी इंटरनेट सेवाओं को बहाल कर दिया जाएगा, लेकिन अब इंटरनेट की हाई-स्पीड सेवाओं को बहाल नहीं किया गया है.
उन्होंने कहा कि घाटी में स्थिति न केवल शोचनीय है, बल्कि निंदनीय भी है. उन्होंने कहा कि हाई-स्पीड इंटरनेट न होने की वजह से स्कूली छात्रों की पढ़ाई नुकसान हो रही है. इसके चलते छात्र धीरे-धीरे उदास हो रहे हैं.
केंद्र सरकार ने कोरोना महामारी चलते देशभर के छात्रों के लिए ऑनलाइन कक्षाओं की घोषणा की, लेकिन जम्मू और कश्मीर में इंटरनेट का हाईस्पीड ने होने की वजह से छात्र ऑनलाइन क्लास नहीं कर पा रहे हैं. हालात बद से बदतर हो रहे हैं.
आपकों बता दें वर्तमान में घाटी में लगभग 1.5 मिलियन छात्र कश्मीर के निजी और सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे हैं.
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में मीडिया और अन्य लोगों की तरफ से दायर याचिकाओं में तर्क दिया गया था कि कोविड-19 महामारी की रोकथाम के मद्देनजर राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के बीच जम्मू एवं कश्मीर के निवासियों पर लगाए गए प्रतिबंध उनके स्वास्थ्य, शिक्षा, व्यवसाय और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे अधिकारों को प्रभावित करते हैं.
एक छात्र ने कहा ने कहा कि इंटरनेट की गति में धीमी होने के चलते स्कूली बच्चे कोई व्याख्यान डाउनलोड नहीं कर पा रहे हैं. छात्रों को व्याख्यान को डाउनलोड करने में घंटों लग जाते हैं, जिससे छात्रों के अंदर शिक्षा के बजाय अवसाद पैदा हो रहा है.
इंटरनेट को शिक्षा का एक महत्वपूर्ण स्रोत माना जाता है, लेकिन घाटी में एक वर्ष से हाई- स्पीड की इंटरनेट सेवा नहीं उपलब्ध है.
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एक नीट की तैयारी कर रही छात्रा फलक ने ईटीवी भारत को बताया कि छात्रों को घाटी में उपलब्ध 2 जी इंटरनेट से कोई लाभ नहीं मिलता है. प्रतियोगी परीक्षा के लिए हमारी तैयारी काफी हद तक प्रभावित हुई है.
शैक्षणिक संस्थान और स्कूल लगभग 12 महीने से बंद हैं. पांच अगस्त 2019 के बाद सबसे बड़ा प्रभाव शिक्षा प्रणाली और अर्थव्यवस्था पर पड़ा है.
हाई-स्पीड इंटरनेट की न होने की वजह से यहां की अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है.
इस बीच, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने दावा किया है कि जम्मू-कश्मीर में 4 जी इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध के हाटने के लिए अगली समीक्षा आने वाले दो महीनों में एक विशेष पैनल के माध्यम से की जाएगी.