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ग्रामीण विकास मॉडल : गांव में रोजगार देने और पलायन रोकने का सुनहरा मौका

कोरोना दौर के चलते लगे लॉकडाउन में जहां-तहां से प्रवासी श्रमिक अपने घर पहुंचे. इस दौरान उनका दर्द और पीड़ा देख सब भावुक हो उठे. इस तरह कोरोना ने बेघर, गरीब, दिहाड़ी मजदूरों को आजीविका की तलाश में दूसरे शहरों में धकेलने की बजाय अपने गृह नगर में आजीविका देने की जरूरत को सामने रखा है. यह समय है, जब सरकारें भारत के महान नेताओं द्वारा सुझाए मॉडलों पर विचार कर गांवों को विकसित कर सकती है, जिससे फिर एक बार ग्रामीणों को रोजी-रोटी के लिए शहरों की तरफ न जाना पड़े.

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पलायन रोकने में मददगार साबित हो सकता है ग्रामीण विकास मॉडल
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Published : Jul 8, 2020, 9:19 PM IST

हैदराबाद : कोविड-19 महामारी के दौरान लाखों प्रवासी श्रमिक उन शहरों को छोड़कर अपने गृहनगर वापस चले गए, जहां वे आजीविका की तलाश में आए थे. भोजन और पानी की चाह में सैकड़ों मील पैदल चलते श्रमिकों को देख आंखों में आंसू भर आए.

इस तरह कोरोना ने बेघर गरीब दिहाड़ी मजदूरों को आजीविका की तलाश में दूसरे शहरों में धकेलने की बजाय अपने गृह नगर में आजीविका देने की जरूरत को सामने रखा है.

इस परिदृश्य में रोजगार की अनुपलब्धता की वजह से लाखों लोग दूर-दूर पलायन करते हैं.

जब छोटे-छोटे शहरों में भी तमाम सुविधाएं उपलब्ध रहेंगी, तभी महात्मा गांधी का ग्राम स्वराज का सपना साकार होगा.

ग्रामीण क्षेत्रों की बात करें तो वहां लोगों को आर्थिक और हर तरह से आत्मनिर्भर बनाने के लिए टेक्नोलॉजी मदद का एक बड़ा स्रोत हो सकता है.

पिछले 10 वर्षों में देश में गांवों से शहरों की ओर पलायन बढ़ ही रहा है.

अलग-अलग अनुमानों के अनुसार, पिछले वर्षों में पलायन की संख्या 7.2 करोड़ से लेकर 11 करोड़ तक रही है.

पलायन संबंधी इन अनुमानों ने भारत को सबसे बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों के मामले में चीन के बाद लाकर खड़ा कर दिया है.

ग्राम स्वराज मॉडल

महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज की दृष्टि के अनुसार, गांवों के लिए नया-विकास मॉडल गांवों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना है. दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद, महात्मा गांधी ने चंपारण (1917), सेवाग्राम (1920) और वर्धा (1938) जैसे ग्रामीण आंदोलनों का नेतृत्व किया.

महात्मा गांधी ने इस बात पर जोर दिया कि प्रत्येक गांव को आत्मनिर्भरता की संपत्ति के रूप में जीवित रखा जाना चाहिए. गांधीजी ने माना कि प्रौद्योगिकी ग्रामीण विकास की कुंजी है.

अधिकांश लोगों को यह बात नहीं पता कि उन्होंने उस समय के दौर में तत्कालीन ब्रिटिश और भारतीय अखबारों में घोषणा की थी कि जो भी पारंपरिक चरखे की तकनीक का इस्तेमाल कर विकसित करेगा, उसे एक लाख रुपए का इनाम दिया जाएगा.

पुरा योजना

इसी क्रम में भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने एक डेवलपमेंट स्कीम योजना का प्रस्ताव दिया है, जिसके माध्यम से गांवों को अत्याधुनिक सुविधाएं दी जा सकती हैं. उन्होंने कहा कि अगर 50 से ज्यादा गांवों को डिजिटल बनाया जाए, तो संयुक्त बाजार विकसित किए जा सकते हैं.

कलाम ने भी प्रौद्योगिकी के महत्व पर जोर दिया. उन्होंने भवन, आवास, भंडारण की सुविधा, विज्ञान और अर्थशास्त्र जैसी आवश्यकताओं को लेकर एक ही मंच पर टेक्नोलॉजी का प्रस्ताव रखा. इससे ग्रामीणों का एक-दूसरे से बातचीत करना आसान हो गया.

टेक्नोलॉजी को लेकर अन्य प्रस्ताव, जो उनके द्वारा पेश किए गए थे, उनसे गांव और कस्बे आसानी से विकास की राह पर चल सकते हैं.

बता दें कलाम ने जनवरी 2004 में चंडीगढ़ में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान कांग्रेस की 90वीं कॉन्फ्रेंस के सामने मॉडल प्रस्तुत किया था.

उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत आर्थिक रूप से बेहतर जगह तक पहुंचने में सक्षम होगा क्योंकि आत्मनिर्भर गांवों की नींव मजबूती से रखी गई है.

कलाम ने पुरा योजना का भी शिलान्यास किया था. इस योजना का एक अहम हिस्सा 30 किमी परिधि के साथ रिंग रोड का निर्माण है, जो कुछ गांवों को जोड़ता है और एक ही बस मार्ग के माध्यम से परिसर के सभी गांवों को जोड़ता है.

इससे कस्बों पर दबाव कम होगा और पुरा गांव परिसरों के भीतर आवासीय सुविधाएं विकसित होंगी. इससे गांवों के बीच पलायन बढ़ेगा और गांवों से शहरों में पलायन कम होगा.

कलाम ने प्रस्ताव दिया कि इस तरह की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं के लिए प्रत्येक इकाई को पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल के तहत लगभग 7000 पुरा कॉम्प्लेक्स पर 30 करोड़ खर्च करने की आवश्यकता है. कलाम ने लंबे समय से पुरा गांव परिसर के कस्बों में जीवन की उच्च गुणवत्ता प्रदान करने की मांग की है.

मानवतावादी मॉडल

नानाजी देशमुख ने आत्मनिर्भर गांवों के पूर्ण मानवीय मॉडल को अपनाया. देशमुख ने इस मॉडल को देश के 500 गांवों में लागू किया. खासकर मध्य प्रदेश राज्य के चित्रकूट क्षेत्र में. बेरोजगारी मुक्त गांव बनाना, गरीबी उन्मूलन, स्थानीय स्तर पर कानूनी विवादों का समाधान, विधवा पुनर्विवाह इस मॉडल के अभिन्न अंग हैं. देशमुख के मॉडल ने गांवों को परिसरों में बनाने और सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक सुविधाओं का निर्माण करने का प्रस्ताव किया है.

इस मॉडल में परिष्कृत प्रौद्योगिकी के उपयोग को बहुत बड़ा महत्व दिया गया है. आज, दुनिया भर में कृषि के विकास के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और इंटरनेट का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है. ये प्रौद्योगिकियां हमारे किसानों को वैश्विक बाजार में फसलों की कीमतों को रखने में सक्षम बनाती हैं. साथ ही उन्हें आधुनिक खेती के तरीकों के बारे में जानकारी प्रदान करती हैं, जो बड़े पैमाने पर विदेशों में अपनाई जाती हैं.

इससे किसानों को बेहतर उपज प्राप्त करने में मदद मिलेगी और इससे अधिक आय होगी.

केंद्र को गांधी, कलाम और देशमुख के ग्रामीण विकास के सपनों का समर्थन करने के लिए धन जुटाने के लिए आत्मनिर्भर बॉन्ड जारी करने के प्रस्ताव पर विचार करना चाहिए. वाणिज्यिक बैंकों द्वारा दिए गए प्राथमिकता वाले ऋणों का एक हिस्सा इन बॉन्डों की खरीद पर खर्च किया जाना चाहिए.

हमें गांवों में विकास कार्यक्रम करने के लिए अपने युवाओं को तैयार करने की आवश्यकता है. इंजीनियरिंग, मेडिकल और बिजनेस स्कूलों के पाठ्यक्रम को उसी के अनुरूप बनाया जाना चाहिए.

महान नेताओं द्वारा दिखाए गए मार्ग :

भारत में हर चार श्रमिकों में से एक आप्रवासी है, जो जीविका की तलाश में अपने गांव / कस्बे से शहर आया. कोरोना संकट दुनिया के सामने यह तथ्य लेकर आया है कि प्रवासी श्रमिकों का जीवन प्रत्येक बीतते दिन के साथ कैसे खराब हो रहा है. अनुमान है कि लाखों प्रवासी मजदूर घर लौट आए हैं. केंद्र और राज्य सरकार उनकी मदद नहीं करती प्रतीत होती हैं. जितना सरकारों ने किया, वह समुद्र में पानी डालने जैसा था.

यह मौका है, जब तुरंत कदम उठाए जाने चाहिए, यह देखने के लिए कि लोग अपनी दैनिक रोटी कमाने के लिए शहरों की ओर पलायन न करें. यह तभी हासिल किया जा सकता है जब गांव आत्मनिर्भर, आर्थिक और सामाजिक रूप से भी मजबूत हों. वर्तमान संकट को एक अवसर के रूप में अनुकूलित किया जाना चाहिए और नए विकास मॉडल को तत्काल आधार पर लिया जाना चाहिए. सौभाग्य से, इस तरह के वैकल्पिक मॉडल पहले से ही हमारे कई महान राष्ट्रीय नेताओं द्वारा प्रस्तुत किए गए हैं. महात्मा गांधी, पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम और समाजवादी, नानाजी देशमुख जैसे देशभक्त नेताओं द्वारा प्रस्तावित ग्रामीण विकास मॉडलों की ओर ध्यान देना अति आवश्यक है.

हैदराबाद : कोविड-19 महामारी के दौरान लाखों प्रवासी श्रमिक उन शहरों को छोड़कर अपने गृहनगर वापस चले गए, जहां वे आजीविका की तलाश में आए थे. भोजन और पानी की चाह में सैकड़ों मील पैदल चलते श्रमिकों को देख आंखों में आंसू भर आए.

इस तरह कोरोना ने बेघर गरीब दिहाड़ी मजदूरों को आजीविका की तलाश में दूसरे शहरों में धकेलने की बजाय अपने गृह नगर में आजीविका देने की जरूरत को सामने रखा है.

इस परिदृश्य में रोजगार की अनुपलब्धता की वजह से लाखों लोग दूर-दूर पलायन करते हैं.

जब छोटे-छोटे शहरों में भी तमाम सुविधाएं उपलब्ध रहेंगी, तभी महात्मा गांधी का ग्राम स्वराज का सपना साकार होगा.

ग्रामीण क्षेत्रों की बात करें तो वहां लोगों को आर्थिक और हर तरह से आत्मनिर्भर बनाने के लिए टेक्नोलॉजी मदद का एक बड़ा स्रोत हो सकता है.

पिछले 10 वर्षों में देश में गांवों से शहरों की ओर पलायन बढ़ ही रहा है.

अलग-अलग अनुमानों के अनुसार, पिछले वर्षों में पलायन की संख्या 7.2 करोड़ से लेकर 11 करोड़ तक रही है.

पलायन संबंधी इन अनुमानों ने भारत को सबसे बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों के मामले में चीन के बाद लाकर खड़ा कर दिया है.

ग्राम स्वराज मॉडल

महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज की दृष्टि के अनुसार, गांवों के लिए नया-विकास मॉडल गांवों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना है. दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद, महात्मा गांधी ने चंपारण (1917), सेवाग्राम (1920) और वर्धा (1938) जैसे ग्रामीण आंदोलनों का नेतृत्व किया.

महात्मा गांधी ने इस बात पर जोर दिया कि प्रत्येक गांव को आत्मनिर्भरता की संपत्ति के रूप में जीवित रखा जाना चाहिए. गांधीजी ने माना कि प्रौद्योगिकी ग्रामीण विकास की कुंजी है.

अधिकांश लोगों को यह बात नहीं पता कि उन्होंने उस समय के दौर में तत्कालीन ब्रिटिश और भारतीय अखबारों में घोषणा की थी कि जो भी पारंपरिक चरखे की तकनीक का इस्तेमाल कर विकसित करेगा, उसे एक लाख रुपए का इनाम दिया जाएगा.

पुरा योजना

इसी क्रम में भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने एक डेवलपमेंट स्कीम योजना का प्रस्ताव दिया है, जिसके माध्यम से गांवों को अत्याधुनिक सुविधाएं दी जा सकती हैं. उन्होंने कहा कि अगर 50 से ज्यादा गांवों को डिजिटल बनाया जाए, तो संयुक्त बाजार विकसित किए जा सकते हैं.

कलाम ने भी प्रौद्योगिकी के महत्व पर जोर दिया. उन्होंने भवन, आवास, भंडारण की सुविधा, विज्ञान और अर्थशास्त्र जैसी आवश्यकताओं को लेकर एक ही मंच पर टेक्नोलॉजी का प्रस्ताव रखा. इससे ग्रामीणों का एक-दूसरे से बातचीत करना आसान हो गया.

टेक्नोलॉजी को लेकर अन्य प्रस्ताव, जो उनके द्वारा पेश किए गए थे, उनसे गांव और कस्बे आसानी से विकास की राह पर चल सकते हैं.

बता दें कलाम ने जनवरी 2004 में चंडीगढ़ में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान कांग्रेस की 90वीं कॉन्फ्रेंस के सामने मॉडल प्रस्तुत किया था.

उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत आर्थिक रूप से बेहतर जगह तक पहुंचने में सक्षम होगा क्योंकि आत्मनिर्भर गांवों की नींव मजबूती से रखी गई है.

कलाम ने पुरा योजना का भी शिलान्यास किया था. इस योजना का एक अहम हिस्सा 30 किमी परिधि के साथ रिंग रोड का निर्माण है, जो कुछ गांवों को जोड़ता है और एक ही बस मार्ग के माध्यम से परिसर के सभी गांवों को जोड़ता है.

इससे कस्बों पर दबाव कम होगा और पुरा गांव परिसरों के भीतर आवासीय सुविधाएं विकसित होंगी. इससे गांवों के बीच पलायन बढ़ेगा और गांवों से शहरों में पलायन कम होगा.

कलाम ने प्रस्ताव दिया कि इस तरह की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं के लिए प्रत्येक इकाई को पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल के तहत लगभग 7000 पुरा कॉम्प्लेक्स पर 30 करोड़ खर्च करने की आवश्यकता है. कलाम ने लंबे समय से पुरा गांव परिसर के कस्बों में जीवन की उच्च गुणवत्ता प्रदान करने की मांग की है.

मानवतावादी मॉडल

नानाजी देशमुख ने आत्मनिर्भर गांवों के पूर्ण मानवीय मॉडल को अपनाया. देशमुख ने इस मॉडल को देश के 500 गांवों में लागू किया. खासकर मध्य प्रदेश राज्य के चित्रकूट क्षेत्र में. बेरोजगारी मुक्त गांव बनाना, गरीबी उन्मूलन, स्थानीय स्तर पर कानूनी विवादों का समाधान, विधवा पुनर्विवाह इस मॉडल के अभिन्न अंग हैं. देशमुख के मॉडल ने गांवों को परिसरों में बनाने और सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक सुविधाओं का निर्माण करने का प्रस्ताव किया है.

इस मॉडल में परिष्कृत प्रौद्योगिकी के उपयोग को बहुत बड़ा महत्व दिया गया है. आज, दुनिया भर में कृषि के विकास के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और इंटरनेट का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है. ये प्रौद्योगिकियां हमारे किसानों को वैश्विक बाजार में फसलों की कीमतों को रखने में सक्षम बनाती हैं. साथ ही उन्हें आधुनिक खेती के तरीकों के बारे में जानकारी प्रदान करती हैं, जो बड़े पैमाने पर विदेशों में अपनाई जाती हैं.

इससे किसानों को बेहतर उपज प्राप्त करने में मदद मिलेगी और इससे अधिक आय होगी.

केंद्र को गांधी, कलाम और देशमुख के ग्रामीण विकास के सपनों का समर्थन करने के लिए धन जुटाने के लिए आत्मनिर्भर बॉन्ड जारी करने के प्रस्ताव पर विचार करना चाहिए. वाणिज्यिक बैंकों द्वारा दिए गए प्राथमिकता वाले ऋणों का एक हिस्सा इन बॉन्डों की खरीद पर खर्च किया जाना चाहिए.

हमें गांवों में विकास कार्यक्रम करने के लिए अपने युवाओं को तैयार करने की आवश्यकता है. इंजीनियरिंग, मेडिकल और बिजनेस स्कूलों के पाठ्यक्रम को उसी के अनुरूप बनाया जाना चाहिए.

महान नेताओं द्वारा दिखाए गए मार्ग :

भारत में हर चार श्रमिकों में से एक आप्रवासी है, जो जीविका की तलाश में अपने गांव / कस्बे से शहर आया. कोरोना संकट दुनिया के सामने यह तथ्य लेकर आया है कि प्रवासी श्रमिकों का जीवन प्रत्येक बीतते दिन के साथ कैसे खराब हो रहा है. अनुमान है कि लाखों प्रवासी मजदूर घर लौट आए हैं. केंद्र और राज्य सरकार उनकी मदद नहीं करती प्रतीत होती हैं. जितना सरकारों ने किया, वह समुद्र में पानी डालने जैसा था.

यह मौका है, जब तुरंत कदम उठाए जाने चाहिए, यह देखने के लिए कि लोग अपनी दैनिक रोटी कमाने के लिए शहरों की ओर पलायन न करें. यह तभी हासिल किया जा सकता है जब गांव आत्मनिर्भर, आर्थिक और सामाजिक रूप से भी मजबूत हों. वर्तमान संकट को एक अवसर के रूप में अनुकूलित किया जाना चाहिए और नए विकास मॉडल को तत्काल आधार पर लिया जाना चाहिए. सौभाग्य से, इस तरह के वैकल्पिक मॉडल पहले से ही हमारे कई महान राष्ट्रीय नेताओं द्वारा प्रस्तुत किए गए हैं. महात्मा गांधी, पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम और समाजवादी, नानाजी देशमुख जैसे देशभक्त नेताओं द्वारा प्रस्तावित ग्रामीण विकास मॉडलों की ओर ध्यान देना अति आवश्यक है.

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