हैदराबाद : केरल सहित छह राज्यों में बर्ड फ्लू काफी तेजी से फैल रहा है. इससे निपटने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें युद्धस्तर पर काम कर रही हैं. हालांकि, इसका सबसे अधिक प्रभाव चिकन के व्यापार पर पड़ा है.
इस बारे में ईटीवी भारत से बात करते हुए इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक मरियप्पन ने कहा कि इस सिंड्रोम के लिए विदेश से भारत में प्रवास करने वाले पक्षी भी जिम्मेदार हैं. सर्दियों और बरसात के मौसम के दौरान एवियन इन्फ्लूएंजा का प्रकोप तेज और गंभीर हो जाएगा.
ईटीवी भारत को दिए साक्षात्कार के कुछ अंश:-
सवाल : क्या तमिलनाडु में महामारी अधिक फैलेगी?
उत्तर : बेशक तमिलनाडु में कई तरह की बीमारियां हैं, लेकिन उनका प्रभाव इतना गंभीर नहीं रहा.
ऐसे समय में जब कोरोना वायरस का संक्रमण अपने अस्तित्व का एक वर्ष पूरा करने जा रहा है. इसका प्रभाव तुलनात्मक रूप से बड़े पैमाने पर नहीं हुआ है. इसके अलावा यहां रिकवरी रेट 98 प्रतिशत दर्ज किया गया है. पूरे भारत में यही ट्रेंड देखने को मिला है.
उन्होंने कहा कि हमारे भोजन की आदतों के कारण, हमें एक मजबूत प्रतिरक्षा प्रणाली मिली है. यही कारण है कि यहां पश्चिमी देशों के मुकाबले यहां इतना नुकसान नहीं हुआ. इसके अलावा कोविड -19 के खिलाफ टीकाकरण लगभग तैयार है. इसलिए अब घबराने की जरूरत नहीं है.
सवाल : बर्ड फ्लू की वजह से मांस खाने से परहेज करने के लिए कोई सलाह ?
उत्तर: बर्ड फ्लू या एवियन इन्फ्लूएंजा वायरस H5N1 के कारण होता है. यह पक्षियों को प्रभावित करता है, बदले में बड़ी संख्या में पक्षी मर जाते हैं.
केंद्र ने कहा है कि केरल, राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़ आदि सहित छह राज्यों में बर्ड फ्लू के मामले सामने आए हैं. अन्य वायरस के विपरीत यह सीधे मनुष्यों को प्रभावित नहीं करता है. यह वायरस प्रवासी पक्षियों के माध्यम से हमारे देश में प्रवेश करता है और अभयारण्यों जैसे स्थानों पर समूहों में रहने वाले पक्षियों पर हमला करता है.
नॉन-वेज खाने वालों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि चिकन या बत्तख का मांस खाने से पहले अच्छे तापमान पर पकाया जाए.
सवाल : बरसात के मौसम में बीमारियों को कैसे दूर करें?
उत्तर : हमारे तमिल परंपरागत खाद्य आदतों के कारण यहां एवियन इन्फ्लूएंजा जैसे वायरस फैलने की कोई संभावना नहीं है. हमारे लोग नियमित रूप से लहसुन, हल्दी, काली मिर्च आदि को अपने खाद्य पदार्थों और सूप जैसे रसम का उपयोग करते हैं.
इन अवयवों में औषधीय गुण होते हैं, जो प्रतिरक्षा शक्ति को बढ़ाते हैं और फेफड़ों और आंतों को सुरक्षा प्रदान करते हैं.
राज्यों के जो लोग इस तरह की प्रतिरक्षा-बढ़ती खाद्य परंपरा का पालन नहीं करते हैं, उन्हें तमिल उदाहरण का अनुकरण करना चाहिए, ताकि वे वायरस के संक्रमण से खुद को बचा सकें.
राज्यों में नॉन वेज खाने वालों को बढ़ती संख्या को लेकर उन्होंने कहा कि हमें अपनी आदत बदलने और औषधीय मूल्य के खाद्य परंपरा को अपनाने पर विचार करना चाहिए. इस प्रकार वे प्रतिरक्षा हासिल कर सकते हैं.
अगर हम औषधीय महत्व के रूप में खाद्य परंपरा का पालन करें, तो बरसात के मौसम की बीमारियां जैसे पीलिया, रैट फीवर, डेंगू, टाइफाइड आदि को दूर किया जा सकता है.
अब हमें एक ऐसी स्थिति में आ गए हैं, जहां हमें बीमारियों से डरने की आवश्यकता नहीं है. बीमारियों से डरने के बजाए हम यह सुनिश्चित करें कि हम ऐसे स्वस्थ खाद्य पदार्थों का सेवन करें, जिनका कुछ औषधीय महत्व हो.
मेरा मानना है कि हम स्वाभाविक रूप से पौधों और सब्जियों से तैयार किए गए उचित और अच्छे खाद्य पदार्थों से सफलतापूर्वक बीमारियों से लड़ सकते हैं.