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बीड़ी बेचने को मजबूर हैं केरल की मीनाक्षी, कभी राष्ट्रपति ने भोज के लिए किया था आमंत्रित

आंखों में सरकारी नौकरी पाने और अपने समुदाय के लोगों को प्रेरित करने का सपना लिए आदिवासी समुदाय की महिला मीनाक्षी को मजबूरन बीड़ी का व्यवसाय करना पड़ रहा है. पढ़ें पूरी खबर.....

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Published : Jul 16, 2019, 12:04 AM IST

सरकारी नौकरी पाने का सपना लिए बीड़ी बेचने को मजबूर आदिवासी महिला

तिरुवनंतपुरमः केरल की मीनाक्षी ने एमफिल की डिग्री हासिल की है. उन्हें कन्नड़ में मास्टर्स डिग्री हासिल करने के बाद राष्ट्रपति ने भोज के लिए भी आमंत्रित किया था. वे कोरगा आदिवासी समुदाय में एमफिल की उपाधि हासिल करने वाली पहली युवती हैं. हालांकि, इतनी उच्च शिक्षा हासिल करने के बावजूद मीनाक्षी अपनी गुजर बसर के लिए बीड़ी बना रही हैं.

गौरतलब है कि केरल की रहने वाली इस आदिवासी महिला का नाम मीनाक्षी है. मीनाक्षी ने जब अपनी डिग्री हासिल की थी तो उन्हें खुद पर बेहद गर्व था. लेकिन बदकिस्मती के कारण इस अनुसूचित जनजाति की लड़की को पास इतनी योग्यता होने के बाद भी उसे बीड़ी बनाकर पैसे कमाने पड़ रहे हैं.

भले ही मीनाक्षी ऐसे आदिवासी समुदाय से संबंध रखती है, जिसकी आबादी दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है. बावजूद इसके मीनाक्षी को किसी सरकारी विभाग में अस्थायी नियुक्ति तक नहीं मिली है.

आपको बता दें कि जब मीनाक्षी ने अपनी ग्रेजुएशन की तो उन्होंने सोचा कि वह अपनी अपनी जनजाति की आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरित करेंगी.

जब उन्होंने कन्नड़ में मास्टर्स हासिल किया तो, उन्हें राष्ट्रपति भोज के लिए आमंत्रित किया गया था, लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि आज भी उन्हें अपनी आजीविका के लिए बीड़ी का व्यापार करना पड़ रहा है.

बता दें कि, बीड़ी से कमाए हुए पैसे से मीनाक्षी ने 10 वीं कक्षा से सभी शैक्षिक जरूरतों को पूरा किया.

पढ़ेंः 12 साल की लड़की केरल में चला रही है मुफ्त लाइब्रेरी

इसके बाद मीनाक्षी ने सोचा कि जब उसे डिग्री मिलेगी तो उसे सरकारी नौकरी मिल जाएगी और उसके हालातो में सुधार आ जाएगा, और उसे नया जीवन मिल जाएगा.

लेकिन अब मीनाक्षी के पास मात्र सर्टिफिकेट और सरकारी नौकरी पाने का सपना है.

आपको बता दें कि कोरागा समुदाय की कुल आबादी 1500 से भी कम है. आरक्षण का मतलब पिछड़े हुए समाज को मुख्यधारा में लाना है. लेकिन मीनाक्षी के लिए यह किसी काम का नहीं है.

मीनाक्षी का कहना है कि अगर उन्हें सरकारी नौकरी की पेशकश की जाती तो, यह उनकी जनजाती के लोगों को प्रेरित करता.

मीनाक्षी का सपना एक शिक्षक बनने का है, उन्हें रिसर्च करना पसंद है. लेकिन उनके पास बीड़ी बनाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है.

उन्हें अफसोस है कि वह अपनी आय का एक हिस्सा नौकरी ढूंढने में खर्च कर देती हैं.

तिरुवनंतपुरमः केरल की मीनाक्षी ने एमफिल की डिग्री हासिल की है. उन्हें कन्नड़ में मास्टर्स डिग्री हासिल करने के बाद राष्ट्रपति ने भोज के लिए भी आमंत्रित किया था. वे कोरगा आदिवासी समुदाय में एमफिल की उपाधि हासिल करने वाली पहली युवती हैं. हालांकि, इतनी उच्च शिक्षा हासिल करने के बावजूद मीनाक्षी अपनी गुजर बसर के लिए बीड़ी बना रही हैं.

गौरतलब है कि केरल की रहने वाली इस आदिवासी महिला का नाम मीनाक्षी है. मीनाक्षी ने जब अपनी डिग्री हासिल की थी तो उन्हें खुद पर बेहद गर्व था. लेकिन बदकिस्मती के कारण इस अनुसूचित जनजाति की लड़की को पास इतनी योग्यता होने के बाद भी उसे बीड़ी बनाकर पैसे कमाने पड़ रहे हैं.

भले ही मीनाक्षी ऐसे आदिवासी समुदाय से संबंध रखती है, जिसकी आबादी दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है. बावजूद इसके मीनाक्षी को किसी सरकारी विभाग में अस्थायी नियुक्ति तक नहीं मिली है.

आपको बता दें कि जब मीनाक्षी ने अपनी ग्रेजुएशन की तो उन्होंने सोचा कि वह अपनी अपनी जनजाति की आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरित करेंगी.

जब उन्होंने कन्नड़ में मास्टर्स हासिल किया तो, उन्हें राष्ट्रपति भोज के लिए आमंत्रित किया गया था, लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि आज भी उन्हें अपनी आजीविका के लिए बीड़ी का व्यापार करना पड़ रहा है.

बता दें कि, बीड़ी से कमाए हुए पैसे से मीनाक्षी ने 10 वीं कक्षा से सभी शैक्षिक जरूरतों को पूरा किया.

पढ़ेंः 12 साल की लड़की केरल में चला रही है मुफ्त लाइब्रेरी

इसके बाद मीनाक्षी ने सोचा कि जब उसे डिग्री मिलेगी तो उसे सरकारी नौकरी मिल जाएगी और उसके हालातो में सुधार आ जाएगा, और उसे नया जीवन मिल जाएगा.

लेकिन अब मीनाक्षी के पास मात्र सर्टिफिकेट और सरकारी नौकरी पाने का सपना है.

आपको बता दें कि कोरागा समुदाय की कुल आबादी 1500 से भी कम है. आरक्षण का मतलब पिछड़े हुए समाज को मुख्यधारा में लाना है. लेकिन मीनाक्षी के लिए यह किसी काम का नहीं है.

मीनाक्षी का कहना है कि अगर उन्हें सरकारी नौकरी की पेशकश की जाती तो, यह उनकी जनजाती के लोगों को प्रेरित करता.

मीनाक्षी का सपना एक शिक्षक बनने का है, उन्हें रिसर्च करना पसंद है. लेकिन उनके पास बीड़ी बनाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है.

उन्हें अफसोस है कि वह अपनी आय का एक हिस्सा नौकरी ढूंढने में खर्च कर देती हैं.

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When degrees are just Certificates......



Kasargode: The very first M.Phill graduate from Koraga tribal community is still making beedis for her livelihood When Meenakshi achieved all these degrees she was really proud. But a person from Kuloor scheduled tribe of Vorkkadi, having this much educational qualification still making beedis for livelihood is such a bad luck. Even though she belongs to a tribal community whose population is declining day by day, she not even get a temporary appointment in any of the government departments.  



When she became a graduate she expect that it will inspire the upcoming generations of her tribe. When she achieved Masters in Kannada, she had been invited for President's Banquet and even then she is making beedis for her livelihood. The money earned through beedi making helped her to complete all the educational needs from 10th standard. She thought that when she become a degree holder she will get a government job, all her situations will change and thereby get a new life. But till now she has only those cerifiacates and her dream of government job. 



The koraga community which Meenakshi belongs have a population less than 1500. The reservation is meant to bring backward society into the mainstream, but it does not work incase of Meenakshi. Meenakshi says that if she was offered a job, it would inspire the people in her tribe. Meenakshi wants to be a teacher and love to do research. But there is no way for this other than beedi making. She is very dissapointed as she loss a part of her income getting from beedi making by searching for a job. The only income that she has is from beedi making but insearch of a new job that satisfys her, she lose that minimal amount that she earns now. 

 


Conclusion:
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