हैदराबाद : 15वें वित्त आयोग के प्रमुख एनके सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए एक संदेश दिया है. उनका कहना है कि महत्वपूर्ण कानूनों को लागू करने से पहले राज्य सरकारों के साथ विचार- विमर्श करने की जरूरत है क्योंकि हाल ही में कृषि कानूनों को लागू किया गया, जिनके खिलाफ पंजाब और हरियाणा के किसानों को कड़ा विरोध करते देखा जा रहा है.
एनके सिंह ने योजना आयोग की तरह एक विशेषज्ञ निकाय की जरूरत पर भी बल दिया है. योजना आयोग को वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भंग कर दिया था. पूर्व आईएएस अधिकारी से राजनेता बने एनके सिंह को केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व के विभाजन से जुड़े सभी महत्वपूर्ण सूत्र तय करने के लिए वर्ष 2017 के नवंबर में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने चुना था.
योजना आयोग को भंग करने के फैसले को पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के आर्थिक विकास के केंद्रीकृत रास्ते को सख्ती से खारिज करने के रूप में देखा गया था क्योंकि पीएम मोदी ने अगस्त 2014 में लाल किले से दिए गए स्वतंत्रता दिवस के अपने पहले भाषण में उसकी जगह नीति आयोग नाम के एक नए विचार मंच (थिंक टैंक) बनाने की घोषणा की थी. योजना आयोग की स्थापना नेहरू ने की थी.
उद्योग परिसंघ फिक्की के वार्षिक सम्मेलन को शुक्रवार को संबोधित करते हुए सिंह ने संविधान की सातवीं अनुसूची को फिर से देखकर केंद्र और राज्यों के बीच राजकोषीय विश्वास को बहाल करने की आवश्यकता पर जोर दिया. यह अनुसूची केंद्र सरकार और राज्यों के बीच जिम्मेदारी के क्षेत्र की रूपरेखा पेश करती है.
उन्होंने कहा कि बहुत लोगों का तर्क है कि सरकार के विभिन्न रूपों के बीच विश्वास में कमी आ रही है. ये क्या संदेह और अविश्वास के नए बीज हैं ? पूर्व नौकरशाह ने देश में शासन के बुनियादी ढांचे को पुनर्जीवित करके सरकार के सभी स्तरों को सशक्त बनाने की आवश्यकता पर बल देते हुए यह सवाल किया.
एनके सिंह ने कहा कि सातवीं अनुसूची के तहत प्रशासन के कार्यों का जो विभाजन है वह वर्षों से धीरे-धीरे नष्ट हो रहा है. यह अनुसूची शासन के विषय को संघ, राज्य और संयुक्त सूची के रूप में तीन सूचियों में विभाजित करती है. उन्होंने कहा कि मुख्य रूप से ऐसा दो कारणों से हुआ. पहला 1950 के दशक में केंद्रीकृत योजना आयोग को स्थापित करने से और 1976 में एक संवैधानिक संशोधन के माध्यम से शिक्षा और वन को राज्य सूची से संयुक्त सूची में स्थानांतरित करने की वजह से. एनके सिंह की नजर में आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी की सरकार ने संविधान में 42 वां संशोधन किया, जिसने गतिशीलता को बहुत अधिक बदल दिया.
अंतरराज्यीय परिषद बनाने की सिफारिश
वित्त मंत्रालय में सभी महत्वपूर्ण राजस्व और व्यय विभागों के प्रमुख रहे पूर्व अधिकारी सिंह ने कहा कि वर्ष 2010 में केंद्र-राज्य संबंधों पर न्यायमूर्ति एमएम पंछी आयोग ने संघ और राज्यों के बीच समवर्ती विषयों पर कानून के लिए केंद्र और राज्यों के बीच परामर्श के लिए एक अंतरराज्यीय परिषद बनाने की सिफारिश की थी. संविधान के तहत केंद्र सरकार और राज्य दोनों समवर्ती सूची में उल्लिखित विषयों पर कानून बना सकते हैं, लेकिन विवाद होने पर संसद की ओर से पारित कानून राज्यों पर लागू होंगे.
उन्होंने कहा कि यहां तक कि एमएम पंछी आयोग का भी मानना था कि केंद्र को केवल उन विषयों को समवर्ती सूची में स्थानांतरित करना चाहिए जो स्पष्ट रूप से राष्ट्रीय हितों को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण हैं. एनके सिंह की टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को इस साल सितंबर में मानसून सत्र में पारित तीन कृषि कानूनों पर किसान समूहों के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है.
ये तीन कानून हैं- किसान उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020 मूल्य आश्वासन और किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) कृषि सेवा अधिनियम, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020
इन कानूनों को राज्यसभा में शोरगुल और हंगामे के बीच ध्वनिमत से पारित किया गया, जिसे लेकर विपक्षी दलों की ओर से मोदी सरकार की आलोचना की गई. संविधान के तहत कृषि, कृषि शिक्षा और अनुसंधान सहित राज्य सूची में है. भले ही अनुबंध, साझेदारी और अनुबंध के अन्य विशेष रूपों को समवर्ती सूची में शामिल किया गया है, लेकिन यह विशेष रूप से कृषि भूमि से संबंधित अनुबंध को बाहर करता है.
इन मुद्दों ने इन तीन कृषि कानूनों की न्यायिक जांच का मार्ग प्रशस्त कर दिया है क्योंकि संसद के कुछ सदस्यों समेत कई लोगों ने उन्हें सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है. राजग सरकार का कहना है कि ये कानून किसानों को देश में कहीं भी अपनी उपज बेचने की अधिक स्वतंत्रता देंगे और उन्हें कंपनियों के साथ अनुबंध करने की भी अनुमति होगी क्योंकि किसान मंडी व्यवस्था के बाहर अपनी उपज बेचने के लिए स्वतंत्र होंगे.
योजना आयोग को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता
राज्यों और केंद्र के बीच गहराई से विधायी सुधारों पर परामर्श के लिए छह क्षेत्रों की पहचान करते हुए एनके सिंह ने योजना आयोग की तरह एक विशेषज्ञ निकाय को फिर से बनाने की जरूरत की भी वकालत की. सिंह ने श्रोताओं को बताया कि योजना आयोग को खत्म करने के साथ कई अर्थशास्त्रियों और नीति निर्माताओं ने एक संस्थागत खालीपन को लेकर तर्क दिया है. एनडीसी एक महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है लेकिन राज्यों ने केंद्र से नीतिगत वार्ता के लिए एक कड़ी के रूप में कार्य करने वाले एक विश्वसनीय संस्थान के लिए अनुरोध किया है.
योजना आयोग की स्थापना 15 मार्च, 1950 को हुई थी. योजना आयोग सीधे प्रधानमंत्री के अधीन काम करता था. पहली पंचवर्षीय योजना कृषि क्षेत्र के विकास के मुख्य उद्देश्य के साथ 1951 में शुरू की गई थी. अपनी स्थापना के बाद से आयोग ने 12 पंचवर्षीय योजनाओं की रूपरेखा तैयार की. अंतिम योजना वर्ष 2012-17 के लिए थी लेकिन योजना बनाने वाली इस शीर्ष संस्था को बीच में अगस्त 2014 में ही भंग कर दिया गया और इसकी जगह नीति आयोग ने ली थी. फिक्की फोरम में उद्योग के नेताओं और नीति निर्माताओं को संबोधित करते हुए, एनके सिंह ने कहा कि हमें केंद्र और राज्यों के बीच विश्वसनीय नीति संवाद के लिए एक सलाहकार मंच के लिए गंभीरता से विचार करने की जरूरत है.
नीति आयोग एक विश्वसनीय थिंक टैंक के रूप में उभरा है और केंद्र-राज्य संबंधों के क्षेत्र में उनके काम को मान्यता देने की जरूरत है. हालांकि, राज्य एक अलग तरह के नीति-आधारित परामर्शदाता मंच चाहते हैं. यह एक ऐसा क्षेत्र है जिस पर नीति निर्माताओं के गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है.