चेन्नई : तमिलनाडु की राजनीति में छाए राजनीतिक शून्य की वजह से ही भगवा पार्टी को लगता है यह समय इस शून्य को भरने के लिए उचित है. क्योंकि रजनीकांत ने राजनीति में डुबकी लगाने से पहले ही दौड़ से खुद को बाहर कर लिया है. कमल हसन ने खुद को हालात के हाल पर छोड़ दिया है. लेकिन 2019 के लोक सभा चुनाव के परिणाम देखें, तो कहा जा सकता है कि एक सीमा के बाद नेतृत्व के स्तर पर राजनीतिक शून्य बना हुआ है.
द्रविड़ की हृदयभूमि में राजनीति शायद ही कभी आश्चर्यचकित करती हो. 1967 में जब कांग्रेस सत्ता से अलग हुई, तब से राज्य पर द्रमुक या अन्नाद्रमुक का शासन था. दशकों तक राष्ट्रवादी राजनीति हाशिए पर ही रही और हर चुनाव परिणाम इस बात की गवाही देते रहे. अब AIADMK की प्रमुख रहीं जयललिता और उनके साथ दांव-पेंच का संबंध रखने वाले करुणानिधि के निधन के साथ ही 'राजनीतिक शून्य' पैदा हो गया है. पहले रजनीकांत ने राजनीतिक शून्य की बात उठाई. फिर खुद को मसीहा घोषित करते हुए कमल हसन सामने आए. भगवा ब्रिगेड ने द्रविड़ विचारधारा और विरासत को पकड़ने की कोशिश की है, लेकिन बड़ा सवाल यही कि क्या कोई इसमें सेंध लगा पाएगा?
जब नहीं चला मोदी मैजिक
इन दो नेताओं की अनुपस्थिति में द्रविड़ राजनीतिक कमजोर हो रही है और न तो DMK और न ही AIADMK राज्य को चलाने में सक्षम दिख रहे हैं. सच कहें, तो दोनों अपनी प्रासंगिकता खो रहे हैं. माना जाता है कि दोनों ही राजनीतिक परिदृश्य पर हावी रहे, जो राष्ट्रीय दलों से किसी भी हाल में कमतर नहीं थे. हालांकि, उनके बाद की चीजों में द्रविड़ आधिपत्य को चुनौती देने वालों के लिए कुछ बेहतर नहीं हुआ. 2019 के लोक सभा चुनाव में तमिलनाडु ने राष्ट्रीय प्रवृत्ति को भुनाया जो द्रमुक के साथ खड़ा था. इसलिए तमिलनाडु 'मोदी मैजिक' से दूर रहा.
39 में 38 सीटें जीतने का करिश्मा
जयललिता की दिसंबर 2016 में मृत्यु हो गई थी. विधानसभा चुनावों से सत्ता में बने रहने के कुछ महीने बाद अगस्त 2018 में करुणानिधि का निधन हो गया. इस प्रकार यह उनकी उपस्थिति के बिना लड़ा गया राज्य का पहला चुनाव था. हालांकि, स्टालिन ने DMK को आगे बढ़ाया, लेकिन लोक सभा का चुनाव उनके लिए एक एसिड टेस्ट साबित हुआ. जैसे ही परिणाम घोषित किए गए स्टालिन भावना से अभिभूत हो गए और पार्टी मुख्यालय अन्ना आर्युल्यम में मीडिया को संबोधित करते हुए भावुक हो गए. उस समय एक नेता का राजनीतिक क्षितिज पर एक नेता का जन्म हुआ. उनके नेतृत्व में धर्मनिरपेक्ष गठबंधन ने अन्नाद्रमुक और भाजपा को घाव दिए. यहां की 39 लोक सभा सीटों में से डीएमके की अगुआई वाले गठबंधन को 38 सीटें मिलीं.
राजनीतिक विरासत पर घमासान
इसके बाद उन्होंने करुणानिधि की राजनीतिक विरासत के अन्य दावेदारों को हाशिए पर रखते हुए पार्टी संगठन का प्रभावी नेतृत्व किया. पार्टी प्रमुख के रूप में राज्याभिषेक से पहले जब करुणानिधि जीवित थे, उनके बड़े भाई एमके अलागिरी को निष्कासित कर दिया गया था. तब से अलागिरी राजनीतिक वनवास में चले गए थे और उनकी वापसी का रास्ता दिखाई नहीं देता है. हालांकि, एआईएडीएमके स्पष्ट रूप से विभाजित है, लेकिन एक नेता की कमी लगती है. वीके शशिकला द्वारा चुनौती दिए जाने के बावजूद जिन्होंने अपने इरादे स्पष्ट कर दिए थे. मुख्यमंत्री एडापाडी के पलानीस्वामी (ईपीएस) कोई जोर नहीं दे रहे हैं. राजनीतिक चतुराई दिखाते हुए उन्होंने पद पर अपना कार्यकाल पूरा करने के लिए एक महत्वाकांक्षी डिप्टी सीएम, ओ पन्नीरसेल्वम को जोड़ लिया है. साथ ही 22 विधानसभा क्षेत्रों के लिए हुए उपचुनाव में पार्टी 9 सीटें जीतने में कामयाब रही और सरकार बची.
विधानसभा चुनावों में परीक्षा
इस तथ्य से कोई इनकार नहीं करता है कि सत्ता वह गोंद है जो अन्नाद्रमुक के साथ मिलकर अब तक कायम है. हालांकि, मुख्यमंत्री के रूप में ईपीएस ने खुद के लिए किसान के रूप में पेश किया और एमजीआर व जयललिता के सांचे में लोकलुभावन नेता की छवि का निर्माण किया. 'कोंगु' बेल्ट यानी पश्चिमी तमिलनाडु से उन्हें प्रमुख गडेर समुदाय का समर्थन प्राप्त है. जिसे AIADMK का गढ़ कहा जाता है. कम से कम पार्टी के भीतर एक तबके के लिए वे एक नेता के रूप में उभरे हैं. यह तब भी दिखा जब कई पार्टी नेता निवेश की तलाश में विदेश यात्रा से पहले चेन्नई हवाई अड्डे पर उसके चरणों में गिर गए थे.
भाजपा के लिए मौका बरकरार
शशिकला और उनके भतीजे टीटीवी धिनकरन के साथ जयललिता के पूर्व विश्वासपात्र हो सकते हैं फिर भी पार्टी को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए दोनों के बीच कोई समझौता नहीं किया जा सकता. दोनों के बीच पैच-अप के लिए काम कर रही भाजपा के लिए यह एक सम्मानजनक सौदा हो सकता है. यह सच है कि 2014 के लोक सभा चुनाव में AIADMK का वोट शेयर घट गया है. हालांकि, राजनीतिक पंडितों को गलत साबित करते हुए DMK के लिए मौके हैं. जयललिता की अनुपस्थिति के बावजूद पार्टी के साथ गठबंधन करने के लिए एक शक्ति बनी हुई है.
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जैसे-जैसे चीजें खड़ी होती हैं राजनीतिक वैक्यूम खत्म होता जाएगा. यह विधानसभा चुनाव 2019 के लोक सभा चुनाव की तरह ही साबित हो सकता है.