चंडीगढ़ : हरियाण के कुरुक्षेत्र में मछली पालना किसानों के लिए आर्थिक लाभ का सबब साबित हो रहा है. नतीजा यह है कि मछली पालन के प्रति किसानों का मोह भी तेजी से बढ़ा है. ऐसे में कुरुक्षेत्र के राष्ट्रीय मत्स्य बीज फार्म ने मछली पालन की नई तकनीक विकसित की है. इस तकनीक के जरिए मछली पालन शुरू करने के लिए अब आपको बड़े तालाब और ज्यादा पानी की जरूरत नहीं है.
रिसर्कुलर एक्वाकल्चर सिस्टम यानी आरएएस तकनीक की मदद से सीमेंट के बड़े टैंक बनाकर मछली पालन कर सकते हैं. इस तकनीक के लिए सरकार भी ट्रेनिंग दे रही है. इस मछली पालन की विधि इन्डोर की जाती है, जो कि सुरक्षित भी है और अधिक मुनाफा देने वाली भी.
क्या है तकनीक?
आरएएस वह तकनीक है, जिससे पानी का बहाव निरंतर बनाए रखने के लिए पानी के आने-जाने की व्यवस्था की जाती है. इसमें कम जगह की जरूरत होती है. सामान्य तौर पर एक एकड़ तालाब में 20000 मछलियां डाली जाती है तो एक मछली को 300 लीटर पानी में रखा जाता है, जबकि इस सिस्टम के जरिए 1000 लीटर में 110 या 120 मछली डालते हैं. इस हिसाब से एक मछली को केवल 9 लीटर पानी में रखा जाता है. देश में मछली खाने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट के मुताबिक 2030 में भारत में मछली की खपत दो गुना बढ़ जाएगी. इस व्यवसाय को शुरू करने में भी कई संभावनाएं हैं.
गुजरात के मछली पालक भी ले रहे हैं ट्रेनिंग
इस तकनीकी से होने वाले लाभ के बारे में मत्स्य विभाग के डॉक्टर दिलबाग सिंह ने बताया कि अगर कोई मछली पालन करना चाहता है तो इसके लिए 625 वर्ग फीट और 5 फीट गहराई का सीमेंटेट तालाब बनाने होंगे. इस तकनीक का इस्तेमाल प्रदेश में कई मछली पालकों ने किया है. गुजरात से भी मछली पालक ट्रेनिंग के लिए आ रहे हैं.
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पहले से ज्यादा होता है मुनाफा
दिलबाग सिंह की माने तो पहले जो मछली की किस्मे होती थी उससे अधिक मुनाफा नहीं होता था. लागत भी अधिक आती थी. इन सीमेंट के टैंक में आरएएस तरीके से मछली की कई किस्मों को पाला जा सकता है जो बाजार में अधिक मुनाफा देती हैं. अच्छी बात यह भी है कि जो पानी प्रयोग में लाया जाता है उसे फेंका नहीं जाता टैंक में ट्रीटमेंट के बाद उस पानी को दोबारा प्रयोग किया जाता है. इससे पानी की बचत होती है और उत्पादन भी ज्यादा होता है.