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प्रभावशाली भारत का एक भव्य प्रतीक बनेगी संसद की नई इमारत

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. इसके गणतंत्र होने के 72 साल आगामी 26 जनवरी को पूरे होंगे. पीएम मोदी ने महत्वाकांक्षी सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के पूरा होने के लिए आजादी की 75वीं वर्षगांठ यानी 2022 का समय तय किया है. नए संसद भवन पर कई सवाल भी खड़े किए जा रहे हैं, तो दूसरी ओर वास्तुकला के इस बेजोड़ नमूने को प्रभावशाली भारत का एक भव्य प्रतीक भी माना जा रहा है.

प्रभावशाली भारत का एक भव्य प्रतीक
प्रभावशाली भारत का एक भव्य प्रतीक
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Published : Jan 8, 2021, 5:01 AM IST

भारतीय संसद एक विधायी मंच है जो दुनिया की आबादी के 17.7 फीसद लोगों के भाग्य से जुड़ा हुआ है. संसद भवन का निर्माण अंग्रेजों के शासनकाल में वर्ष 1927 में हुआ था. यह पिछले नौ दशक से अतीत की कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रहा है. यह लोकतंत्र की विरासत के तौर पर भवन के रूप में सीधा खड़ा है. इस भवन की शुचिता का संरक्षण करते हुए मोदी सरकार ने भारत के स्वतंत्रता दिवस की 75 वीं वर्षगांठ पर एक नए संसद भवन के निर्माण करने का संकल्प लिया है. मारत को प्राचीन परंपराओं और आधुनिक आकांक्षाओं का मिला-जुला बनाने की योजना है.

सत्रों के संचालन के लिए पर्याप्त नहीं मौजूदा व्यवस्था
नया संसद भवन बनाने की केंद्र सरकार से अपील करते हुए संसद के दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारियों ने कहा था कि हालांकि वर्ष 1975, 2002 और वर्ष 2017 में मौजूदा भवन को और बढ़ाया गया था लेकिन इसकी कमियां अभी भी नजर आ रही हैं और मौजूदा तकनीक सत्रों के संचालन के लिए पर्याप्त नहीं है.

सेंट्रल विस्टा मॉडर्नाइजेशन
कोविड-19 के दौरान जिसमें शारीरिक दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग) रखने का आह्वान किया गया था, उसमें मानसून सत्र के संचालन में जिन समस्याओं का सामना करना पड़ा, देश के लोग उसके गवाह रहे हैं. सत्र के संचालन के लिए जगह की कमी पूरे देश के सामने स्पष्ट नजर आई थी. इस पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद के नए भवन के लिए सेंट्रल विस्टा मॉडर्नाइजेशन परियोजना के तहत 10 दिसंबर 2020 को इसकी आधारशिला रखी.

100 वर्षों की जरूरतों के लिए पर्याप्त
सर्वोच्च न्यायालय ने शुरू में केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह इस मुद्दे पर उसके अंतिम फैसले के आधार पर ही परियोजना को निष्पादित करे. हालांकि, पीठ ने बाद में इस परियोजना पर की गई आपत्तियों को खारिज करते हुए बहुमत से इसके पक्ष में फैसला दिया. यह पूरे देश के लोगों के लिए गर्व की बात है कि अगले 100 वर्षों की जरूरतों को को पूरा करने के लिए एक भव्य संरचना का निर्माण अगले वर्ष तक हकीकत में बदलने जा रहा है.

त्रिकोणीय आकार में नई संसद

विभिन्न धर्मों की ओर से त्रिकोण को दी गई पवित्र मान्यता को ध्यान में रखते हुए नए संसद भवन को त्रिकोणीय आकार में बनाया जाना है. लोक सभा, राज्य सभा और संविधान हॉल राष्ट्रीय प्रतीकों मोर, कमल और केले के पेड़ को प्रतिबिंबित करेंगे. यह श्रेष्ठ भारत के उद्देश्यों को प्राप्त करने की दिशा में एक मील का पत्थर है.

1000 करोड़ रुपए की लागत
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. सकल घरेलू उत्पाद के मामले में यह दुनिया में छठे स्थान पर है. संशोधित अनुमानों के अनुसार, इस वर्ष का केंद्रीय बजट 27 लाख करोड़ रुपए का होने वाला है. जब हमारी अर्थव्यवस्था इतनी बड़ी है तो अगर 1000 करोड़ रुपए की लागत से संसद की नई इमारत का निर्माण किया जाए तो इसमें गलती ढूंढने की जरूरत कहां है ?

लोकसभा की योजना
भारत रत्न प्रणब मुखर्जी ने सुझाव दिया था कि 130 करोड़ की आबादी वाला देश होने के नाते भारत में संसद के सदस्यों की संख्या कम से कम 1000 होनी चाहिए. जैसा कि सांसदों की अधिकतम संख्या वर्ष 2026 तक तय होने जा रही है, केंद्र ने 888 सदस्यों के बैठने की क्षमता वाली लोकसभा की योजना बनाई है.

भूकंप का जोखिम
राज्य सभा में 384 सदस्यों की बैठने की क्षमता है. इसका फिर से मूल्यांकन किया जाना है कि क्या यह बैठने की क्षमता आने वाले 100 साल की जरूरतों को पूरा करेगी ? भूकंप के जोखिमों के हिसाब से पूरे देश को पांच क्षेत्रों में विभाजित किया गया है. सेंट्रल विस्टा चौथे क्षेत्र में बनाया जा रहा है जो एक अधिक जोखिम वाला क्षेत्र है.

26 वर्ग किलोमीटर की सीमा
राष्ट्रपति भवन, संसद, कार्यालयों और उपराष्ट्रपति के आधिकारिक निवास, प्रधानमंत्री, केंद्र सरकार के कार्यालय, सुप्रीम कोर्ट और निचली अदालतें, तीनों सशस्त्र बलों और कई अन्य लोगों के क्वार्टर, कार्यालय और आधिकारिक निवास इसी 26 वर्ग किलोमीटर की सीमा वाले जिले में स्थित है.

भारत का कभी न खत्म होने वाला गौरव
गंभीर भूकंपों को झेलने की क्षमता के साथ भव्य संरचनाएं बनाने की योजना है जो भारत के कभी न खत्म होने वाले गौरव का प्रदर्शन करेंगे. भारत की आत्मनिर्भरता के प्रतीक के रूप में निर्मित होने वाले भवन देश को तेजी और उदारता के साथ प्रगति के लिए प्रेरित करेगा.

भारतीय संसद एक विधायी मंच है जो दुनिया की आबादी के 17.7 फीसद लोगों के भाग्य से जुड़ा हुआ है. संसद भवन का निर्माण अंग्रेजों के शासनकाल में वर्ष 1927 में हुआ था. यह पिछले नौ दशक से अतीत की कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रहा है. यह लोकतंत्र की विरासत के तौर पर भवन के रूप में सीधा खड़ा है. इस भवन की शुचिता का संरक्षण करते हुए मोदी सरकार ने भारत के स्वतंत्रता दिवस की 75 वीं वर्षगांठ पर एक नए संसद भवन के निर्माण करने का संकल्प लिया है. मारत को प्राचीन परंपराओं और आधुनिक आकांक्षाओं का मिला-जुला बनाने की योजना है.

सत्रों के संचालन के लिए पर्याप्त नहीं मौजूदा व्यवस्था
नया संसद भवन बनाने की केंद्र सरकार से अपील करते हुए संसद के दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारियों ने कहा था कि हालांकि वर्ष 1975, 2002 और वर्ष 2017 में मौजूदा भवन को और बढ़ाया गया था लेकिन इसकी कमियां अभी भी नजर आ रही हैं और मौजूदा तकनीक सत्रों के संचालन के लिए पर्याप्त नहीं है.

सेंट्रल विस्टा मॉडर्नाइजेशन
कोविड-19 के दौरान जिसमें शारीरिक दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग) रखने का आह्वान किया गया था, उसमें मानसून सत्र के संचालन में जिन समस्याओं का सामना करना पड़ा, देश के लोग उसके गवाह रहे हैं. सत्र के संचालन के लिए जगह की कमी पूरे देश के सामने स्पष्ट नजर आई थी. इस पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद के नए भवन के लिए सेंट्रल विस्टा मॉडर्नाइजेशन परियोजना के तहत 10 दिसंबर 2020 को इसकी आधारशिला रखी.

100 वर्षों की जरूरतों के लिए पर्याप्त
सर्वोच्च न्यायालय ने शुरू में केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह इस मुद्दे पर उसके अंतिम फैसले के आधार पर ही परियोजना को निष्पादित करे. हालांकि, पीठ ने बाद में इस परियोजना पर की गई आपत्तियों को खारिज करते हुए बहुमत से इसके पक्ष में फैसला दिया. यह पूरे देश के लोगों के लिए गर्व की बात है कि अगले 100 वर्षों की जरूरतों को को पूरा करने के लिए एक भव्य संरचना का निर्माण अगले वर्ष तक हकीकत में बदलने जा रहा है.

त्रिकोणीय आकार में नई संसद

विभिन्न धर्मों की ओर से त्रिकोण को दी गई पवित्र मान्यता को ध्यान में रखते हुए नए संसद भवन को त्रिकोणीय आकार में बनाया जाना है. लोक सभा, राज्य सभा और संविधान हॉल राष्ट्रीय प्रतीकों मोर, कमल और केले के पेड़ को प्रतिबिंबित करेंगे. यह श्रेष्ठ भारत के उद्देश्यों को प्राप्त करने की दिशा में एक मील का पत्थर है.

1000 करोड़ रुपए की लागत
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. सकल घरेलू उत्पाद के मामले में यह दुनिया में छठे स्थान पर है. संशोधित अनुमानों के अनुसार, इस वर्ष का केंद्रीय बजट 27 लाख करोड़ रुपए का होने वाला है. जब हमारी अर्थव्यवस्था इतनी बड़ी है तो अगर 1000 करोड़ रुपए की लागत से संसद की नई इमारत का निर्माण किया जाए तो इसमें गलती ढूंढने की जरूरत कहां है ?

लोकसभा की योजना
भारत रत्न प्रणब मुखर्जी ने सुझाव दिया था कि 130 करोड़ की आबादी वाला देश होने के नाते भारत में संसद के सदस्यों की संख्या कम से कम 1000 होनी चाहिए. जैसा कि सांसदों की अधिकतम संख्या वर्ष 2026 तक तय होने जा रही है, केंद्र ने 888 सदस्यों के बैठने की क्षमता वाली लोकसभा की योजना बनाई है.

भूकंप का जोखिम
राज्य सभा में 384 सदस्यों की बैठने की क्षमता है. इसका फिर से मूल्यांकन किया जाना है कि क्या यह बैठने की क्षमता आने वाले 100 साल की जरूरतों को पूरा करेगी ? भूकंप के जोखिमों के हिसाब से पूरे देश को पांच क्षेत्रों में विभाजित किया गया है. सेंट्रल विस्टा चौथे क्षेत्र में बनाया जा रहा है जो एक अधिक जोखिम वाला क्षेत्र है.

26 वर्ग किलोमीटर की सीमा
राष्ट्रपति भवन, संसद, कार्यालयों और उपराष्ट्रपति के आधिकारिक निवास, प्रधानमंत्री, केंद्र सरकार के कार्यालय, सुप्रीम कोर्ट और निचली अदालतें, तीनों सशस्त्र बलों और कई अन्य लोगों के क्वार्टर, कार्यालय और आधिकारिक निवास इसी 26 वर्ग किलोमीटर की सीमा वाले जिले में स्थित है.

भारत का कभी न खत्म होने वाला गौरव
गंभीर भूकंपों को झेलने की क्षमता के साथ भव्य संरचनाएं बनाने की योजना है जो भारत के कभी न खत्म होने वाले गौरव का प्रदर्शन करेंगे. भारत की आत्मनिर्भरता के प्रतीक के रूप में निर्मित होने वाले भवन देश को तेजी और उदारता के साथ प्रगति के लिए प्रेरित करेगा.

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