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'नोटा से घबरा जाते हैं उम्मीदवार', जानें क्या है एक्सपर्ट की राय

NOTA पर राजनीतिक दलों की चिंता बढ़ती जा रही है. कई बार उम्मीदवार जितने मतों से हारते हैं, उससे ज्यादा मत नोटा में चला जाता है. क्या कहते हैं एक्सपर्ट, जानें.

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Published : Apr 9, 2019, 9:46 PM IST

नई दिल्ली: नोटा, यानि नॉन ऑफ द अबव. यह विकल्प एक तरफ वोटरों के लिए उत्सुकता जगाए रखता है, वहीं उम्मीदवार इससे लगातार परेशान हो रहे हैं. कई बार ऐसी स्थिति हो जाती है, जिस पर उम्मीदवार को यकीन करना मुश्किल हो जाता है. वे हारते तो बहुत कम मतों से हैं, लेकिन नोटा में मतो की संख्या उससे कई गुणा ज्यादा होता है.

पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए नोटा पीड़ित किसानों, बेरोजगार युवाओं और असंतुष्ट जनता को नोटा पर बटन दबाने के लिए मजबूर कर सकता है. इस बारे में जब सेवानिवृत्त अधिकारी कमलकांत जायसवाल से पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि मैं खुद नोटा का इस्तेमाल कर चुका हूं.

ईटीवी भारत से बात करते कमलकांत जायसवाल

पढ़ें- अरुणाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव : 29 प्रत्याशियों का है आपराधिक रिकॉर्ड

उन्होंने कहा कि जब आप जनता को अच्छा विकल्प नहीं देंगे, तो वो कया करेंगे? उनके अनुसार नोटा लोगों को राजनीतिक पार्टियों से असहमति जताने का अवसर देता है. इसके माध्यम से मतदाता राजनीतिक दल से असंतुष्टि जाहिर कर सकता है.

उन्होंने कहा कि अगर नागरिक उम्मीदवारों से असंतुष्ट हैं, तो उन्हें निश्चित रूप से नोटा विकल्प का प्रयोग करना चाहिए. यह राजनीतिक दलों के लिए एक संकेत होगा कि उन्हें उम्मीदवारों की पसंद का ख्याल रखना चाहिए.

आपको बता दें कि हाल ही में एडीआर ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसके मुताबिक 2013 से 2017 तक हुए चुनाव में करीब 1.3 करोड़ मतदाताओं ने नोटा का चुनाव किया.

नई दिल्ली: नोटा, यानि नॉन ऑफ द अबव. यह विकल्प एक तरफ वोटरों के लिए उत्सुकता जगाए रखता है, वहीं उम्मीदवार इससे लगातार परेशान हो रहे हैं. कई बार ऐसी स्थिति हो जाती है, जिस पर उम्मीदवार को यकीन करना मुश्किल हो जाता है. वे हारते तो बहुत कम मतों से हैं, लेकिन नोटा में मतो की संख्या उससे कई गुणा ज्यादा होता है.

पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए नोटा पीड़ित किसानों, बेरोजगार युवाओं और असंतुष्ट जनता को नोटा पर बटन दबाने के लिए मजबूर कर सकता है. इस बारे में जब सेवानिवृत्त अधिकारी कमलकांत जायसवाल से पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि मैं खुद नोटा का इस्तेमाल कर चुका हूं.

ईटीवी भारत से बात करते कमलकांत जायसवाल

पढ़ें- अरुणाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव : 29 प्रत्याशियों का है आपराधिक रिकॉर्ड

उन्होंने कहा कि जब आप जनता को अच्छा विकल्प नहीं देंगे, तो वो कया करेंगे? उनके अनुसार नोटा लोगों को राजनीतिक पार्टियों से असहमति जताने का अवसर देता है. इसके माध्यम से मतदाता राजनीतिक दल से असंतुष्टि जाहिर कर सकता है.

उन्होंने कहा कि अगर नागरिक उम्मीदवारों से असंतुष्ट हैं, तो उन्हें निश्चित रूप से नोटा विकल्प का प्रयोग करना चाहिए. यह राजनीतिक दलों के लिए एक संकेत होगा कि उन्हें उम्मीदवारों की पसंद का ख्याल रखना चाहिए.

आपको बता दें कि हाल ही में एडीआर ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसके मुताबिक 2013 से 2017 तक हुए चुनाव में करीब 1.3 करोड़ मतदाताओं ने नोटा का चुनाव किया.

Intro:New Delhi: A trend for opting NOTA (None of the Above) has started worrying the major political parties for the upcoming elections as the right to reject the political candidates has been gaining popularity amongst the disenchanted Indian voters. As per the past records of elections, this button, at the bottom of the voting machines after the names of candidates, could appeal a number of distressed farmers, jobless youth and disenchanted citizens.


Body:When asked about this issue, signatory Kamal Kant Jaswal, a retired bureaucrat who is now associated with an NGO, namely Common Cause, said, "I've exercised this practice by myself. If you do not give any worthwhile choice to the voters, what will they do? NOTA has altleast give an opportunity, to the voters, of expressing their disaffection with the functional political parties. Through this, the voter has at least an opportunity to show that he/she is disenchanted with the way these political parties are selecting their candidates."

"Citizens have reasons to be dissatisfied with the candidates who are infield. So, they should certainly exercise the NOTA option. It'll be a signal to the political parties that they should be more discerning in their choice of candidates," he added.

According to a report published by the election watchdog, Association for Democratic Reforms, analyzing the NOTA votes in the elections between 2013 and 2017, it had secured 1.33 crore votes in the State Assembly elections and 2014 Lok Sabha Elections.


Conclusion:The Election Commission introduced the NOTA option in 2013 State Assembly elections of Chhattisgarh, Mizoram, Rajasthan, Delhi and Madhya Pradesh, for the first time, which was later used in 2014 Lok Sabha elections as well. The Supreme Court also stated in its judgment that not allowing a person to cast a vote negatively "defeats the very freedom of expression under Article 21."

Mentioning a suggestion over this matter to create an impact of NOTA in elections, Jaswal said, "A law or provision should be made that when NOTA becomes the winner then repolls should be held in that constituency and all those who has been infielded should be debarred from contesting."
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