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देशभर में बाल दुष्कर्म के 1.5 लाख मामले लंबित, SC का निर्देश- हर जिले में विशेष अदालत का गठन हो

सुप्रीम कोर्ट ने जिलों में विशेष अदालतें बनाने का आदेश दिया है, जहां 100 से अधिक POCSO एक्ट के मामले लंबित हैं. साथ ही इन मामलों में तेजी लाने के लिए और अधिक फोरेंसिक प्रयोगशालाओं की आवश्यकता भी है.

POCSO मामले में तेजी लाने के लिए, हर जिले में POCSO कोर्ट बनाने के आदेश
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Published : Jul 26, 2019, 8:30 AM IST

नई दिल्ली: बाल दुष्कर्म के मामले में एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है. सर्वोच्च न्यायालय ने बताया गया कि देशभर में 30 जून तक बाल दुष्कर्म के 1,50,332 मामले लंबित थे और इस प्रकार के मामलों के निपटान महज नौ फीसदी रहे हैं. इन मामलों में पीड़ित बच्चों के पक्ष में इंसाफ का इंतजार है.

बच्चों से यौन शोषण संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्देश दिया. जिन जिलों में 100 से अधिक बच्चों से यौन हिंसा के केस लंबित हैं उनकी सुनवाई के लिए विशेष कोर्ट के गठन का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया.

आपको बता दें, पोक्सो कानून (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस ऐक्ट) को लागू हुए सात साल बीत जाने के बाद भी अभी डेटा प्रबंधन प्रणाली या एमआईएस (प्रबंधन सूचना प्रणाली) दुरुस्त करना है और केटेगरी के अनुसार डाटा को अगल-अलग किया जाना बाकी है.

समस्या की गंभीरता के बावजूद केंद्र और राज्यों की सरकारों ने बाल दुष्कर्म के मामलों को सुनियोजित करने की व्यवस्था नहीं बनाई है.

न्याय विभाग के एक सूत्र ने बताया, 'पोक्सो मामलों के डाटा को सुनियोजित करने के लिए हम डाटा पबंधन प्रणाली की रूपरेखा तैयार करने का काम शुरू कर रहे हैं. इससे हमें मामलों की सही संख्या और मामले की सुनवाई में प्रगति का पता चलेगा.'

इसके अलावा, बाल दुष्कर्म के मामलों की सुनवाई करने वाले न्यायाधीशों के पास अन्य मामलों का भी बोझ है.

मामले की सुनवाई के दौरान गुरुवार को शीर्ष अदालत को बताया गया कि पटियाला हाउस स्थित पोक्सो अदालत में बाल दुष्कर्म और मकोका मामले की सुनवाई की जा रही है.

पढ़ें-कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न : मंत्री समूह का हुआ पुनर्गठन, अमित शाह होंगे अध्यक्ष

मामले की जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने बताया, 'पोक्सो से संबंधित 1.5 लाख मामले होने के कारण अलग से पोक्सो अदालत की आवश्यकता है. डाटा प्रबंधन प्रणाली नहीं होने से डाटा का संग्रह, मिलान व विश्लेषण करना काफी कठिन है. लिहाजा ऐसे मामलों को फास्ट ट्रैक (त्वरित सुनवाई) में ले जाने में रुकावट आ रही है.'

सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा, 'देश में न्यायाधीशों से अधिक मामले हैं.'

पोक्सो कानून के तहत सुनवाई से परिचित एक सूत्र ने बताया, 'कई बार ऐसा होता है कि पीड़ित प्रतिपक्षी बन जाते हैं. अदालत कक्ष के इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी, बाल हितैषी अधिकारियों का न होना और सुनवाई में समय लगना इसके कारण हैं.'

अदालत ने 'इन-प्री अलार्मिग राइन इन द नंबर ऑफ रिपोर्टेड चाइल्ड रेप इंसिटेडेंट्स' शीर्षक के तहत एक पीआईएल (जनहित याचिका) दर्ज की.

अदालत ने अपनी ही रिपोर्ट के बाद पीआईएल दर्ज की. रिपोर्ट के अनुसार, देशभर में इस साल एक जनवरी से लेकर 30 जून तक 24,212 मामले दर्ज किए गए.

शीर्ष अदालत ने 15 जुलाई को संबंधित प्राधिकरणों को देशभर में जिलावार बाल दुष्कर्म के मामलों को इकट्ठा करने का निर्देश दिया.

नई दिल्ली: बाल दुष्कर्म के मामले में एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है. सर्वोच्च न्यायालय ने बताया गया कि देशभर में 30 जून तक बाल दुष्कर्म के 1,50,332 मामले लंबित थे और इस प्रकार के मामलों के निपटान महज नौ फीसदी रहे हैं. इन मामलों में पीड़ित बच्चों के पक्ष में इंसाफ का इंतजार है.

बच्चों से यौन शोषण संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्देश दिया. जिन जिलों में 100 से अधिक बच्चों से यौन हिंसा के केस लंबित हैं उनकी सुनवाई के लिए विशेष कोर्ट के गठन का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया.

आपको बता दें, पोक्सो कानून (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस ऐक्ट) को लागू हुए सात साल बीत जाने के बाद भी अभी डेटा प्रबंधन प्रणाली या एमआईएस (प्रबंधन सूचना प्रणाली) दुरुस्त करना है और केटेगरी के अनुसार डाटा को अगल-अलग किया जाना बाकी है.

समस्या की गंभीरता के बावजूद केंद्र और राज्यों की सरकारों ने बाल दुष्कर्म के मामलों को सुनियोजित करने की व्यवस्था नहीं बनाई है.

न्याय विभाग के एक सूत्र ने बताया, 'पोक्सो मामलों के डाटा को सुनियोजित करने के लिए हम डाटा पबंधन प्रणाली की रूपरेखा तैयार करने का काम शुरू कर रहे हैं. इससे हमें मामलों की सही संख्या और मामले की सुनवाई में प्रगति का पता चलेगा.'

इसके अलावा, बाल दुष्कर्म के मामलों की सुनवाई करने वाले न्यायाधीशों के पास अन्य मामलों का भी बोझ है.

मामले की सुनवाई के दौरान गुरुवार को शीर्ष अदालत को बताया गया कि पटियाला हाउस स्थित पोक्सो अदालत में बाल दुष्कर्म और मकोका मामले की सुनवाई की जा रही है.

पढ़ें-कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न : मंत्री समूह का हुआ पुनर्गठन, अमित शाह होंगे अध्यक्ष

मामले की जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने बताया, 'पोक्सो से संबंधित 1.5 लाख मामले होने के कारण अलग से पोक्सो अदालत की आवश्यकता है. डाटा प्रबंधन प्रणाली नहीं होने से डाटा का संग्रह, मिलान व विश्लेषण करना काफी कठिन है. लिहाजा ऐसे मामलों को फास्ट ट्रैक (त्वरित सुनवाई) में ले जाने में रुकावट आ रही है.'

सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा, 'देश में न्यायाधीशों से अधिक मामले हैं.'

पोक्सो कानून के तहत सुनवाई से परिचित एक सूत्र ने बताया, 'कई बार ऐसा होता है कि पीड़ित प्रतिपक्षी बन जाते हैं. अदालत कक्ष के इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी, बाल हितैषी अधिकारियों का न होना और सुनवाई में समय लगना इसके कारण हैं.'

अदालत ने 'इन-प्री अलार्मिग राइन इन द नंबर ऑफ रिपोर्टेड चाइल्ड रेप इंसिटेडेंट्स' शीर्षक के तहत एक पीआईएल (जनहित याचिका) दर्ज की.

अदालत ने अपनी ही रिपोर्ट के बाद पीआईएल दर्ज की. रिपोर्ट के अनुसार, देशभर में इस साल एक जनवरी से लेकर 30 जून तक 24,212 मामले दर्ज किए गए.

शीर्ष अदालत ने 15 जुलाई को संबंधित प्राधिकरणों को देशभर में जिलावार बाल दुष्कर्म के मामलों को इकट्ठा करने का निर्देश दिया.

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