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राम जन्मभूमि मामले में पार्टी क्यों नहीं हैं अयोध्या नरेश?

विमलेंद्र मोहन प्रसाद मिश्रा एक ऐसे हैं व्यक्ति जो अयोध्या के शासकों के वंशज हैं. स्वयं अयोध्या नरेश फिर भी वह राम जन्मभूमी मामले से दूर हैं. जाने पूरा मामला...

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Published : Aug 16, 2019, 2:45 AM IST

Updated : Sep 27, 2019, 3:41 AM IST

नई दिल्लीः वह अयोध्या नरेश हैं, फिर भी वह राम जन्मभूमि विवाद मामले में हितधारक नहीं हैं. विमलेंद्र मोहन प्रसाद मिश्रा अयोध्या के शासकों के वंशज हैं और उनको आज भी अयोध्या नरेश कहा जाता है.

हालांकि वह भगवान राम के वंशज नहीं हैं. राम ठाकुर (राजपूत) थे और मिश्रा ब्राह्मण हैं.55 साल से अधिक उम्र के मिश्रा को स्थानीय निवासी पप्पू भैया कहते हैं.

वह थोड़े समय के लिए राजनीति में भी रहे जब 2009 में उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव में उतरे थे मगर जीत हासिल करने में विफल रहे.

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अयोध्या नरेश विमलेंद्र मोहन प्रसाद मिश्रा

उसके बाद उन्होंने राजनीति में कभी दिलचस्पी नहीं ली.संयोग से मिश्रा कई पीढ़ियों के बाद इस परिवार में पैदा हुए पहले पुरुष वारिस हैं. उनसे पहले के अन्य वारिस गोद ही लिए गए थे.लिहाजा, उनकी सुरक्षा का खास ध्यान रखा गया.

बाद में उनका एक छोटा भाई भी हुआ जिनका नाम शैलेंद्र मिश्रा हैं. उनके पुत्र यतींद्र मिश्रा चर्चित साहित्यकार हैं.

सुरक्षा कारणों से विमलेंद्र को देहरादून स्थित प्रतिष्ठित दून स्कूल नहीं भेजा गया और स्थानीय स्कूलों में ही उनकी स्कूली शिक्षा पूरी हुई.मिश्रा को 14 साल की उम्र तक अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेलने जाने की भी अनुमति नहीं दी जाती थी.

वह हवाई यात्रा नहीं करते थे क्योंकि उनकी दादी उन्हें इसकी इजाजत नहीं देती थी. वह सक्रिय राजनीति में नहीं आए क्योंकि उनकी मां इसके खिलाफ थीं.

पढ़ें-राजनीति न होने पर जल्दी सुलझता अयोध्या विवाद : जस्टिस भंवर सिंह

उनके दादा जगदंबिका प्रताप नारायण सिंह बाघों का शिकार किया करते थे. असंख्य कमरों वाले महल में दो कमरे उनकी ट्रॉफियों से भरे हैं.

अयोध्या के राजघराने का संबंध दक्षिण कोरिया से भी है. पूर्व में राजघराने के बारे में पता चलता है कि इसका संबंध भोजपुर के जमींदार सदानंद पाठक से रहा है.

दक्षिण कोरिया के साहित्य में अयोध्या को अयुत कहा जाता है. संत इरियोन रचित कोरियाई ग्रंथ 'समगुक युसा' में अयोध्या से कोरिया के संबंध का उल्लेख मिलता है.

करीब 2000 साल पहले अयोध्या की राजकुमारी सुरिरत्न समुद्री मार्ग से काया राज्य गई थीं. यह राज्य अब दक्षिण कोरिया में किमहे शहर के नाम से जाना जाता है. उनको वहां के राजा किम सुरो से प्यार हो गया और उन्होंने उनसे शादी कर ली.

इस प्राचीन सांस्कृतिक संबंध का जिक्र 1997 में तब हुआ जब राजा सुरो के वंशज बी. एम. किम की अगुवाई में दक्षिण कोरिया का एक प्रतिनिधिमंडल अयोध्या के दौरे पर आया.

विलमेंद्र मोहन मिश्रा ने तब कहा, 'हमें जब कोरिया से संबंध के बारे में मालूम हुआ तो हम हैरान रह गए.'

अयोध्या के पूर्व शासक को दक्षिण कोरिया के तत्कालीन प्रधानमंत्री किम जोंग पिल ने राजा सुरो की याद में आयोजित सालाना सम्मेलन में आमंत्रित किया.

दक्षिण कोरिया की सरकार ने अपनी पूर्व रानी की याद में अयोध्या में एक स्मारक भी बनाई है.

सूत्रों के अनुसार, विमलेंद्र मोहन मिश्रा राजसी विरासत को महत्व नहीं देते हैं और वह अपने राजसी पोशाक में तस्वीर लेने से भी मना कर देते हैं. वह कहते हैं कि वह दूसरों की तरह साधारण नागरिक हैं.

अयोध्या नरेश अब अयोध्या को एक नई पहचान देना चाहते हैं. उन्होंने अपने भव्य राजमहल का एक हिस्सा हेरिटेज होटल में बदलने की योजना बनाई है.

मिश्रा ने खुद को अयोध्या मंदिर राजनीति से अलग रखा है.

उनके समर्थक कहते हैं कि उनका यह फैसला सुविचारित है क्योंकि मुस्लिम और हिंदू दोनों समुदायों में उनका काफी सम्मान है.

नई दिल्लीः वह अयोध्या नरेश हैं, फिर भी वह राम जन्मभूमि विवाद मामले में हितधारक नहीं हैं. विमलेंद्र मोहन प्रसाद मिश्रा अयोध्या के शासकों के वंशज हैं और उनको आज भी अयोध्या नरेश कहा जाता है.

हालांकि वह भगवान राम के वंशज नहीं हैं. राम ठाकुर (राजपूत) थे और मिश्रा ब्राह्मण हैं.55 साल से अधिक उम्र के मिश्रा को स्थानीय निवासी पप्पू भैया कहते हैं.

वह थोड़े समय के लिए राजनीति में भी रहे जब 2009 में उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव में उतरे थे मगर जीत हासिल करने में विफल रहे.

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अयोध्या नरेश विमलेंद्र मोहन प्रसाद मिश्रा

उसके बाद उन्होंने राजनीति में कभी दिलचस्पी नहीं ली.संयोग से मिश्रा कई पीढ़ियों के बाद इस परिवार में पैदा हुए पहले पुरुष वारिस हैं. उनसे पहले के अन्य वारिस गोद ही लिए गए थे.लिहाजा, उनकी सुरक्षा का खास ध्यान रखा गया.

बाद में उनका एक छोटा भाई भी हुआ जिनका नाम शैलेंद्र मिश्रा हैं. उनके पुत्र यतींद्र मिश्रा चर्चित साहित्यकार हैं.

सुरक्षा कारणों से विमलेंद्र को देहरादून स्थित प्रतिष्ठित दून स्कूल नहीं भेजा गया और स्थानीय स्कूलों में ही उनकी स्कूली शिक्षा पूरी हुई.मिश्रा को 14 साल की उम्र तक अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेलने जाने की भी अनुमति नहीं दी जाती थी.

वह हवाई यात्रा नहीं करते थे क्योंकि उनकी दादी उन्हें इसकी इजाजत नहीं देती थी. वह सक्रिय राजनीति में नहीं आए क्योंकि उनकी मां इसके खिलाफ थीं.

पढ़ें-राजनीति न होने पर जल्दी सुलझता अयोध्या विवाद : जस्टिस भंवर सिंह

उनके दादा जगदंबिका प्रताप नारायण सिंह बाघों का शिकार किया करते थे. असंख्य कमरों वाले महल में दो कमरे उनकी ट्रॉफियों से भरे हैं.

अयोध्या के राजघराने का संबंध दक्षिण कोरिया से भी है. पूर्व में राजघराने के बारे में पता चलता है कि इसका संबंध भोजपुर के जमींदार सदानंद पाठक से रहा है.

दक्षिण कोरिया के साहित्य में अयोध्या को अयुत कहा जाता है. संत इरियोन रचित कोरियाई ग्रंथ 'समगुक युसा' में अयोध्या से कोरिया के संबंध का उल्लेख मिलता है.

करीब 2000 साल पहले अयोध्या की राजकुमारी सुरिरत्न समुद्री मार्ग से काया राज्य गई थीं. यह राज्य अब दक्षिण कोरिया में किमहे शहर के नाम से जाना जाता है. उनको वहां के राजा किम सुरो से प्यार हो गया और उन्होंने उनसे शादी कर ली.

इस प्राचीन सांस्कृतिक संबंध का जिक्र 1997 में तब हुआ जब राजा सुरो के वंशज बी. एम. किम की अगुवाई में दक्षिण कोरिया का एक प्रतिनिधिमंडल अयोध्या के दौरे पर आया.

विलमेंद्र मोहन मिश्रा ने तब कहा, 'हमें जब कोरिया से संबंध के बारे में मालूम हुआ तो हम हैरान रह गए.'

अयोध्या के पूर्व शासक को दक्षिण कोरिया के तत्कालीन प्रधानमंत्री किम जोंग पिल ने राजा सुरो की याद में आयोजित सालाना सम्मेलन में आमंत्रित किया.

दक्षिण कोरिया की सरकार ने अपनी पूर्व रानी की याद में अयोध्या में एक स्मारक भी बनाई है.

सूत्रों के अनुसार, विमलेंद्र मोहन मिश्रा राजसी विरासत को महत्व नहीं देते हैं और वह अपने राजसी पोशाक में तस्वीर लेने से भी मना कर देते हैं. वह कहते हैं कि वह दूसरों की तरह साधारण नागरिक हैं.

अयोध्या नरेश अब अयोध्या को एक नई पहचान देना चाहते हैं. उन्होंने अपने भव्य राजमहल का एक हिस्सा हेरिटेज होटल में बदलने की योजना बनाई है.

मिश्रा ने खुद को अयोध्या मंदिर राजनीति से अलग रखा है.

उनके समर्थक कहते हैं कि उनका यह फैसला सुविचारित है क्योंकि मुस्लिम और हिंदू दोनों समुदायों में उनका काफी सम्मान है.

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राम जन्मभूमि मामले में पार्टी क्यों नहीं हैं अयोध्या नरेश?

विमलेंद्र मोहन प्रसाद मिश्रा एक ऐसे व्यक्ति जो अयोध्या के शासकों के वंशज हैं. स्वयं अयोध्या नरेश फिर भी वह राम जन्मभूमी मामले से दूर हैं. जाने उनके बारे में...



नई दिल्लीः वह अयोध्या नरेश हैं, फिर भी वह राम जन्मभूमि विवाद मामले में हितधारक नहीं हैं.

विमलेंद्र मोहन प्रसाद मिश्रा अयोध्या के शासकों के वंशज हैं और उनको आज भी अयोध्या नरेश कहा जाता है.

हालांकि वह भगवान राम के वंशज नहीं हैं. राम ठाकुर (राजपूत) थे और मिश्रा ब्राह्मण हैं.

55 साल से अधिक उम्र के मिश्रा को स्थानीय निवासी पप्पू भैया कहते हैं. वह थोड़े समय के लिए राजनीति में भी रहे जब 2009 में उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव में उतरे थे मगर जीत हासिल करने में विफल रहे. उसके बाद उन्होंने राजनीति में कभी दिलचस्पी नहीं ली.

संयोग से मिश्रा कई पीढ़ियों के बाद इस परिवार में पैदा हुए पहले पुरुष वारिस हैं. उनसे पहले के अन्य वारिस गोद ही लिए गए थे.

लिहाजा, उनकी सुरक्षा का खास ध्यान रखा गया. बाद में उनका एक छोटा भाई भी हुआ जिनका नाम शैलेंद्र मिश्रा हैं. उनके पुत्र यतींद्र मिश्रा चर्चित साहित्यकार हैं.

सुरक्षा कारणों से विमलेंद्र को देहरादून स्थित प्रतिष्ठित दून स्कूल नहीं भेजा गया और स्थानीय स्कूलों में ही उनकी स्कूली शिक्षा पूरी हुई.

मिश्रा को 14 साल की उम्र तक अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेलने जाने की भी अनुमति नहीं दी जाती थी. वह हवाई यात्रा नहीं करते थे क्योंकि उनकी दादी उन्हें इसकी इजाजत नहीं देती थी. वह सक्रिय राजनीति में नहीं आए क्योंकि उनकी मां इसके खिलाफ थीं.

उनके दादा जगदंबिका प्रताप नारायण सिंह बाघों का शिकार किया करते थे. असंख्य कमरों वाले महल में दो कमरे उनकी ट्रॉफियों से भरे हैं.

अयोध्या के राजघराने का संबंध दक्षिण कोरिया से भी है. पूर्व में राजघराने के बारे में पता चलता है कि इसका संबंध भोजपुर के जमींदार सदानंद पाठक से रहा है.

दक्षिण कोरिया के साहित्य में अयोध्या को अयुत कहा जाता है. संत इरियोन रचित कोरियाई ग्रंथ 'समगुक युसा' में अयोध्या से कोरिया के संबंध का उल्लेख मिलता है.

करीब 2000 साल पहले अयोध्या की राजकुमारी सुरिरत्न समुद्री मार्ग से काया राज्य गई थीं. यह राज्य अब दक्षिण कोरिया में किमहे शहर के नाम से जाना जाता है. उनको वहां के राजा किम सुरो से प्यार हो गया और उन्होंने उनसे शादी कर ली.

इस प्राचीन सांस्कृतिक संबंध का जिक्र 1997 में तब हुआ जब राजा सुरो के वंशज बी. एम. किम की अगुवाई में दक्षिण कोरिया का एक प्रतिनिधिमंडल अयोध्या के दौरे पर आया.

विलमेंद्र मोहन मिश्रा ने तब कहा, 'हमें जब कोरिया से संबंध के बारे में मालूम हुआ तो हम हैरान रह गए.'

अयोध्या के पूर्व शासक को दक्षिण कोरिया के तत्कालीन प्रधानमंत्री किम जोंग पिल ने राजा सुरो की याद में आयोजित सालाना सम्मेलन में आमंत्रित किया.

दक्षिण कोरिया की सरकार ने अपनी पूर्व रानी की याद में अयोध्या में एक स्मारक भी बनाई है.

सूत्रों के अनुसार, विमलेंद्र मोहन मिश्रा राजसी विरासत को महत्व नहीं देते हैं और वह अपने राजसी पोशाक में तस्वीर लेने से भी मना कर देते हैं. वह कहते हैं कि वह दूसरों की तरह साधारण नागरिक हैं.

अयोध्या नरेश अब अयोध्या को एक नई पहचान देना चाहते हैं. उन्होंने अपने भव्य राजमहल का एक हिस्सा हेरिटेज होटल में बदलने की योजना बनाई है.

मिश्रा ने खुद को अयोध्या मंदिर राजनीति से अलग रखा है.

उनके समर्थक कहते हैं कि उनका यह फैसला सुविचारित है क्योंकि मुस्लिम और हिंदू दोनों समुदायों में उनका काफी सम्मान है. 


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Last Updated : Sep 27, 2019, 3:41 AM IST
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