श्रीनगर : जम्मू और कश्मीर के राजस्व विभाग ने 1971 के उस सर्कुलर को समाप्त करने का फैसला किया है, जिसमें तत्कालीन राज्य सरकारों से अनापत्ति प्रमाण पत्र (NoC) प्राप्त करना निर्धारित था.यह फैसला केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासनिक परिषद द्वारा कानून में संशोधन और सुरक्षा बलों को रणनीतिक गतिविधियों के क्षेत्र में निर्माण करने के लिए सूचित करने के एक दिन बाद आया है.
दरअसल, जम्मू कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश बने एक वर्ष होने जा रहा हैं. इस दौरान वहा प्रशासनिक स्तर पर काफी बदलाव हुए हैं. केंद्र सरकार द्वारा संशोधित किए कानून के तहत 1971 के परिपत्र को समाप्त करने का फैसला किया गया .
आदेश के अनुसार, सभी अधिकारियों को कलेक्टर भूमि अधिग्रहण के रूप में नामित किया गया है, जो केंद्रीय भूमि अधिग्रहण अधिनियम और सक्षम प्राधिकरण भूमि अधिग्रहण (सीएएलए) के तहत राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम 1956 के तहत अधिकृत हैं, सशस्त्र बलों द्वारा अधिग्रहण की प्रक्रिया करेंगे.
इससे पहले, 18 जुलाई को, लेफ्टिनेंट गवर्नर जीसी मुर्मू की अध्यक्षता में प्रशासनिक परिषद ने भवन संचालन नियंत्रण अधिनियम, 1988 और जम्मू-कश्मीर विकास अधिनियम, 1970 में संशोधन करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी ताकि 'रणनीतिक क्षेत्रों' में निर्माण गतिविधियों को अंजाम देने के लिए एक विशेष व्यवस्था प्रदान बनाई जा सके.
सरकार के प्रवक्ता के अनुसार, आवास और शहरी विकास विभाग द्वारा प्रस्तावित संशोधनों से सशस्त्र बलों की आवश्यकता के संदर्भ में कुछ क्षेत्रों को 'सामरिक क्षेत्रों' के रूप में अधिसूचित करने का मार्ग प्रशस्त होगा.
दूसरी ओर सरकार के इस कदम की घाटी के राजनीतिक दलों ने आलोचना की है, नेशनल कांफ्रेंस ने आरोप लगाया कि इसका उद्देश्य जम्मू-कश्मीर को एक सैन्य प्रतिष्ठान में बदलना और नागरिक प्राधिकरण को कमजोर करना है.
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जम्मू-कश्मीर में सामरिक महत्व के क्षेत्रों में सैन्य निर्माण की अनुमति पर कश्मीरी दलों ने सियासत शुरू कर दी है. इस पर राज्य प्रशासन ने सियासी दलों पर आम लोगों को गुमराह करने का आरोप लगाया है.
राज्य प्रशासन ने साफ किया है कि केवल सामरिक क्षेत्रों में सैन्य निर्माण के नियमतिकरण की राह आसान बनाई गई है पर कुछ लोग ऐसे अफवाह फैला रहे हैं जैसे पूरे जम्मू-कश्मीर को सैन्य क्षेत्र बनाने को मंजूरी दे दी गई हो.
प्रदेश में सामरिक क्षेत्रों में सुरक्षा बलों की निर्माण गतिविधियों की मंजूरी में अड़चनों को दूर करने के राज्य प्रशासनिक परिषद ने भवन संचालन नियंत्रण अधिनियम, 1988 और जम्मू-कश्मीर विकास अधिनियम, 1970 को संशोधित किया था. इसके तहत रणनीतिक महत्व के क्षेत्रों में सेना की जरूरतों के अनुरूप भूमि के इस्तेमाल सुलभ हो जाएगा और इसे गति देने के लिए कैंटेनमेंट बोर्ड की तर्ज पर अथॉरिटी बनेगी.