भीमा कोरेगांव मामला: राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने पुणे की अदालत में एक आवेदन दायर किया है. इसके साथ ही मुंबई के एक विशेष कोर्ट में सभी रिकॉर्ड और कार्यवाही को स्थानांतरित करने की मांग की है.
गौरतलब है कि केंद्र ने पिछले सप्ताह पुणे पुलिस से एल्गार परिषद मामले की जांच एनआईए को हस्तांतरित कर दी थी.
एनआईए ने बुधवार को अदालत के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किया.
मामले में बचाव पक्ष के वकीलों में से एक ने कहा कि केंद्रीय एजेंसी ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (विशेष) एस आर नवांदर के समक्ष आपराधिक विविध आवेदन दायर किया, और सभी रिकॉर्ड और मामले की कार्यवाही मुंबई की विशेष एनआईए अदालत में स्थानांतरित करने की मांग की.
अदालत द्वारा मामले की सुनवाई अगले सोमवार को की जानी है.
बचाव पक्ष के वकील ने यह भी कहा कि केंद्रीय जांच एजेंसी के आवेदन ने संकेत दिया कि एनआईए द्वारा 27 जनवरी को एक नई प्राथमिकी दर्ज की गई है.
इस सप्ताह की शुरुआत में, एनआईए अधिकारियों की एक टीम, जिसमें एक पुलिस अधीक्षक-रैंक अधिकारी शामिल थे, ने पुणे पुलिस अधिकारियों से मुलाकात की और उन्हें सूचित किया कि एल्गार परिषद मामले की जांच एजेंसी को सौंप दी गई है.
हालांकि, सिटी पुलिस ने उन्हें बताया था कि महाराष्ट्र पुलिस महानिदेशक (DGP) कार्यालय से उस आशय के आदेश के बाद ही मामले से संबंधित दस्तावेज एनआईए को सौंप दिए जाएंगे.
पुणे पुलिस ने दावा किया है कि 31 दिसंबर, 2017 को पुणे शहर में शनिवारवाड़ा में आयोजित एल्गार परिषद के सम्मेलन में दिए गए भाषणों के कारण अगले दिन जिले के कोरेगांव भीमा में हिंसा हुई.
उन्होंने यह भी दावा किया है कि सभा का आयोजन माओवादी संबंध रखने वाले लोगों द्वारा किया गया था.
हिंसा की जांच के दौरान, पुलिस ने कथित माओवादी संबंधों के लिए मानवाधिकार कार्यकर्ता सुधीर धवले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गडलिंग, महेश राउत, शोमा सेन, अरुण फरेरा, वर्नन गोंसाल्वेस, सुधा भारद्वाज और वरवारा राव को गिरफ्तार किया था.
उन पर आईपीसी की संबंधित धाराओं और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया गया था.
बता दें, शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की 'महाराष्ट्र विकास अघाडी' सरकार ने एनआईए को जांच सौंपने के लिए केंद्र को फटकार लगाई है.
महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने राज्य सरकार की सहमति के बिना मामले को एनआईए को हस्तांतरित करने के केंद्र के फैसले की निंदा की और इस कदम को 'असंवैधानिक' करार दिया.
हालांकि, विपक्षी भाजपा ने इस कदम का स्वागत किया था.