पटना : बिहार में 2020 के लिए हो रही हुकूमत की जंग में नीतीश कुमार एक बार फिर विकास की रणनीति के साथ चुनाव मैदान में उतर गए हैं. हालांकि, इस बार प्रतिद्वंदी समकालीन नेता नहीं, बल्कि युवा जोश है. नीतीश पहली बार चुनाव में दिग्गज नेता लालू प्रसाद यादव और राम विलास पासवान की बजाय उनके बेटे तेजस्वी यादव और चिराग पासवान के सामने खड़े हैं. जाहिर है, नीतीश कुमार ने इस बार अपनी रणनीति और लड़ाई के तरीके में बदलाव किया है.
2005 में नीतीश कुमार बिहार में बदलाव और विकास के फार्मूले पर गद्दी पर बैठे थे. 2005 में नीतीश का यह फार्मूला हिट भी रहा और उसके बाद 2010 के चुनाव में नीतीश की नीति ने पूरे विपक्ष का सूपड़ा साफ कर दिया. विपक्ष की सियासत को बिहार की जनता ने इतनी जगह नहीं दी. वह संसदीय नियमावली के अनुसार विपक्ष का दर्जा भी हासिल नहीं कर पाए, लेकिन 2015 के जिस सियासी रंग को नीतीश कुमार ने अपना चुनावी राग बनाया, उसके विकास का गीत बहुत दिनों तक बिहार में बजा नहीं.
नीतीश ने जिनके साथ 1977 से राजनीति शुरू की थी, उन्हीं का विभेद कर बिहार की सत्ता में काबिज हुए. नीतीश ने अपने समकालीन नेता जो राजनीतिक बदलाव की वजह से अब विपक्षी बन चुके थे, उनसे लड़ने के लिए एक फार्मूला तैयार किया था. ये फार्मूला नीतीश पार्ट-1 था, लेकिन अब नीतीश कुमार को अपने उन्हीं समकालीन नेताओं के पुत्रों से टक्कर लेनी है, तो अब नीतीश के राजनीतिक निश्चय का पार्ट-2 आ गया है.
समकालीन नेताओं के लिए क्या थी नीति
बिहार में लालू यादव की चल रही सत्ता को नीतीश ने 2005 के चुनाव में पलट दिया. नीतीश ने उस समय जंगलराज के खात्मे को अपना चुनावी मुद्दा बनाया और बिहार में सुशासन की बात का भरोसा देकर चुनाव में गए. नीतीश पर भरोसा करके जनता ने उन्हें गद्दी दे दी. नीतीश कुमार 2005 में सीएम बने तो अपने वादे के मुताबिक अपराधियों के सफाये के लिए प्रशासन को खुली छूट दी और बदलते बिहार में जंगलराज जैसे शब्द का खात्मा किया. इसका पूरा श्रेय नीतीश की 'निश्चय नीति' को जाता है. 2005 में महागठबंधन में लालू और राम विलास पासवान भले ही साथ थे, लेकिन नीतीश की नीति के आगे उनके सभी फार्मूले फेल हो गए. 2010 में सुशासन और बिहार के विकास के बूते नीतीश कुमार ने फिर से बिहार फतह किया.
2014 में बदल गए हालात, 2015 में चल दिए नई राह
बिहार में भाजपा और जदयू की सरकार में विभेद नरेंद्र मोदी के नाम को लेकर शुरू हो गया था. राजगीर में साल 2013 को बीजेपी के राष्ट्रीय अधिवेशन से नरेंद्र मोदी को एनडीए की ओर पीएम उम्मीदवार बनाने का प्रस्ताव रखा गया. यह प्रस्ताव नीतीश कुमार को इतना नागवार गुजरा कि उन्होंने देश के सबसे पुराने गठबंधन को तोड़ दिया. अपनी गद्दी का उत्तराधिकारी बना दिया और खुद नैतिकता की राजनीति के चादर तले बैठकर सियासत के नए बदलाव का इंतजार करने लगे.
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बदले-बिगड़े हालात ने 2015 में नीतीश को उस राजनीतिक समझौते के लिए मजबूर कर दिया, जिसकी मुखालफत ही बिहार में नीतीश की सियासत रही थी. 2015 में नीतीश और लालू यादव के गठबंधन की सरकार बिहार में बन गई, लेकिन राजनीतिक विरोध साथ ही चलता रहा और 2017 में फिर नीतीश कुमार एनडीए से जुड़ गए, लेकिन इस बार नीतीश कुमार को उनके साथ रहने के लिए हां करना पड़ा.
2005 से 2015 तक सुशासन का विकास
जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार 2005 में चुनावी मुद्दे में विकास और सुशासन को जनता के बीच रखा. जनता ने इस मुद्दे को सिर माथे लिया और बिहार में जाति की राजनीति की कमर तोड़ दी. विकास जीता तो सुशासन के नाम पर लोगों ने भरोसा किया. संगठित अपराध गिरोह का खात्मा, भ्रष्टाचार पर लगाम, महिलाओं को आरक्षण, पंचायत में जगह, लड़कियों को मुफ्त शिक्षा, बिहार में शराबबंदी और दहेज बंदी ने नीतीश को बिहार की सियासत में मुद्दे दे दिए और ये सभी मुद्दे खूब चले. इस मुद्दे के आगे नीतीश कुमार के समकालीन नेता लालू यादव और राम विलास पासवान का हर समीकरण फेल हो गया.
2020 नीतीश निश्चय पार्ट-2, चुनौती दूसरी पीढ़ी की
इस चुनाव में इस बार नीतीश कुमार के सामने उनके समकालीन नेता नहीं हैं, जिनके किसी भी बयान का जवाब नीतीश कुमार को देना है. 2020 में नीतीश कुमार को नई राजनीतिक लड़ाई से पार पाना है. 2005 में नीतीश कुमार अपनी राजनीतिक जीत के लिए जिन लोगों के सामने सुशासन और विकास का नारा देकर जवाब मांगते थे, आज उन नेताओं के उत्तराधिकारी नीतीश कुमार से 2005 से 2020 तक हुए विकास का उत्तर मांग रहे हैं. हालांकि, लड़ाई कई बार पारिवारिक भी हो जाती है.
राजनीतिक जोड़-तोड़ के बीच जब सियासी सवाल-जवाब का दौर चला है, तो कई मंच से नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव को यह कहकर चुप करवाया है कि, 'मुझे कुछ बातें कहने का हक सिर्फ आपके पिता को है.' इतना ही नहीं यह बात नीतीश कुमार बिहार विधान सभा में भी कह चुके हैं, लेकिन विकास के जिस चुनौती को लेकर तेजस्वी यादव अपने चाचा नीतीश के सामने खड़े हुए हैं, उसका जवाब तो नीतीश कुमार को देना ही होगा.
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युवाओंं को रोजगार, बिहार का विकास, बाढ़ की चुनौती, 15 साल में विकास जैसे सवालों को लेकर तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार के सामने चुनौती खड़ी कर दी, तो उनके एक और बड़े समकालीन नेता दिवंगत राम विलास पासवान के पुत्र चिराग ने नीतीश की पूरी कार्य संस्कृति पर ही सवाल खड़ा कर दिया है. चिराग ने नीतीश पर अभिमानी होने और फोन नहीं उठाने तक की बात कह दी. बड़ा मामला यह है कि तेजस्वी ने जिन योजनाओं को ठीक से नहीं चलाने की बात कही थी चिराग ने उन योजनाओं में नीतीश के चहेते अधिकारियों द्वारा भ्रष्टाचार तक का आरोप लगा दिया है. नीतीश कुमार ने सात निश्चय पार्ट-2 के माध्यम से अपने समकालीन नेताओं के पुत्रों से चुनावी लड़ाई लड़ने का फार्मूला दे दिया है.
सात निश्चय पार्ट-2 से आया नीतीश का जवाब
जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार ने सात निश्चय पार्ट-2 से 2020 में बनने वाली सरकार की नीति और विपक्ष के हर सवाल का जवाब देने की कोशिश की है. नीतीश कुमार ने 'युवा शक्ति- बिहार की प्रगति' को अपनी पहली तरजीह दी है. आधी आबादी को लेकर 'सशक्त महिला- सक्षम महिला' से अपने शराबबंदी और दहेज बंदी का विश्वास, किसानों के लिए 'हर खेत तक सिंचाई का पानी', साथ ही निश्चय पार्ट वन के 'स्वच्छ गांव- समृद्ध गांव' का उत्तर, 'स्वच्छ शहर- विकसित शहर', सुलभ संपर्कता, सबके लिए अतिरिक्त स्वास्थ्य सुविधा बिहार के विकास की नई नीति होगी.
नीतीश कुमार को अब अपने राजनीतिक सफर के मित्रों के पुत्रों को जवाब देना है, ऐसे में उनके लिए चुनौती बड़ी है. बिहार में एक बार फिर सरकार के सामने विपक्ष के तौर पर युवा राजनीति चुनौती दे रही है. रोजगार और भ्रष्टाचार को लेकर जेपी के जिस छात्र आंदोलन से नीतीश, लालू और राम विलास पासवान निकल कर आए थे, उसमें लालू और राम विलास पासवान के उत्तराधिकारी यही सवाल लेकर नीतीश के सामने खड़े हैं.
नीतीश को जिस युवा आंदोलन का साथ मिला था, उसने बदलाव की राजनीति को इतनी जगह दी कि आज उस राजनीति के उत्तर के रूप में 'काम का सवाल' नीतीश कुमार से पूछा जा रहा है. नीतीश कुमार ने तो सात निश्चय पार्ट-2 से जवाब देने की अपनी राजनीतिक तैयारी कर ली है. ऐसे में देखना ये होगा कि बिहार की जनता 2020 के लिए किसको कुर्सी पर काबिज करती है.