कोलकाता: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर एक अनुरोध किया है. ममता ने पीएम मोदी के सामने एक सर्वदलीय बैठक बुलाने की बात रखी है. इस बैठक में लोकसभा चुनावों में खर्चों की रिपोर्ट पर चिंता और चुनावों में खर्च की जाने वाली सार्वजनिक निधि (पब्लिक फंडिंग) पर चर्चा करने के लिए कहा है.
पीएम मोदी को लिखे गए इस पत्र में ममता ने कहा, ' ये मुद्दा चुनावी तरीकों में बदलाव का है. विशेष तौर पर जो मुद्दे हैं उनमें लोकतांत्रिक राजनीति में भ्रष्टाचार और आपराधिक गतिविधियां हैं. समय आ गया है कि चुनावों की सरकारी फंडिंग की जाए, जो दुनिया के 65 देशों में आज हो रही है.
ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने इन मुद्दों को अपने 2014 और 2019 के घोषणापत्र में भी रखा था.
तीन पन्नों के पत्र में ममता ने आगे लिखा, 'मैं आपसे एक सर्वदलीय बैठक बुलाने के लिए निवेदन करती हूं. इस बैठक में भारत के चुनावों में पब्लित फंडिंग पर चर्चा हो, जिसका मकसद भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेकना होगा. भारत में स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव के लिए हमें चुनाव कराए जाने के तरीकों में बहुत जल्द कुछ बदलाव करने होंगे. इसमें चुनावों के लिए सरकारी फंडिंग शामिल है.'
इस साल लोकसभा चुनावे में प्रचार के लिए हुए अधिक खर्चों की सामने आई रिपोर्ट का हवाला देते हुए ममता ने चिंता जाहिर की है.
नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज ने एक रिपोर्ट जारी की. इस रिपोर्ट के अनुसार 60,000 करोड़ रुपय 2019 लोकसभा चुनावों में खर्च किए गए. औपचारिक व्यय घटक, यानी चुनाव आयोग द्वारा खर्च की गई राशि लगभग 15-20 फीसदी है.
पत्र में आगे लिखा गया है कि मैं उस ओर ध्यान केंद्रित करना चाहूंगी कि 2016 में राष्ट्रपति और कांग्रेस के चुनावों के लिए अमेरिका में संयुक्त व्यय 6.5 बिलियन डॉलर था. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो सभी विकासशील देशों की तुलना में 2019 का लोकसभा चुनाव दुनिया का सबसे महंगा चुनाव बन गया. मौजूदा खर्च के आंकड़ों से यह पता चलता है कि अगला लोकसभा चुनाव, जो 2024 में होंगे उसमें खर्च की राशि एक लाख करोड़ रुपये के पार हो सकती है.
राजनीतिक दलों ने प्रचार-प्रसार पर काफी अधिक खर्च किया. ऐसा भी कहा जा रहा है कि वोट हासिल करने के लिए लोगों को पैसे भी बांटे गए. आगे ममता कहती हैं कि चुनाव आयोग ने सिर्फ प्रत्याशियों के खर्च की सीमा तय की है मगर राजनीतिक दलों के खर्च पर कोई बाध्यता नहीं है.
एक अंतर सरकारी संगठन, इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए ममता ने कहा कि 65 देश सीधा पब्लिक फंडिंग और 79 अप्रत्यक्ष तौर पर पब्लिक फंडिंग का प्रयोग कर रहे हैं.