मणिपुर: पूर्वोत्तर में अलग-अलग कलाएं प्रचलित हैं. लोग तरह-तरह की कलातमक क्रियाएं करते हैं. नेली चेचई भी पूर्वोत्तर में स्थित मणिपुर की धरती से उभरी कलाकार हैं. वे माओ के सोंगसोंग गांव की रहने वाली हैं.
नेली चाचई की कला अन्य सभी कलाकारों से बहुत अलग है. उन्होंने बेकार की चीजों से उत्तम वस्तु बनाना का काम शुरू किया. बेकार की वस्तु के तौर पर वे भुट्टे के छिलके और उसके रेशों का इस्तेमाल कर गुड़िया बनाती हैं.
नेली चाचई का कहना है कि जब मैं छोटी थी तब मेरी मां ने मुझे ये गुड़िया बनाना सिखाया. 2002 में मैं इसे पेशे के तौर पर अपनाई और 2005 में वर्कशॉप खोली.
आगे नेली चाचई का कहना है कि वे दिन भर में 10-12 गुड़िया बना कर तैयार कर लेती हैं. एक गुड़िया की कीमत 200-500 रुपय होती है.
नेली बताती हैं कि उनकी ये गुड़िया न सिर्फ पूर्वोत्तर के राज्यों में बल्कि मुंबई आदि में भी प्रचलित हैं. वे ये गुड़िया देश के अन्य क्षेत्रों में भी भेजती हैं.
साथ ही वे ये भी बताती है कि लोग छिलकों को इधर उधर फेंक दिया करते थे, जिसे वे इकट्ठा कर ये गुड़िया बनाने लगीं. एक ओर कचरा साफ भी हो जाता था और दूसरी ओर गुड़िया बनाने के लिए कच्चा माल भी मिल जाता था.
बता दें, नेली की फूल और पौधों की दुकान है, जहां वे ये गुड़िया भी बेचा करती हैं. शहर के कोने-कोने से लोग उनके पास आते हैं. कोई फूलों के गुलदस्ते खरीदने तो कोई पौधे. वहीं कुछ इन गुड़ियों की चाहत में भी पहुंचते हैं.