हरिद्वार: हरकी पैड़ी पर आज सतरंगी माहौल दिखाई दिया. देश के अलग-अलग स्थानों से आये मुल्तान समाज के लोग हरकी पैड़ी पर आस्था के रंग में रंगे दिखाई दिए. धार्मिक माहौल में गंगा तट पर दूध की होली खेली गई. साथ ही इस अवसर पर मुल्तान समाज के लोगों ने धार्मिक अनुष्ठा भी किया. कार्यक्रम में देश भक्ति का रंग भी लोगों के सर चढ़कर बोला और तिरंगे झंडे के साथ मां गंगा के जयकारों के साथ हरिद्वार की सड़कें गुंजायमान रही.
हरिद्वार के गंगा घाटों पर खासकर हरकी पौड़ी पर कुछ अलग ही नजारा देखने को मिला. देश के अलग-अलग स्थानों से आये मुल्तान समाज के लोग हरकी पैड़ी पर आस्था के रंग में रंगे दिखाई दिए. धार्मिक माहौल में गंगा तट पर दूध की होली खेली गई. हरकी पौड़ी के पवित्र ब्रह्मकुंड में मां गंगा के साथ दूध की होली ने श्रद्धालुओं का भी ध्यान अपनी ओर खींचा. करीब 109 साल पहले सन 1911 में पकिस्तान में रहने वाले व्यापारी लाला रूपचंद ने पैदल आकर हरिद्वार में मां गंगा में जोत प्रवाहित की थी. असल में लाला रूपचंद के दस बच्चे थे लेकिन उनके बच्चे नहीं बच पाये.
एक दिन जब उनकी लड़की को गंभीर चोट लगी तो फिर उन्हें लगा की उनका ये बच्चा भी नहीं बच पायेगा. फिर उन्हें किसी ने कहा की अगर वे हरिद्वार पैदल गंगा मां में जाकर जोत जलाएंगे तो गंगा मैया के आशीर्वाद से उनके दुःख दूर होंगे. इस पर लाला रूपचंद मुल्तान से जोत को लेकर हरिद्वार आये थे और उनकी कामना पूरी हुई थी. लाला रूपचंद के द्वारा शुरू की गई यह यात्रा आज भी परंपरिक ढंग से मनाई जाता है. मुल्तान जोत महोत्सव के रूप में मुल्तान समाज के लोग मां गंगा से दूध की होली खेलकर देश और समाज की खुशहाली की कामना करते हैं.
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जोत लेकर आये लोगों का मानना था कि मां गंगा में दूध अर्पित करना और गंगा जी के साथ दूध की होली खेलने का खास महत्व है. वे इसके माध्यम से गंगा की पवित्रता गंगा की निर्मलता देश और दुनिया में सुख शांति का पैगाम दे रहे है और चाहते है कि आपस में मेल-जोल के साथ रहे. पाकिस्तान से शुरू हुई यह यात्रा में आज भले ही देश के अलग-अलग जगहों लोग हरिद्वार आते हैं. लेकिन पहले कि तरह ही आज भी लोग लाला रूपचंद जी को याद करते हुए जोत महोत्सव को बड़ी धूम-धाम से मनाते हैं. ये यात्रा सौहार्द भाव के लिए भी जानी जाती है.