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कृषि कानूनों से किसानों के हित प्रभावित, बदलाव जरूरी : भारतीय किसान संघ

कृषि सुधार कानून का किसान विरोध कर रहे हैं. इसको लेकर ईटीवी भारत ने भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय सचिव मोहिनी मोहन मिश्रा से बातचीत की है. भारतीय किसान संघ ने कहा है कि वह सीधे किसी भी कानून का विरोध या समर्थन नहीं करते हैं. कानून में कुछ अच्छी बातें हैं जिनका किसान संघ ने स्वागत किया है. हालांकि, बीकेएस ने कुछ बिंदुओं पर अपने सुझाव और मांगें भी सरकार के सामने रखी हैं.

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Published : Oct 28, 2020, 5:37 AM IST

नई दिल्ली : कृषि सुधार कानून के विरोध में देश भर के किसान संगठन लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से सम्बद्ध किसान इकाई भारतीय किसान संघ (बीकेएस) ने कहा है कि केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि सुधार कानून वास्तव में किसानों के लिए नहीं बल्कि व्यापारियों के लिए हैं.

ईटीवी भारत ने भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय सचिव मोहिनी मोहन मिश्रा से विशेष बातचीत की. बातचीत के दौरान उन्होंने कृषि कानूनों पर खुल कर अपने विचार साझा किए. उन्होंने कहा कि तीनों कानून में व्यापारियों का फायदा जरूर दिखता है लेकिन किसानों के फायदे के लिए इन्हें और दुरुस्त करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि कृषि कानूनों में जरूरी बदलाव नहीं किए गए तो देश का किसान व्यापारियों के जाल में फंस जाएगा.

मोहिनी मोहन मिश्रा से बातचीत

आवश्यक वस्तु अधिनियम

नए कानून में एक देश एक बाजार और मंडियों के टैक्स को खत्म करने का किसान संघ ने स्वागत किया है, लेकिन आवश्यक वस्तु अधिनियम पर किसान संघ के अपने सुझाव हैं. बीकेएस का कहना है कि इसको खत्म नहीं करना चाहिए था.

मोहिनी मोहन ने कहा कि जब अध्यादेश लाए गए उस समय से ही भारतीय किसान संघ (बीकेएस) द्वारा कुछ बदलावों की मांग की जा रही है. आम तौर पर मंडियों की यह परंपरा बन चुकी है कि किसान के उत्पाद को गुणवत्ता के नाम पर पहले खरीदने से इनकार किया जाता है. फिर बाद में उसे सस्ते दामों पर खरीदा जाता है. उन्होंने कहा कि किसानों में मंडियों के इस रवैये के प्रति नाराजगी है, जिसे दूर किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि तय न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे खरीद पर रोक लगाए जाने पर यह समस्या दूर हो सकती है.

किसान-व्यापारी दोनों के पास हों पूरी सूचनाएं

उन्होंने बताया, बीकेएस का दूसरा सुझाव है कृषि क्षेत्र में खरीद करने वाली कंपनियों और व्यापारियों का ब्यौरा सरकारी पोर्टल पर उपलब्ध हो. उन्होंने कहा कि सरकार के बनाए कानून के अनुसार कोई भी व्यापारी जिसके पास पैन कार्ड है वह किसानों से खरीद कर सकता है, लेकिन भारतीय किसान संघ की मांग है कि सभी व्यापारियों के बारे में पूरी सूचना सरकार और किसान दोनों के पास उपलब्ध होनी चाहिए.

किसान संघ के तीसरे सुझाव पर मोहिनी मोहन ने कहा, 'भुगतान संबंधी सुरक्षा के तहत किसानों को बैंक गारंटी की सुविधा मिलनी चाहिए, यदि कोई व्यापारी या कंपनी किसान से खरीद कर उसका भुगतान नहीं करती है तो ऐसे में बैंक गारंटी से उसे सुरक्षा मिलेगी और कोई उनके साथ धोखाधड़ी नहीं कर पाएगा.'

किसानों के लिए बने अलग अदालत

उन्होंने बताया कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत यदि किसान और कंपनी के बीच किसी तरह का विवाद होता है उसके लिए डीएम या एसडीएम स्तर के अधिकारी इसका निष्पादन करेंगे लेकिन किसान संघ की मांग है कि किसानों के लिए अलग से किसान कोर्ट स्थापित किए जाएं जहां केवल कृषि और किसानों से संबंधित मामलों का निष्पादन हों.

एमएसपी कानून का हिस्सा बने

मोहिनी मोहन ने कहा कि इस प्रक्रिया में समय लग सकता है और राज्य सरकारों की सहमति भी इसके लिए आवश्यक होगी लेकिन इसकी शुरुआत सरकार को कर देनी चाहिए. भारतीय किसान संघ के लिए भी सबसे महत्वपूर्ण बिन्दु एमएसपी से संबंधित ही है. मंडी से अंदर या उससे बाहर, सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि घोषित एमएसपी से कम कीमत पर किसान से खरीद न की जाए. इस बात को सरकार कानून का हिस्सा बनाए.

किसानों से नहीं की गई बात

उन्होंने कहा कि कानून लाने से पहले यदि सरकार किसानों के साथ बातचीत कर लेती तो बेहतर होता, लेकिन सरकार ने इन कानूनों को लाने से पहले केवल व्यापारियों से ही चर्चा की. आज व्यपारियों को खेती में निवेश करना है लेकिन उससे जुड़े जोखिम में साझेदारी नहीं करनी है.

नहीं बन सका 'कृषक केंद्रित कानून'

उन्होंने सरकार के साथ बातचीत कर अपने पक्ष में कानून बनवा लिया लेकिन किसानों से बातचीत हुई होती तो किसान भी अपने पक्ष सरकार के समक्ष रख पाते. सरकार मानती है कि व्यापारियों का भला होगा तो कुछ भला किसानों का भी हो जाएगा लेकिन किसान संघ इससे सहमत नहीं है. इन कानूनों को किसान केंद्रित होना चाहिए थे लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

पढ़ें :- क्या किसानों को भरोसा देने का यही तरीका है?

दरअसल, आम तौर पर भारतीय किसान संघ को सरकार का पक्षधर कहा जाता है और आज जब देश के ज्यादातर किसान संगठन एकजुट हो कर आंदोलन कर रहे हैं ऐसे में भारतीय किसान संघ द्वारा आंदोलन न छेड़े जाने को अन्य किसान संगठन इस नजरिए से देखते हैं कि आरएसएस से संबद्ध होने के कारण भारतीय किसान संघ सरकार का पक्षधर है.

संघ और सरकार की राय से असहमति या उनके पक्षधर होने के सवाल पर मोहिनी मोहन मिश्रा ने कहा कि कृषि कानून जब अध्यादेश के रूप में लाए गए तब सबसे पहला आंदोलन भारतीय किसान संघ ने ही किया था और चार सुझाव सरकार के पास भेजे गए थे.

किसानों के हित के लिए खड़ा है बीकेएस

सरकार का पक्ष लेने की बात सिरे से नकारते हुए उन्होंने कहा कि किसान संघ की मुहिम के बाद ही प्रधानमंत्री और केंद्रीय कृषि मंत्री को देश के 25 हजार गांव से किसानों ने अपने सुझाव भेजे थे.

उन्होंने कहा कि कोरोना काल में भारतीय किसान संघ के कार्यकर्ताओं ने सड़क पर आंदोलन न करने का निर्णय लिया. मोहिनी मोहन मिश्रा ने कहा कि आने वाले महीनों में भारतीय किसान संघ इस पर चर्चा कर आगे की रणनीति तय करेगा.

देश के अन्य किसान संगठनों से एकजुटता की अपील करते हुए मोहिनी मोहन मिश्रा ने कहा है कि किसानों की आवाज के साथ-साथ मंडियों में जो किसानों के साथ अन्याय होता है इसके खिलाफ भी आवाज उठाने की जरूरत है.

नई दिल्ली : कृषि सुधार कानून के विरोध में देश भर के किसान संगठन लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से सम्बद्ध किसान इकाई भारतीय किसान संघ (बीकेएस) ने कहा है कि केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि सुधार कानून वास्तव में किसानों के लिए नहीं बल्कि व्यापारियों के लिए हैं.

ईटीवी भारत ने भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय सचिव मोहिनी मोहन मिश्रा से विशेष बातचीत की. बातचीत के दौरान उन्होंने कृषि कानूनों पर खुल कर अपने विचार साझा किए. उन्होंने कहा कि तीनों कानून में व्यापारियों का फायदा जरूर दिखता है लेकिन किसानों के फायदे के लिए इन्हें और दुरुस्त करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि कृषि कानूनों में जरूरी बदलाव नहीं किए गए तो देश का किसान व्यापारियों के जाल में फंस जाएगा.

मोहिनी मोहन मिश्रा से बातचीत

आवश्यक वस्तु अधिनियम

नए कानून में एक देश एक बाजार और मंडियों के टैक्स को खत्म करने का किसान संघ ने स्वागत किया है, लेकिन आवश्यक वस्तु अधिनियम पर किसान संघ के अपने सुझाव हैं. बीकेएस का कहना है कि इसको खत्म नहीं करना चाहिए था.

मोहिनी मोहन ने कहा कि जब अध्यादेश लाए गए उस समय से ही भारतीय किसान संघ (बीकेएस) द्वारा कुछ बदलावों की मांग की जा रही है. आम तौर पर मंडियों की यह परंपरा बन चुकी है कि किसान के उत्पाद को गुणवत्ता के नाम पर पहले खरीदने से इनकार किया जाता है. फिर बाद में उसे सस्ते दामों पर खरीदा जाता है. उन्होंने कहा कि किसानों में मंडियों के इस रवैये के प्रति नाराजगी है, जिसे दूर किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि तय न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे खरीद पर रोक लगाए जाने पर यह समस्या दूर हो सकती है.

किसान-व्यापारी दोनों के पास हों पूरी सूचनाएं

उन्होंने बताया, बीकेएस का दूसरा सुझाव है कृषि क्षेत्र में खरीद करने वाली कंपनियों और व्यापारियों का ब्यौरा सरकारी पोर्टल पर उपलब्ध हो. उन्होंने कहा कि सरकार के बनाए कानून के अनुसार कोई भी व्यापारी जिसके पास पैन कार्ड है वह किसानों से खरीद कर सकता है, लेकिन भारतीय किसान संघ की मांग है कि सभी व्यापारियों के बारे में पूरी सूचना सरकार और किसान दोनों के पास उपलब्ध होनी चाहिए.

किसान संघ के तीसरे सुझाव पर मोहिनी मोहन ने कहा, 'भुगतान संबंधी सुरक्षा के तहत किसानों को बैंक गारंटी की सुविधा मिलनी चाहिए, यदि कोई व्यापारी या कंपनी किसान से खरीद कर उसका भुगतान नहीं करती है तो ऐसे में बैंक गारंटी से उसे सुरक्षा मिलेगी और कोई उनके साथ धोखाधड़ी नहीं कर पाएगा.'

किसानों के लिए बने अलग अदालत

उन्होंने बताया कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत यदि किसान और कंपनी के बीच किसी तरह का विवाद होता है उसके लिए डीएम या एसडीएम स्तर के अधिकारी इसका निष्पादन करेंगे लेकिन किसान संघ की मांग है कि किसानों के लिए अलग से किसान कोर्ट स्थापित किए जाएं जहां केवल कृषि और किसानों से संबंधित मामलों का निष्पादन हों.

एमएसपी कानून का हिस्सा बने

मोहिनी मोहन ने कहा कि इस प्रक्रिया में समय लग सकता है और राज्य सरकारों की सहमति भी इसके लिए आवश्यक होगी लेकिन इसकी शुरुआत सरकार को कर देनी चाहिए. भारतीय किसान संघ के लिए भी सबसे महत्वपूर्ण बिन्दु एमएसपी से संबंधित ही है. मंडी से अंदर या उससे बाहर, सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि घोषित एमएसपी से कम कीमत पर किसान से खरीद न की जाए. इस बात को सरकार कानून का हिस्सा बनाए.

किसानों से नहीं की गई बात

उन्होंने कहा कि कानून लाने से पहले यदि सरकार किसानों के साथ बातचीत कर लेती तो बेहतर होता, लेकिन सरकार ने इन कानूनों को लाने से पहले केवल व्यापारियों से ही चर्चा की. आज व्यपारियों को खेती में निवेश करना है लेकिन उससे जुड़े जोखिम में साझेदारी नहीं करनी है.

नहीं बन सका 'कृषक केंद्रित कानून'

उन्होंने सरकार के साथ बातचीत कर अपने पक्ष में कानून बनवा लिया लेकिन किसानों से बातचीत हुई होती तो किसान भी अपने पक्ष सरकार के समक्ष रख पाते. सरकार मानती है कि व्यापारियों का भला होगा तो कुछ भला किसानों का भी हो जाएगा लेकिन किसान संघ इससे सहमत नहीं है. इन कानूनों को किसान केंद्रित होना चाहिए थे लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

पढ़ें :- क्या किसानों को भरोसा देने का यही तरीका है?

दरअसल, आम तौर पर भारतीय किसान संघ को सरकार का पक्षधर कहा जाता है और आज जब देश के ज्यादातर किसान संगठन एकजुट हो कर आंदोलन कर रहे हैं ऐसे में भारतीय किसान संघ द्वारा आंदोलन न छेड़े जाने को अन्य किसान संगठन इस नजरिए से देखते हैं कि आरएसएस से संबद्ध होने के कारण भारतीय किसान संघ सरकार का पक्षधर है.

संघ और सरकार की राय से असहमति या उनके पक्षधर होने के सवाल पर मोहिनी मोहन मिश्रा ने कहा कि कृषि कानून जब अध्यादेश के रूप में लाए गए तब सबसे पहला आंदोलन भारतीय किसान संघ ने ही किया था और चार सुझाव सरकार के पास भेजे गए थे.

किसानों के हित के लिए खड़ा है बीकेएस

सरकार का पक्ष लेने की बात सिरे से नकारते हुए उन्होंने कहा कि किसान संघ की मुहिम के बाद ही प्रधानमंत्री और केंद्रीय कृषि मंत्री को देश के 25 हजार गांव से किसानों ने अपने सुझाव भेजे थे.

उन्होंने कहा कि कोरोना काल में भारतीय किसान संघ के कार्यकर्ताओं ने सड़क पर आंदोलन न करने का निर्णय लिया. मोहिनी मोहन मिश्रा ने कहा कि आने वाले महीनों में भारतीय किसान संघ इस पर चर्चा कर आगे की रणनीति तय करेगा.

देश के अन्य किसान संगठनों से एकजुटता की अपील करते हुए मोहिनी मोहन मिश्रा ने कहा है कि किसानों की आवाज के साथ-साथ मंडियों में जो किसानों के साथ अन्याय होता है इसके खिलाफ भी आवाज उठाने की जरूरत है.

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