ETV Bharat / bharat

हमें खुद को बदलकर डालनी होगी कोरोना के साथ जीने की आदत

ऐसा लगता है कि मनुष्य को अब कोरोना वायरस के साथ जीने की आदत डालनी होगी. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि कोरोना वायरस अब शायद कभी खत्म नहीं होगा. वहीं महामारी पर काबू पाने वाले या लॉकडाउन हटाने पर विचार करने वाले देश यह मानते हैं कि भुखमरी कोरोना की तुलना में बड़ा जोखिम है.

author img

By

Published : May 14, 2020, 3:35 PM IST

Updated : May 14, 2020, 4:39 PM IST

photo
प्रतीकात्मक तस्वीर.

हैदराबाद : जीने का नाम जिंदगी है और मनुष्य हर परिस्थिति में जीने का नया तरीका खोज ही लेता है. कोरोना संकट से उत्पन्न लॉकडाउन के बादल अब धीरे-धीरे छंटने शुरू हो गए हैं. एक अंतहीन अंधेरी सुरंग की लंबी यात्रा के बाद प्रकाश की तरफ बढ़ने को हम आतुर हो चले हैं.

बच्चे स्कूल जाने के लिए तैयार हो रहे हैं. एक नई भोर की तलाश में लोग निकल रहे हैं. हमने भी कमर कस ली है.

भले ही कोरोना संकट अभी खत्म नहीं हुआ है और हम महामारी के साये में अब भी जी रहे हैं, लेकिन सरकारें अर्थव्यवस्था की बदहाली को सुधारने के लिए अब पूरी तरह से तैयार है, लेकिन अब आगे का लॉकडाउन सबसे अलग होगा. इसमें कोरोना से बचने के लिए मास्क पहनना अनिवार्य होगा. इसमें समाजिक दूरियां भी होंगी. पहले की तरह हाथ मिलाकर पास-पास बैठने की आदत अब बदलने की जरूरत है.

हमें कोरोना महामारी को देखते हुए आगे भी जब तक इसका प्रकोप पूरी तरह से समाप्त नहीं हो जाता तब तक सामाजिक दूरियों का पालन करना होगा. लोगों को नमस्ते कर उनका अभिवादन करने की आदत डालनी होगी.

वैसे, इतिहासकारों का मानना है कि अगर जनता कम भयभीत है और मृत्यु दर कम है तो इसका मतलब महामारी नियंत्रण में है, लेकिन कोरोना महामारी को लेकर अभी तक ऐसे कोई संकेत नहीं मिले हैं. हमारे पास कोरोना से लड़ने के लिए कोई वैक्सीन भी नहीं है और हमें यह भी ज्ञात नहीं है कि कोरोना वैक्सीन की खोज कब तक हो पाएगी.

दूसरी तरफ महामारी पर काबू पाने वाले या लॉकडाउन हटाने पर विचार करने वाले देश यह मानते हैं कि भुखमरी कोरोना की तुलना में बड़ा जोखिम है.

क्योंकि पेट की आग से बड़ा कोई कष्ट नहीं होता है. यही सच्चाई है और यही लॉकडाउन समाप्त करने का पर्याप्त कारण भी हो सकता है.अब विश्व नेताओं ने स्पष्ट किया है कि दुनिया को अब कोरोना वायरस के साथ रहना सीखना चाहिए.यह अच्छी बात है कि भारत जैसे देशों में, रोग जागरूकता और बढ़ती चिकित्सा सुविधाओं ने अपने नागरिकों में विश्वास पैदा किया है.

कोरोना से लड़ने और देश की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए दुनिया भर में कार्यालय नए नियमों के साथ तैयार हो रहे हैं. अब कार्यालय में रोटेशन व्यवस्था लागू की जाएगी और कर्मचारी इसी व्यवस्था के तहत काम करेंगे. सॉफ्टवेयर कंपनियां अपने कर्मचारियों के लिए वर्क फ्रॉम होम (Work From Home) को बढ़ावा दे रही है. इसके साथ सामाजिक दूरी, स्वच्छता और सैनिटाइज से सुसज्जित कक्षाओं पर जोर दिया जा रहा है.विश्व की अर्थव्यवस्थाओं को फिर से शुरू करना स्कूलों को फिर से खोलने के बीच एक गहरा कनेक्शन है. देखिए जब तक स्कूल फिर से नहीं खुल जाते, तब तक कामकाजी माता-पिता में से कोई भी वापस कार्यालय नहीं जा सकता है. इसलिए यहां स्कूलों को फिर से शुरू करना आवश्यक है.

यही एक मुख्य कारण था जिसने जर्मनी और डेनमार्क को स्कूलों और डेकेयर सेंटरों को फिर से खोलने के लिए प्रेरित किया. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि स्वीडन ने अपने स्कूलों को बिल्कुल बंद नहीं किया है, लेकिन राष्ट्र ने कोरोना संकट में सख्ती से सामाजिक भेद को लागू किया.

ऑस्ट्रिया इस सप्ताह स्कूलों को फिर से खोल रहा है. प्रत्येक कक्षा में, छात्रों को दो समूहों में विभाजित किया जाएगा. ए समूह में छात्र सोमवार से बुधवार तक कक्षाओं में भाग लेंगे और बी समूह में गुरुवार और शुक्रवार को भाग लेंगे. जो लोग घर पर रहना चाहते हैं, वह ऑनलाइन कक्षाओं का लाभ उठा सकते हैं.

कई देशों में 40 छात्र वाले कक्षाओं में 20 छात्रों को ही स्वीकार कर रहे हैं. जर्मनी के न्यूस्ट्रेलिट्ज (Neustrelitz) में एक उच्च विद्यालय, अपने छात्रों को स्व-प्रशासित परीक्षण किट वितरित कर रहा है. गर्मी छुट्टियों में भारत में स्कूल बंद रहते हैं. वहीं यहां दसवीं और इंटरमीडिएट परीक्षा आयोजित करने की व्यवस्था की जा रही है.

कई विश्वविद्यालय पहले से ही ऑनलाइन मोड के माध्यम से व्याख्यान दे रहे हैं. कोरोना महामारी को देखते हुए जर्मनी में त्योहारों या आयोजनों के लिए दो से अधिक परिवार शामिल नहीं हो सकते हैं. न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया ने इसी तरह के नियम बनाए हैं. फ्रांस ने अपने लॉकडाउन मानदंडों में ढील दी है. लगभग दो महीने के बाद, फ्रेंच बिना परमिट के अपने घरों से बाहर निकलने में सक्षम हुआ है. यहां मेट्रो में सामाजिक दूरियों का विशेष ध्यान रखा जा रहा है.

स्पेन के आधे हिस्से में लॉकडाउन प्रतिबंध हटा दिए गए हैं. ऑस्ट्रिया के वियना में एक पार्क बनाया गया है. इस पार्क को सामाजिक दूरी को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है. प्रत्येक प्रवेश द्वार पर एक गेट है. यहां एक समय में प्रति पथ केवल एक व्यक्ति को अनुमति दी जाती है. दूसरों को अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है. विशेषज्ञों का सुझाव है कि लॉकडाउन समाप्त करने से पहले इन कारकों पर विचार किया जाना चाहिए –

  • 1. प्रत्येक कोरोना रोगी को चिकित्सा सेवाएं प्रदान करने की क्षमता.
  • 2. प्रत्येक कोरोना संक्रमित रोगी का परीक्षण करने के लिए किट की उपलब्धता.
  • 3. प्रत्येक रोगी और उनके संपर्कों का पता लगाने और उनकी निगरानी के लिए संसाधन.

भारत में शर्तों के साथ कुछ ट्रेनों की सेवाएं निर्धारित स्थान के लिए शुरू कर दी गई हैं. वैसे ही बसों और टैक्सियों को फिर से शुरू करने की संभावना है.

अब से, 40 सीटर बस में केवल 20 लोग यात्रा कर सकते हैं. कई भारतीय राज्यों में सड़क परिवहन निगम (RTC) ऐसे कई नियमों को लागू करने की योजना बना रहा है. यह अनुमान है कि सालाना 4.5 करोड़ भारतीय काम की तलाश में एक राज्य से दूसरे राज्य में जाते हैं.

लॉकडाउन के कारण लाखों प्रवासी श्रमिकों ने अपनी आजीविका खो दी और बेघर हो गए. इन परिस्थितियों में उनमें से कुछ पैदल ही अपने घरों को निकल लिए. इन लोगों को अब विशेष ट्रेनों और बसों के माध्यम से उनके गंतव्य के लिए भेजा जा रहा है. वहीं विदेश में फंसे भारतीयों को वापस लाने के लिए विशेष उड़ान सेवाएं शुरू की गई हैं.

शंघाई डिजनीलैंड पिछले सोमवार को फिर से खुल गया. प्रशासन ने आगंतुकों के लिए मास्क पहनना और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना अनिवार्य कर दिया है.

चीनी सरकार ने डिजनीलैंड में प्रति दिन 24,000 आगंतुकों की ऊपरी सीमा तय की है, जो सामान्य संख्या के एक तिहाई से भी कम है. लॉकडाउन के बाद से फिर से खोला गया यह पहला डिजनीलैंड है. इसे फिर से शुरू करने के बाद डिज्नी का शेयर मूल्य आठ प्रतिशत तक बढ़ गया है.

परिस्थितियां चाहे जैसी भी हो मनुष्य ने उस पर हमेशा विजय प्राप्त किया है. अब हमारा मुकाबला कोरोना से है. इस महामारी से लड़ने के लिए हमने कमर कस लिया है. हालांकि यह हमारे साथ अधिक समय तक रह सकता है, लेकिन हमें आशा नहीं यकीन है कि एक दिन हम इस महामारी पर विजय अवश्य प्राप्त करेंगे.

हैदराबाद : जीने का नाम जिंदगी है और मनुष्य हर परिस्थिति में जीने का नया तरीका खोज ही लेता है. कोरोना संकट से उत्पन्न लॉकडाउन के बादल अब धीरे-धीरे छंटने शुरू हो गए हैं. एक अंतहीन अंधेरी सुरंग की लंबी यात्रा के बाद प्रकाश की तरफ बढ़ने को हम आतुर हो चले हैं.

बच्चे स्कूल जाने के लिए तैयार हो रहे हैं. एक नई भोर की तलाश में लोग निकल रहे हैं. हमने भी कमर कस ली है.

भले ही कोरोना संकट अभी खत्म नहीं हुआ है और हम महामारी के साये में अब भी जी रहे हैं, लेकिन सरकारें अर्थव्यवस्था की बदहाली को सुधारने के लिए अब पूरी तरह से तैयार है, लेकिन अब आगे का लॉकडाउन सबसे अलग होगा. इसमें कोरोना से बचने के लिए मास्क पहनना अनिवार्य होगा. इसमें समाजिक दूरियां भी होंगी. पहले की तरह हाथ मिलाकर पास-पास बैठने की आदत अब बदलने की जरूरत है.

हमें कोरोना महामारी को देखते हुए आगे भी जब तक इसका प्रकोप पूरी तरह से समाप्त नहीं हो जाता तब तक सामाजिक दूरियों का पालन करना होगा. लोगों को नमस्ते कर उनका अभिवादन करने की आदत डालनी होगी.

वैसे, इतिहासकारों का मानना है कि अगर जनता कम भयभीत है और मृत्यु दर कम है तो इसका मतलब महामारी नियंत्रण में है, लेकिन कोरोना महामारी को लेकर अभी तक ऐसे कोई संकेत नहीं मिले हैं. हमारे पास कोरोना से लड़ने के लिए कोई वैक्सीन भी नहीं है और हमें यह भी ज्ञात नहीं है कि कोरोना वैक्सीन की खोज कब तक हो पाएगी.

दूसरी तरफ महामारी पर काबू पाने वाले या लॉकडाउन हटाने पर विचार करने वाले देश यह मानते हैं कि भुखमरी कोरोना की तुलना में बड़ा जोखिम है.

क्योंकि पेट की आग से बड़ा कोई कष्ट नहीं होता है. यही सच्चाई है और यही लॉकडाउन समाप्त करने का पर्याप्त कारण भी हो सकता है.अब विश्व नेताओं ने स्पष्ट किया है कि दुनिया को अब कोरोना वायरस के साथ रहना सीखना चाहिए.यह अच्छी बात है कि भारत जैसे देशों में, रोग जागरूकता और बढ़ती चिकित्सा सुविधाओं ने अपने नागरिकों में विश्वास पैदा किया है.

कोरोना से लड़ने और देश की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए दुनिया भर में कार्यालय नए नियमों के साथ तैयार हो रहे हैं. अब कार्यालय में रोटेशन व्यवस्था लागू की जाएगी और कर्मचारी इसी व्यवस्था के तहत काम करेंगे. सॉफ्टवेयर कंपनियां अपने कर्मचारियों के लिए वर्क फ्रॉम होम (Work From Home) को बढ़ावा दे रही है. इसके साथ सामाजिक दूरी, स्वच्छता और सैनिटाइज से सुसज्जित कक्षाओं पर जोर दिया जा रहा है.विश्व की अर्थव्यवस्थाओं को फिर से शुरू करना स्कूलों को फिर से खोलने के बीच एक गहरा कनेक्शन है. देखिए जब तक स्कूल फिर से नहीं खुल जाते, तब तक कामकाजी माता-पिता में से कोई भी वापस कार्यालय नहीं जा सकता है. इसलिए यहां स्कूलों को फिर से शुरू करना आवश्यक है.

यही एक मुख्य कारण था जिसने जर्मनी और डेनमार्क को स्कूलों और डेकेयर सेंटरों को फिर से खोलने के लिए प्रेरित किया. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि स्वीडन ने अपने स्कूलों को बिल्कुल बंद नहीं किया है, लेकिन राष्ट्र ने कोरोना संकट में सख्ती से सामाजिक भेद को लागू किया.

ऑस्ट्रिया इस सप्ताह स्कूलों को फिर से खोल रहा है. प्रत्येक कक्षा में, छात्रों को दो समूहों में विभाजित किया जाएगा. ए समूह में छात्र सोमवार से बुधवार तक कक्षाओं में भाग लेंगे और बी समूह में गुरुवार और शुक्रवार को भाग लेंगे. जो लोग घर पर रहना चाहते हैं, वह ऑनलाइन कक्षाओं का लाभ उठा सकते हैं.

कई देशों में 40 छात्र वाले कक्षाओं में 20 छात्रों को ही स्वीकार कर रहे हैं. जर्मनी के न्यूस्ट्रेलिट्ज (Neustrelitz) में एक उच्च विद्यालय, अपने छात्रों को स्व-प्रशासित परीक्षण किट वितरित कर रहा है. गर्मी छुट्टियों में भारत में स्कूल बंद रहते हैं. वहीं यहां दसवीं और इंटरमीडिएट परीक्षा आयोजित करने की व्यवस्था की जा रही है.

कई विश्वविद्यालय पहले से ही ऑनलाइन मोड के माध्यम से व्याख्यान दे रहे हैं. कोरोना महामारी को देखते हुए जर्मनी में त्योहारों या आयोजनों के लिए दो से अधिक परिवार शामिल नहीं हो सकते हैं. न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया ने इसी तरह के नियम बनाए हैं. फ्रांस ने अपने लॉकडाउन मानदंडों में ढील दी है. लगभग दो महीने के बाद, फ्रेंच बिना परमिट के अपने घरों से बाहर निकलने में सक्षम हुआ है. यहां मेट्रो में सामाजिक दूरियों का विशेष ध्यान रखा जा रहा है.

स्पेन के आधे हिस्से में लॉकडाउन प्रतिबंध हटा दिए गए हैं. ऑस्ट्रिया के वियना में एक पार्क बनाया गया है. इस पार्क को सामाजिक दूरी को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है. प्रत्येक प्रवेश द्वार पर एक गेट है. यहां एक समय में प्रति पथ केवल एक व्यक्ति को अनुमति दी जाती है. दूसरों को अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है. विशेषज्ञों का सुझाव है कि लॉकडाउन समाप्त करने से पहले इन कारकों पर विचार किया जाना चाहिए –

  • 1. प्रत्येक कोरोना रोगी को चिकित्सा सेवाएं प्रदान करने की क्षमता.
  • 2. प्रत्येक कोरोना संक्रमित रोगी का परीक्षण करने के लिए किट की उपलब्धता.
  • 3. प्रत्येक रोगी और उनके संपर्कों का पता लगाने और उनकी निगरानी के लिए संसाधन.

भारत में शर्तों के साथ कुछ ट्रेनों की सेवाएं निर्धारित स्थान के लिए शुरू कर दी गई हैं. वैसे ही बसों और टैक्सियों को फिर से शुरू करने की संभावना है.

अब से, 40 सीटर बस में केवल 20 लोग यात्रा कर सकते हैं. कई भारतीय राज्यों में सड़क परिवहन निगम (RTC) ऐसे कई नियमों को लागू करने की योजना बना रहा है. यह अनुमान है कि सालाना 4.5 करोड़ भारतीय काम की तलाश में एक राज्य से दूसरे राज्य में जाते हैं.

लॉकडाउन के कारण लाखों प्रवासी श्रमिकों ने अपनी आजीविका खो दी और बेघर हो गए. इन परिस्थितियों में उनमें से कुछ पैदल ही अपने घरों को निकल लिए. इन लोगों को अब विशेष ट्रेनों और बसों के माध्यम से उनके गंतव्य के लिए भेजा जा रहा है. वहीं विदेश में फंसे भारतीयों को वापस लाने के लिए विशेष उड़ान सेवाएं शुरू की गई हैं.

शंघाई डिजनीलैंड पिछले सोमवार को फिर से खुल गया. प्रशासन ने आगंतुकों के लिए मास्क पहनना और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना अनिवार्य कर दिया है.

चीनी सरकार ने डिजनीलैंड में प्रति दिन 24,000 आगंतुकों की ऊपरी सीमा तय की है, जो सामान्य संख्या के एक तिहाई से भी कम है. लॉकडाउन के बाद से फिर से खोला गया यह पहला डिजनीलैंड है. इसे फिर से शुरू करने के बाद डिज्नी का शेयर मूल्य आठ प्रतिशत तक बढ़ गया है.

परिस्थितियां चाहे जैसी भी हो मनुष्य ने उस पर हमेशा विजय प्राप्त किया है. अब हमारा मुकाबला कोरोना से है. इस महामारी से लड़ने के लिए हमने कमर कस लिया है. हालांकि यह हमारे साथ अधिक समय तक रह सकता है, लेकिन हमें आशा नहीं यकीन है कि एक दिन हम इस महामारी पर विजय अवश्य प्राप्त करेंगे.

Last Updated : May 14, 2020, 4:39 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.