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भारत में विदेशी निवेश की अपार संभावनाएं, उठाने होंगे ठोस कदम - Foreign Investments

कोरोना महामारी ने दुनिया की तमाम अर्थव्यवस्थाओं को ध्वस्त कर दिया है. भारतीय अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह प्रभावित हुई है, हालांकि भारत में अभी भी विदेशी निवेश की अपार संभावनाएं हैं. भारत व्यापार नीति को लचीला बना कर निवेशकों को आकर्षित कर सकता है. पढ़ें विशेष रिपोर्ट...

Foreign Investments
भारत में विदेशी निवेश
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Published : Jul 8, 2020, 10:48 PM IST

नई दिल्ली : ऐसे समय में जब भारत की अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुजर रही थी, कोरोना महामारी ने विकास की सभी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. इस महामारी ने कई उद्योगों को नष्ट कर दिया है, जिससे रोजगार के अवसर बुरी तरह प्रभावित हुए हैं.

विशेष आर्थिक पैकेज 'आत्मनिर्भर भारत' से कोरोना महामारी से प्रभावित हुए करोड़ों लोगों को राहत मिलने की उम्मीद थी. वहीं, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का कहना है कि अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आवश्यक है.

उन्होंने उम्मीद जताई कि लघु, छोटे एवं मझोले उद्योग (MSME) क्षेत्र में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के रूप में बड़ा निवेश आर्थिक विकास की गति को फिर से बढ़ावा देगा.

गडकरी को उम्मीद है कि अगर राष्ट्रीय राजमार्गों, हवाई अड्डों, जलमार्गों, रेलवे, मेट्रो और एमएसएमई क्षेत्रों में 50-60 लाख करोड़ रुपये का निवेश आता है, तो चमत्कारी परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं.

व्यापार, निवेश और विकास पर संयुक्त राष्ट्र की स्पेशल डिवीजन के अनुसार, पिछले वर्ष की तुलना में भारत ने 2019-20 में 51 बिलियन डॉलर तक विदेशी निवेश (एफडीआई) आकर्षित करके बेहतर प्रदर्शन किया.

पढ़ें- जीवाश्म ईंधन : हानिकारक प्रभावों को देखते हुए दूर हो रहे देश

बीते मई में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल द्वारा दिए गए बयान के अनुसार, 2019-20 में भारत में कुल 73 बिलियन (लगभग 5.5 लाख करोड़ रुपये) डॉलर विदेशी निवेश आया. अब केंद्रीय मंत्री गडकरी इसका 10 गुना लक्ष्य रक्ष रहे हैं.

हालांकि, गडकरी का कहना है कि लैंड बैंक के आकार को दोगुना करने के लिए प्रौद्योगिकी में सुधार पर ध्यान देने के साथ तैयार किया जा रहा है, ताकि चीन छोड़ने की योजना बनाई जा सके.

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पांच महीने पहले दी गई जानकारी को देखते हुए, एफडीआई में अचानक सुधार संभव नहीं लगता है. 2009-14 की तुलना में 2014-19 के दौरान देश में एफडीआई का प्रवाह 190 बिलियन डॉलर से बढ़कर 284 बिलियन डॉलर हो गया. डॉलर की मौजूदा विनिमय दर से गणना करें तो पिछले पांच वर्षों में प्रतिवर्ष औसतन लगभग चार लाख और 25 हजार करोड़ रुपये का निवेश आया है.

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने घोषणा की है कि कोरोना वायरस महामारी के कारण मौजूदा संकट 1929-1939 के महामंदी से भी बड़ा है. यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र ने हाल ही में आकलन किया है कि इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय एफडीआई प्रवाह पिछले साल की तुलना में 40 प्रतिशत कम होगा. इस स्थिति में, रणनीतिकारों के लिए बेहतर है कि असंभव लक्ष्यों को निर्धारित करने से बचें.

अमेरिका, चीन, सिंगापुर, ब्राजील, ब्रिटेन, हांगकांग और फ्रांस जैसे देश एफडीआई को आकर्षित करने में भारत से बेहतर कर रहे हैं. अगर भारत इन देशों की सूची में शामिल होना है, तो उनसे अधिक लचीली व्यापार नीतियों को परिभाषित करना चाहिए और विदेशी निवेशकों को अनुकूल व्यावसायिक वातावरण प्रदान करना चाहिए.

इस समय पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशियाई देश कोरोना संकट के कारण चीन को हुए नुकसान से लाभान्वित हो रहे हैं. वहीं, चीन के साथ लंबे समय से चल रहे कुछ मुद्दों के कारण भारत इसका फायदा नहीं उठा पा रहा है. कराधान में वृद्धि, बिजली दर, निवेश पर ब्याज, मंजूरी में देरी, राज्य स्तर पर भ्रष्टाचार, लॉजिस्टिक्स समस्याएं आदि प्रमुख कारण हैं.

ऐसे मुद्दों पर त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई करने और व्यापार नीति को लचीलेपन बनाने की की आवश्यकता है. इससे भारत विदेशी निवेशकों को आकर्षित कर सकता है और विकास की गति को दोबारा हासिल कर सकता है.

नई दिल्ली : ऐसे समय में जब भारत की अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुजर रही थी, कोरोना महामारी ने विकास की सभी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. इस महामारी ने कई उद्योगों को नष्ट कर दिया है, जिससे रोजगार के अवसर बुरी तरह प्रभावित हुए हैं.

विशेष आर्थिक पैकेज 'आत्मनिर्भर भारत' से कोरोना महामारी से प्रभावित हुए करोड़ों लोगों को राहत मिलने की उम्मीद थी. वहीं, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का कहना है कि अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आवश्यक है.

उन्होंने उम्मीद जताई कि लघु, छोटे एवं मझोले उद्योग (MSME) क्षेत्र में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के रूप में बड़ा निवेश आर्थिक विकास की गति को फिर से बढ़ावा देगा.

गडकरी को उम्मीद है कि अगर राष्ट्रीय राजमार्गों, हवाई अड्डों, जलमार्गों, रेलवे, मेट्रो और एमएसएमई क्षेत्रों में 50-60 लाख करोड़ रुपये का निवेश आता है, तो चमत्कारी परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं.

व्यापार, निवेश और विकास पर संयुक्त राष्ट्र की स्पेशल डिवीजन के अनुसार, पिछले वर्ष की तुलना में भारत ने 2019-20 में 51 बिलियन डॉलर तक विदेशी निवेश (एफडीआई) आकर्षित करके बेहतर प्रदर्शन किया.

पढ़ें- जीवाश्म ईंधन : हानिकारक प्रभावों को देखते हुए दूर हो रहे देश

बीते मई में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल द्वारा दिए गए बयान के अनुसार, 2019-20 में भारत में कुल 73 बिलियन (लगभग 5.5 लाख करोड़ रुपये) डॉलर विदेशी निवेश आया. अब केंद्रीय मंत्री गडकरी इसका 10 गुना लक्ष्य रक्ष रहे हैं.

हालांकि, गडकरी का कहना है कि लैंड बैंक के आकार को दोगुना करने के लिए प्रौद्योगिकी में सुधार पर ध्यान देने के साथ तैयार किया जा रहा है, ताकि चीन छोड़ने की योजना बनाई जा सके.

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पांच महीने पहले दी गई जानकारी को देखते हुए, एफडीआई में अचानक सुधार संभव नहीं लगता है. 2009-14 की तुलना में 2014-19 के दौरान देश में एफडीआई का प्रवाह 190 बिलियन डॉलर से बढ़कर 284 बिलियन डॉलर हो गया. डॉलर की मौजूदा विनिमय दर से गणना करें तो पिछले पांच वर्षों में प्रतिवर्ष औसतन लगभग चार लाख और 25 हजार करोड़ रुपये का निवेश आया है.

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने घोषणा की है कि कोरोना वायरस महामारी के कारण मौजूदा संकट 1929-1939 के महामंदी से भी बड़ा है. यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र ने हाल ही में आकलन किया है कि इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय एफडीआई प्रवाह पिछले साल की तुलना में 40 प्रतिशत कम होगा. इस स्थिति में, रणनीतिकारों के लिए बेहतर है कि असंभव लक्ष्यों को निर्धारित करने से बचें.

अमेरिका, चीन, सिंगापुर, ब्राजील, ब्रिटेन, हांगकांग और फ्रांस जैसे देश एफडीआई को आकर्षित करने में भारत से बेहतर कर रहे हैं. अगर भारत इन देशों की सूची में शामिल होना है, तो उनसे अधिक लचीली व्यापार नीतियों को परिभाषित करना चाहिए और विदेशी निवेशकों को अनुकूल व्यावसायिक वातावरण प्रदान करना चाहिए.

इस समय पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशियाई देश कोरोना संकट के कारण चीन को हुए नुकसान से लाभान्वित हो रहे हैं. वहीं, चीन के साथ लंबे समय से चल रहे कुछ मुद्दों के कारण भारत इसका फायदा नहीं उठा पा रहा है. कराधान में वृद्धि, बिजली दर, निवेश पर ब्याज, मंजूरी में देरी, राज्य स्तर पर भ्रष्टाचार, लॉजिस्टिक्स समस्याएं आदि प्रमुख कारण हैं.

ऐसे मुद्दों पर त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई करने और व्यापार नीति को लचीलेपन बनाने की की आवश्यकता है. इससे भारत विदेशी निवेशकों को आकर्षित कर सकता है और विकास की गति को दोबारा हासिल कर सकता है.

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