मालदा : पश्चिम बंगाल के आम बागवान और व्यापारी केंद्रीय बजट में वित्तीय पैकेज घोषित न होने से निराश हैं. उनका कहना है जिस तरह से चाय बागान श्रमिकों के लिए 1,000 रुपये के विशेष वित्तीय पैकेज की घोषणा की गई, वैसी ही घोषणा की जानी थी. वे चिंतित हैं कि केंद्र सरकार से वित्तीय सहायता के बिना जिले के लिए इस लोकप्रिय फल की खेती और व्यापार दांव पर लग सकता है.
पुराने मालदा के एक आम किसान जतिंद्रनाथ पोद्दार ने कहा कि हम पिछले तीन वर्षों से नुकसान झेल रहे हैं. हर साल हमें आश्वासन दिया जाता है कि मालदा के आमों का निर्यात किया जाएगा, लेकिन कुछ भी नहीं होता है. ऐसा ही उनके साथी आम के व्यापारियों अपूर्व कुमार चौधरी और मोनतोष सरकार का भी कहना है. उनका कहना है कि 'मालदा के लगभग 85% लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस फल की पैदावार और व्यापार पर निर्भर हैं. प्राकृतिक आपदाओं, निपाह वायरस और कोरोनावायरस ने व्यापार को बुरी तरह प्रभावित किया है. हमें कई करोड़ का नुकसान हुआ है.'
उनका कहना है कि 'हम चाय के लिए विशेष वित्तीय पैकेज का स्वागत करते हैं लेकिन आम व्यापारियों और किसानों को वंचित क्यों रखा गया है. आम किसानों को खेती को आगे बढ़ाने के लिए अक्सर उच्च ब्याज दर पर ऋण लेना पड़ता है. कई लोगों ने ऋण चुकाने में असमर्थ होने के कारण आत्महत्या तक कर ली है.' अपूर्व कुमार चौधरी ने कहा 'आम की खेती और व्यापार का भविष्य दांव पर है.
मालदा चैंबर ऑफ कॉमर्स के सचिव जयंत कुंडू के मुताबिक 'आम के किसान और व्यापारी विशेष पैकेज न मिलने से निराश हैं. केंद्र सरकार का कहना है कि कुछ गुणवत्ता मानकों के तहत आमों का निर्यात नहीं किया जा सकता है लेकिन गुणवत्ता मानकों को बनाए रखने के लिए केंद्रीय पैकेज की आवश्यकता होती है अगर हमें सहायता मिलती, तो जिले में इस क्षेत्र को विकसित किया जा सकता था. उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि जिले से निर्वाचित लोकसभा सदस्य इस मुद्दे पर केंद्र सरकार पर दबाव डालें.'
आम की फसल को हुआ काफी नुकसान
मालदा में 31,000 हेक्टेयर जमीन पर खेती होती है. जिले की कुल आबादी का लगभग 80% व्यापार से जुड़ा है लेकिन पिछले तीन वर्षों से इस फल की खेती और व्यापार को प्राकृतिक रूप से काफी नुकसान का सामना करना पड़ा है.
पढ़ेंः पश्चिम बंगाल : लॉकडाउन के चलते आम उद्योग को भारी नुकसान
पिछले तीन वर्षों के दौरान अनुमानित नुकसान 3,500 करोड़ रुपये रहा है.