ETV Bharat / bharat

आरसीपी सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बना नीतीश ने चला कौन सा दांव?

नीतीश कुमार ने चुनावी रैली के दौरान कहा था, 'ये मेरा आखिरी चुनाव है.' इसके बाद चुनाव की तस्वीर बदल गई. अब उन्होंने एक बार फिर चौंकाने वाला फैसला लेते हुए जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी आरसीपी सिंह को सौंपी है. इसके कई मायने निकलकर सामने आ रहे हैं. पढ़ें पूरी खबर.

nitish kumar
नीतीश कुमार
author img

By

Published : Dec 27, 2020, 8:50 PM IST

पटना : रविवार को बिहार की राजनीतिक गलियारे से एक बड़ी खबर सामने आई. जेडीयू की कार्यकारिणी बैठक में नीतीश कुमार ने पार्टी का राष्ट्रीय पद छोड़ आरसीपी सिंह को सौंप दिया. बिहार में जब-जब सियासी उलटफेर होता है, तो उसके पीछे जातीय समीकरण की बात जरूर उठने लगती है. आरसीपी सिंह को मिली जिम्मेदारी पर भी इसकी झलक देखने को मिल रही है.

लव-कुश समीकरण को लेकर चर्चा

नीतीश के इस फैसले के बाद बिहार के सियासी गलियारे में लव-कुश समीकरण को लेकर चर्चा तेज हो गई है. नीतीश कुमार खुद कुर्मी समुदाय से आते हैं. आरसीपी सिंह भी उसी समाज से हैं. आरसीपी को नीतीश का बेहद करीबी माना जाता है. नीतीश कुमार कुर्मी-कोयरी वोट बैंक को अपना मानते हैं. ऐसे में ये माना जा रहा है कि आरसीपी को सौंपी गई जिम्मेदारी इसी समीकरण की देन है.

पार्टी के चाणक्य हैं आरसीपी सिंह

नालंदा से आने वाले रामचंद्र प्रसाद सिंह उर्फ आरसीपी नीतीश कुमार के बाद पार्टी में नंबर दो की हैसियत रखते हैं. उन्हें सुर्खियों में रहना ज्यादा पसंद नहीं है. बिहार चुनाव के दरम्यान भी नीतीश कुमार ने उनके कंधों पर अहम जिम्मेदारी सौंपी. वर्चुअल रैलियों की पूरी बागडोर आरसीपी सिंह के पास रही. यही नहीं पार्टी की रणनीति तय करना, सरकार के लिए नीति बनाना और उन्हें लागू करना, अफसरशाही पर कंट्रोल करने का जिम्मा आरसीपी सिंह के पास रहा है.

नीतीश का मास्टर स्ट्रोक

अरुणाचल प्रदेश में बीजेपी ने जिस तरह जेडीयू के 6 विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल करा लिया, पार्टी के नेता इसे गठबंधन धर्म के विरुद्ध मान रहे हैं. माना जा रहा है कि बिहार विधानसभा में सीटों के मामले में बीजेपी के बड़े भाई की भूमिका में आने से नीतीश असहज थे लेकिन वो जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे. ऐसे में अगर वो कोई कड़ा फैसला लेते तो उन पर बतौर मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के चलते गठबंधन धर्म की मर्यादा का सवाल उठ सकता था इसीलिए नीतीश ने ये मास्टर स्ट्रोक खेल दिया.

पारी समाप्ति की घोषणा तो नहीं?

शनिवार को कार्यकारिणी की बैठक में नीतीश कुमार ने सभी सदस्यों से खुलकर राजनीति करने की बात कही थी. इसके बाद नीतीश कुमार का ये फैसला इस बात का संकेत दे रहा है कि अब जेडीयू किस तरह स्टैंड लेगी और आगे बढ़ेगी. बात ये भी उठने लगी है कि नीतीश अब सक्रिय राजनीति से दूरी बनाना चाहते हैं. उन्होंने बिहार चुनाव के प्रचार के दौरान ही ये कह दिया था कि ये उनका आखिरी चुनाव है. हालांकि, बाद में उन्होंने इसके अलग मायने बताए थे. माना तो ये भी जा रहा है कि नीतीश ने पार्टी का अध्यक्ष पद आरसीपी सिंह को सौंप कर एक तरह से पारी समाप्ति की घोषणा कर दी है.

आईएएस रहते हुए किया नीतीश को प्रभावित

  • यूपी कैडर के आईएएस अधिकारी रहे आरसीपी सिंह पहली बार नीतीश के संपर्क में तब आए, जब वो 1996 में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा के निजी सचिव के रूप में तैनात थे.
  • नीतीश कुमार और आरसीपी सिंह के बीच दोस्ती इसलिए भी गहरी हुई क्योंकि दोनों ही बिहार के नालंदा से हैं और एक ही जाति से आते हैं.
  • आरसीपी सिंह के नौकरशाह के तौर पर उनकी भूमिका से नीतीश कुमार काफी प्रभावित थे.
  • नीतीश कुमार जब केंद्र में मंत्री बने तो आरसीपी सिंह को अपने साथ ले आए.
  • नीतीश कुमार रेलमंत्री बने थे तो आरसीपी सिंह को विशेष सचिव बनाया.
  • नवंबर 2005 में नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने तो आरसीपी सिंह को साथ लेकर बिहार भी आए और प्रमुख सचिव की जिम्मेदारी दी.
  • इसके बाद आरसीपी की जेडीयू में पकड़ मजबूत होने लगी.
  • 2010 में आरसीपी सिंह ने वीआरएस लिया, फिर जेडीयू ने उन्हें राज्यसभा के नामित किया. 2016 में पार्टी ने उन्हें फिर से राज्यसभा भेजा.

पटना : रविवार को बिहार की राजनीतिक गलियारे से एक बड़ी खबर सामने आई. जेडीयू की कार्यकारिणी बैठक में नीतीश कुमार ने पार्टी का राष्ट्रीय पद छोड़ आरसीपी सिंह को सौंप दिया. बिहार में जब-जब सियासी उलटफेर होता है, तो उसके पीछे जातीय समीकरण की बात जरूर उठने लगती है. आरसीपी सिंह को मिली जिम्मेदारी पर भी इसकी झलक देखने को मिल रही है.

लव-कुश समीकरण को लेकर चर्चा

नीतीश के इस फैसले के बाद बिहार के सियासी गलियारे में लव-कुश समीकरण को लेकर चर्चा तेज हो गई है. नीतीश कुमार खुद कुर्मी समुदाय से आते हैं. आरसीपी सिंह भी उसी समाज से हैं. आरसीपी को नीतीश का बेहद करीबी माना जाता है. नीतीश कुमार कुर्मी-कोयरी वोट बैंक को अपना मानते हैं. ऐसे में ये माना जा रहा है कि आरसीपी को सौंपी गई जिम्मेदारी इसी समीकरण की देन है.

पार्टी के चाणक्य हैं आरसीपी सिंह

नालंदा से आने वाले रामचंद्र प्रसाद सिंह उर्फ आरसीपी नीतीश कुमार के बाद पार्टी में नंबर दो की हैसियत रखते हैं. उन्हें सुर्खियों में रहना ज्यादा पसंद नहीं है. बिहार चुनाव के दरम्यान भी नीतीश कुमार ने उनके कंधों पर अहम जिम्मेदारी सौंपी. वर्चुअल रैलियों की पूरी बागडोर आरसीपी सिंह के पास रही. यही नहीं पार्टी की रणनीति तय करना, सरकार के लिए नीति बनाना और उन्हें लागू करना, अफसरशाही पर कंट्रोल करने का जिम्मा आरसीपी सिंह के पास रहा है.

नीतीश का मास्टर स्ट्रोक

अरुणाचल प्रदेश में बीजेपी ने जिस तरह जेडीयू के 6 विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल करा लिया, पार्टी के नेता इसे गठबंधन धर्म के विरुद्ध मान रहे हैं. माना जा रहा है कि बिहार विधानसभा में सीटों के मामले में बीजेपी के बड़े भाई की भूमिका में आने से नीतीश असहज थे लेकिन वो जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे. ऐसे में अगर वो कोई कड़ा फैसला लेते तो उन पर बतौर मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के चलते गठबंधन धर्म की मर्यादा का सवाल उठ सकता था इसीलिए नीतीश ने ये मास्टर स्ट्रोक खेल दिया.

पारी समाप्ति की घोषणा तो नहीं?

शनिवार को कार्यकारिणी की बैठक में नीतीश कुमार ने सभी सदस्यों से खुलकर राजनीति करने की बात कही थी. इसके बाद नीतीश कुमार का ये फैसला इस बात का संकेत दे रहा है कि अब जेडीयू किस तरह स्टैंड लेगी और आगे बढ़ेगी. बात ये भी उठने लगी है कि नीतीश अब सक्रिय राजनीति से दूरी बनाना चाहते हैं. उन्होंने बिहार चुनाव के प्रचार के दौरान ही ये कह दिया था कि ये उनका आखिरी चुनाव है. हालांकि, बाद में उन्होंने इसके अलग मायने बताए थे. माना तो ये भी जा रहा है कि नीतीश ने पार्टी का अध्यक्ष पद आरसीपी सिंह को सौंप कर एक तरह से पारी समाप्ति की घोषणा कर दी है.

आईएएस रहते हुए किया नीतीश को प्रभावित

  • यूपी कैडर के आईएएस अधिकारी रहे आरसीपी सिंह पहली बार नीतीश के संपर्क में तब आए, जब वो 1996 में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा के निजी सचिव के रूप में तैनात थे.
  • नीतीश कुमार और आरसीपी सिंह के बीच दोस्ती इसलिए भी गहरी हुई क्योंकि दोनों ही बिहार के नालंदा से हैं और एक ही जाति से आते हैं.
  • आरसीपी सिंह के नौकरशाह के तौर पर उनकी भूमिका से नीतीश कुमार काफी प्रभावित थे.
  • नीतीश कुमार जब केंद्र में मंत्री बने तो आरसीपी सिंह को अपने साथ ले आए.
  • नीतीश कुमार रेलमंत्री बने थे तो आरसीपी सिंह को विशेष सचिव बनाया.
  • नवंबर 2005 में नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने तो आरसीपी सिंह को साथ लेकर बिहार भी आए और प्रमुख सचिव की जिम्मेदारी दी.
  • इसके बाद आरसीपी की जेडीयू में पकड़ मजबूत होने लगी.
  • 2010 में आरसीपी सिंह ने वीआरएस लिया, फिर जेडीयू ने उन्हें राज्यसभा के नामित किया. 2016 में पार्टी ने उन्हें फिर से राज्यसभा भेजा.
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.