हैदराबाद: आज के जमाने में 2 कमरों वाला घर बनाना भी आसान बात नहीं है. एक तो महंगाई की मार, दूसरा जमीन की कमी, लेकिन 400 साल पहले स्थिति एकदम अलग थी. परिवार बड़े होते थे, जिसके चलते लोग बड़े घर बनावाते थे. तेलंगाना के संगारेड्डी में बना ऐसा घर है, जिसमें 101 दरवाजे और 75 कमरे हैं. इसे 400 साल पहले बनाया गया था.
ये चार सौ साल पहले की बात है, जब गांव में सूखा पड़ा था. लोगों के पास खाना खाने को नहीं था. सभी फसलें खराब हो गईं थी. ऐसी स्थिति में सभी लोग जिनकी जीविका खेत-खलियान के भरोसे थी, वे भूख मर रहे थे. तब गांव के एक जमीदार ने इमारत निर्माण का काम शुरू किया. इस भवन निर्माण का मकसद लोगों को काम देना था, ताकि उन्हें दो जून की रोटी मिल सके.
संगारेड्डी जिले के मुनिपल्ली मंडल केंद्र में ये भवन पांच एकड़ जमीन में बनाया गया. ये भवन को बनाने का पूरा मकसद मानवता को जिंदा रखना था. इस काम को शुरू करने वाले जमींदार का नाम संगप्पा पटेल था. इस घर को बनाने के लिए 200 लोग लगातार एक साल तक काम करते रहे. इसके माध्यम से उन्हे रोजगार मिलता था, जिसके सहारे वे अपने परिवार वालों का पेट पालते थे.
इस घर की कई विशेषताएं हैं. घर की ऊंचाई 30 फीट है, वहीं घर में दों मुख्य द्वार हैं. पूरे घर में 101 दरवाजे,75 कमरे, पूजा के लिए कई कमरे, साथ ही गल्ला(राशन) रखने के लिए भी कई कमरे हैं. बड़े-भारी पत्थरों, चूना और बालू का इस्तेमाल कर इमारत को बनाया गया है. घर के चारों ओर बनी दीवार आठ फीट चौड़ी है. इनको पार करने के लिए बैल गाड़ियों का इस्तेमाल होता था. इमारत के चारों ओर चार ऊंचे टावर बनाए गए थे. इस घर के सभी दरवाजे टीक की लकड़ी से बनाए गए थे, वहीं घर की दीवारों और दरवाजों पर तरह-तरह के चित्र चित्रित किए गए थे.
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गांव वालों से बातचीत के दौरान पता चला कि मंडाल गांव का पहला स्कूल इस भवन के अंदर ही शुरू किया गया. साथ ही कई उर्दू और तेलगू मीडिया केंद्र भी यहां चलाए गए. स्कूल के कई बच्चे इस इमारत में बने छात्रावास में रहते थे. कुछ समय पहले तक ग्राम पंचायत का दफ्तर भी इसी भवन में चलता था. गांव वाले जमींदार की तारीफ करते हैं और उन्हें मानवता की मिसाल के तौर पर देखते हैं. जमींदार ने गांव में गरीबों को जमीने भी दान में दी, जिसमें वे शादी समारोह और मंगल कार्य करते हैं. साथ ही वे गरीबों की बेटियों की शादी में गहने भी दान में देते थे.
इन दिनों इस भवन में जमींदार की नौवीं पुश्त रह रही है. ये सब अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया है. समय बीतने के साथ जमींदार परिवार के पास अब उतनी जमीन नहीं रह गई. उनका हाल बस अब ऐसा है कि वे अपना भरण-पोषण कर पा रहे हैं. उनके लिए अब इस बड़े भवन का सही से रखरखाव कर पाना भी मुश्किल है. घर के चारों ओर बनी दीवार में अब दरारें आ गई हैं, कमरे ढह रहे हैं और धीरे-धीरे इस 400 साल पुरानी धरोहर का हाल बदतर हो रहा है. परिवार वालों की मांग है कि सरकार उनकी मदद करे ताकि उन लोगों को दिक्कतों का सामना करना नहीं प ड़े.