नई दिल्ली: नोटा, यानि नॉन ऑफ द अबव. यह विकल्प एक तरफ वोटरों के लिए उत्सुकता जगाए रखता है, वहीं उम्मीदवार इससे लगातार परेशान हो रहे हैं. कई बार ऐसी स्थिति हो जाती है, जिस पर उम्मीदवार को यकीन करना मुश्किल हो जाता है. वे हारते तो बहुत कम मतों से हैं, लेकिन नोटा में मतो की संख्या उससे कई गुणा ज्यादा होता है.
पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए नोटा पीड़ित किसानों, बेरोजगार युवाओं और असंतुष्ट जनता को नोटा पर बटन दबाने के लिए मजबूर कर सकता है. इस बारे में जब सेवानिवृत्त अधिकारी कमलकांत जायसवाल से पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि मैं खुद नोटा का इस्तेमाल कर चुका हूं.
पढ़ें- अरुणाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव : 29 प्रत्याशियों का है आपराधिक रिकॉर्ड
उन्होंने कहा कि जब आप जनता को अच्छा विकल्प नहीं देंगे, तो वो कया करेंगे? उनके अनुसार नोटा लोगों को राजनीतिक पार्टियों से असहमति जताने का अवसर देता है. इसके माध्यम से मतदाता राजनीतिक दल से असंतुष्टि जाहिर कर सकता है.
उन्होंने कहा कि अगर नागरिक उम्मीदवारों से असंतुष्ट हैं, तो उन्हें निश्चित रूप से नोटा विकल्प का प्रयोग करना चाहिए. यह राजनीतिक दलों के लिए एक संकेत होगा कि उन्हें उम्मीदवारों की पसंद का ख्याल रखना चाहिए.
आपको बता दें कि हाल ही में एडीआर ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसके मुताबिक 2013 से 2017 तक हुए चुनाव में करीब 1.3 करोड़ मतदाताओं ने नोटा का चुनाव किया.