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मोदी के 'टॉप सीक्रेट' मिशन कश्मीर को शाह एंड कंपनी ने कैसे दिया अंजाम - mission kashmir

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन बिल को लाने का फैसला कोई रातों रात नहीं हुआ, बल्कि यह सोच समझ कर उठाया गया कदम है. किस तरह से शाह एंड कंपनी ने इस मिशन को अंजाम तक पहुंचाया, ये जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर...

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Published : Aug 5, 2019, 9:16 PM IST

नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य के टुकड़े करने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मिशन की शुरुआत दरअसल जून के तीसरे हफ्ते में ही हो गई थी. उस जब उन्होंने 1987 बैच के छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएएस अधिकारी बीवीआर सुब्रमण्यम को जम्मू-कश्मीर का नया मुख्य सचिव नियुक्त किया.

सुब्रमण्यम ने पीएमओ (प्रधानमंत्री कार्यालय) में संयुक्त सचिव के रूप में प्रधानमंत्री के साथ पहले भी काम किया था. वे मोदी के मिशन कश्मीर के मुख्य अधिकारियों में से एक थे. मिशन कश्मीर का समूचा काम केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को दिया गया था, जो कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद के साथ मिलकर अपनी कोर टीम के साथ कानून निहितार्थ की समीक्षा कर रहे थे, जिसमें कानून और न्याय सचिव आलोक श्रीवास्तव, अतिरिक्त सचिव कानून (गृह मंत्रालय) आर. एस. वर्मा, अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल, केंद्रीय गृह सचिव राजीव गौबा और कश्मीर खंड की उनकी चुनी हुई टीम शामिल थी.

शाह ने बजट सत्र की शुरुआत से पहले ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत और उनके सहयोगी (महासचिव) भैयाजी जोशी को अनुच्छेद 370 को हटाने और जम्मू और कश्मीर को दो अलग-अलग केंद्रशासित प्रदेशों में बांटने के केंद्र सरकार के विचार से अवगत करा दिया था.

कानूनी सलाह-मशविरे के बाद शाह का ध्यान अनुच्छेद 370 हटाने के बाद घाटी में कानून और व्यवस्था की स्थिति संभालने पर था. शाह से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि प्रधानमंत्री की सलाह पर शाह ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोभाल के साथ कई दौर की बैठक की.

सूत्रों ने बताया कि शाह ने जब एक बार कश्मीर की स्थिति की खुद समीक्षा कर ली, उसके बाद डोभाल को सुरक्षा की दृष्टि से स्थिति की समीक्षा करने के लिए श्रीनगर भेजा गया.

पढ़ें: अनुच्छेद 370: जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन बिल पर सिलसिलेवार UPDATE

एनएसए ने वहां तीन दिनों तक डेरा डाला. उसके बाद 26 जुलाई को अमरनाथ यात्रा रोकने का फैसला किया गया. उसके बाद घाटी से सभी पर्यटकों को निकालने की सलाह भी डोभाल ने ही दी थी. इसके बाद केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की 100 अतिरिक्त कंपनियों की तैनाती सुरक्षा व्यवस्था के मद्देनजर की गई.

जम्मू और कश्मीर के मुख्य सचिव सुब्रमण्यम जो प्रधानमंत्री कार्यालय और गृह मंत्रालय के साथ संपर्क में थे, उन्होंने ग्राउंड जीरो पर कई सुरक्षा कदम उठाने का खाका तैयार किया, जिसमें पुलिस, अर्धसैनिक बलों और प्रशासन के प्रमुख अधिकारियों द्वारा सैटेलाइट फोन का प्रयोग करने, संवेदनशील शहरी और ग्रामीण इलाकों में क्यूआरटी (क्विक रेस्पांस टीम) की तैनाती करने, तथा सेना द्वारा नियंत्रण रेखा पर चौकसी बढ़ाने जैसे कदम शामिल थे.

सेना, सुरक्षा एजेंसियों और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के प्रमुख केंद्रीय गृह मंत्रालय और राज्य के मुख्य सचिव के साथ चौबीसों घंटे संपर्क में थे.

4 अगस्त की महत्वपूर्ण रात को मुख्य सचिव ने पुलिस महानिदेशक (जम्मू एवं कश्मीर) दिलबाग सिंह को कई निवारक कदम उठाने के निर्देश दिए, जिनमें प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी, मोबाइल और लैंडलाइन सेवाएं बंद करने, धारा 144 लागू करने तथा घाटी में कर्फ्यू के दौरान सुरक्षा बलों की गश्ती बढ़ाना शामिल है.

पढ़ें: अनुच्छेद 370: जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक दोनों सदनों में पारित

इससे पहले, दिल्ली में शाह ने अपने एक और प्रमुख टीम को काम पर लगाया, जिसमें राज्यसभा सदस्य अनिल बलूनी और भूपेंद्र यादव शामिल थे. इस दल को उच्च सदन के सदस्यों का समर्थन जुटाने का काम सौंपा गया, जहां भाजपा को बहुमत नहीं है.

इस टीम ने टीडीपी के राज्यसभा सदस्यों को तोड़ा और समाजवादी पार्टी के सांसद नीरज शेखर, सुरेंद्र नागर, संजय सेठ और कांग्रेस सांसद सजय सिंह को राज्यसभा से इस्तीफा दिलवाने का प्रबंध किया. इसके बाद भाजपा को उच्च सदन में काफी बल मिला.

वहीं, 12वें घंटे में टीम बसपा (बहुजन समाज पार्टी) के नेता सतीश मिश्रा का समर्थन हासिल करने में कामयाबी हासिल की.

इस दौरान अमित शाह ने प्रमुख पत्रकारों (जिनकी गृह मंत्रालय तक पहुंच थी) के साथ भी बंद कमरों में बैठक की और इस उच्च संवेदनशील मुद्दों पर संतुलित रिपोर्टिग करने की ताकीद की. शाह का मुख्य जोर शीर्ष स्तर की गुप्तता बरकरार रखने पर था, जब तक कि वे इस विधेयक को राज्यसभा में 5 अगस्त को संसद के पटल पर पेश नहीं करते.

पढ़ें: कश्मीर में बड़ा निवेश सम्मेलन करवाएगी केंद्र सरकार

सूत्रों ने बताया कि 2 अगस्त को शाह को भरोसा था कि उनकी पार्टी को राज्यसभा में पर्याप्त समर्थन हासिल हो गया है और सोमवार को उच्च सदन में इस ऐतिहासिक विधेयक (जम्मू एवं कश्मीर के टुकड़े करने) को पेश किया गया.

इस दौरान भाजपा सांसदों को व्हिप जारी किया गया था कि वे संसद में उपस्थित रहें, जहां महत्वपूर्ण विधेयक पारित किए जाने हैं.

उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि आखिरकार सप्ताहांत में मोदी और शाह ने सोमवार को मंत्रिमंडल की बैठक बुलाने और मंत्रियों को मिशन कश्मीर की जानकारी देने का फैसला किया और सदन से पहले इस संबंध में प्रस्ताव पारित किया गया.

इसी तरह, कानून और न्याय मंत्रालय को अनुच्छेद 370 निरस्त करने की अधिसूचना राष्ट्रपति से जल्द जारी करवाने का काम सौंपा गया.

राज्यसभा में शोर-शराबे के बीच सोमवार को अमित शाह ने जब विधेयक पेश किया, तो भाजपा के एक सांसद ने प्रतिक्रिया दी, 'शाह का मिशन कभी नाकामयाब नहीं होता. वे नए सरदार (वल्लभ भाई पटेल) हैं.'

नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य के टुकड़े करने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मिशन की शुरुआत दरअसल जून के तीसरे हफ्ते में ही हो गई थी. उस जब उन्होंने 1987 बैच के छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएएस अधिकारी बीवीआर सुब्रमण्यम को जम्मू-कश्मीर का नया मुख्य सचिव नियुक्त किया.

सुब्रमण्यम ने पीएमओ (प्रधानमंत्री कार्यालय) में संयुक्त सचिव के रूप में प्रधानमंत्री के साथ पहले भी काम किया था. वे मोदी के मिशन कश्मीर के मुख्य अधिकारियों में से एक थे. मिशन कश्मीर का समूचा काम केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को दिया गया था, जो कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद के साथ मिलकर अपनी कोर टीम के साथ कानून निहितार्थ की समीक्षा कर रहे थे, जिसमें कानून और न्याय सचिव आलोक श्रीवास्तव, अतिरिक्त सचिव कानून (गृह मंत्रालय) आर. एस. वर्मा, अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल, केंद्रीय गृह सचिव राजीव गौबा और कश्मीर खंड की उनकी चुनी हुई टीम शामिल थी.

शाह ने बजट सत्र की शुरुआत से पहले ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत और उनके सहयोगी (महासचिव) भैयाजी जोशी को अनुच्छेद 370 को हटाने और जम्मू और कश्मीर को दो अलग-अलग केंद्रशासित प्रदेशों में बांटने के केंद्र सरकार के विचार से अवगत करा दिया था.

कानूनी सलाह-मशविरे के बाद शाह का ध्यान अनुच्छेद 370 हटाने के बाद घाटी में कानून और व्यवस्था की स्थिति संभालने पर था. शाह से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि प्रधानमंत्री की सलाह पर शाह ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोभाल के साथ कई दौर की बैठक की.

सूत्रों ने बताया कि शाह ने जब एक बार कश्मीर की स्थिति की खुद समीक्षा कर ली, उसके बाद डोभाल को सुरक्षा की दृष्टि से स्थिति की समीक्षा करने के लिए श्रीनगर भेजा गया.

पढ़ें: अनुच्छेद 370: जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन बिल पर सिलसिलेवार UPDATE

एनएसए ने वहां तीन दिनों तक डेरा डाला. उसके बाद 26 जुलाई को अमरनाथ यात्रा रोकने का फैसला किया गया. उसके बाद घाटी से सभी पर्यटकों को निकालने की सलाह भी डोभाल ने ही दी थी. इसके बाद केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की 100 अतिरिक्त कंपनियों की तैनाती सुरक्षा व्यवस्था के मद्देनजर की गई.

जम्मू और कश्मीर के मुख्य सचिव सुब्रमण्यम जो प्रधानमंत्री कार्यालय और गृह मंत्रालय के साथ संपर्क में थे, उन्होंने ग्राउंड जीरो पर कई सुरक्षा कदम उठाने का खाका तैयार किया, जिसमें पुलिस, अर्धसैनिक बलों और प्रशासन के प्रमुख अधिकारियों द्वारा सैटेलाइट फोन का प्रयोग करने, संवेदनशील शहरी और ग्रामीण इलाकों में क्यूआरटी (क्विक रेस्पांस टीम) की तैनाती करने, तथा सेना द्वारा नियंत्रण रेखा पर चौकसी बढ़ाने जैसे कदम शामिल थे.

सेना, सुरक्षा एजेंसियों और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के प्रमुख केंद्रीय गृह मंत्रालय और राज्य के मुख्य सचिव के साथ चौबीसों घंटे संपर्क में थे.

4 अगस्त की महत्वपूर्ण रात को मुख्य सचिव ने पुलिस महानिदेशक (जम्मू एवं कश्मीर) दिलबाग सिंह को कई निवारक कदम उठाने के निर्देश दिए, जिनमें प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी, मोबाइल और लैंडलाइन सेवाएं बंद करने, धारा 144 लागू करने तथा घाटी में कर्फ्यू के दौरान सुरक्षा बलों की गश्ती बढ़ाना शामिल है.

पढ़ें: अनुच्छेद 370: जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक दोनों सदनों में पारित

इससे पहले, दिल्ली में शाह ने अपने एक और प्रमुख टीम को काम पर लगाया, जिसमें राज्यसभा सदस्य अनिल बलूनी और भूपेंद्र यादव शामिल थे. इस दल को उच्च सदन के सदस्यों का समर्थन जुटाने का काम सौंपा गया, जहां भाजपा को बहुमत नहीं है.

इस टीम ने टीडीपी के राज्यसभा सदस्यों को तोड़ा और समाजवादी पार्टी के सांसद नीरज शेखर, सुरेंद्र नागर, संजय सेठ और कांग्रेस सांसद सजय सिंह को राज्यसभा से इस्तीफा दिलवाने का प्रबंध किया. इसके बाद भाजपा को उच्च सदन में काफी बल मिला.

वहीं, 12वें घंटे में टीम बसपा (बहुजन समाज पार्टी) के नेता सतीश मिश्रा का समर्थन हासिल करने में कामयाबी हासिल की.

इस दौरान अमित शाह ने प्रमुख पत्रकारों (जिनकी गृह मंत्रालय तक पहुंच थी) के साथ भी बंद कमरों में बैठक की और इस उच्च संवेदनशील मुद्दों पर संतुलित रिपोर्टिग करने की ताकीद की. शाह का मुख्य जोर शीर्ष स्तर की गुप्तता बरकरार रखने पर था, जब तक कि वे इस विधेयक को राज्यसभा में 5 अगस्त को संसद के पटल पर पेश नहीं करते.

पढ़ें: कश्मीर में बड़ा निवेश सम्मेलन करवाएगी केंद्र सरकार

सूत्रों ने बताया कि 2 अगस्त को शाह को भरोसा था कि उनकी पार्टी को राज्यसभा में पर्याप्त समर्थन हासिल हो गया है और सोमवार को उच्च सदन में इस ऐतिहासिक विधेयक (जम्मू एवं कश्मीर के टुकड़े करने) को पेश किया गया.

इस दौरान भाजपा सांसदों को व्हिप जारी किया गया था कि वे संसद में उपस्थित रहें, जहां महत्वपूर्ण विधेयक पारित किए जाने हैं.

उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि आखिरकार सप्ताहांत में मोदी और शाह ने सोमवार को मंत्रिमंडल की बैठक बुलाने और मंत्रियों को मिशन कश्मीर की जानकारी देने का फैसला किया और सदन से पहले इस संबंध में प्रस्ताव पारित किया गया.

इसी तरह, कानून और न्याय मंत्रालय को अनुच्छेद 370 निरस्त करने की अधिसूचना राष्ट्रपति से जल्द जारी करवाने का काम सौंपा गया.

राज्यसभा में शोर-शराबे के बीच सोमवार को अमित शाह ने जब विधेयक पेश किया, तो भाजपा के एक सांसद ने प्रतिक्रिया दी, 'शाह का मिशन कभी नाकामयाब नहीं होता. वे नए सरदार (वल्लभ भाई पटेल) हैं.'

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