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पारंपरिक महरी नृत्य व देवदासियों का जगन्नाथ संस्कृति में अहम स्थान

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Published : Jun 28, 2020, 9:49 PM IST

Updated : Jun 29, 2020, 5:51 PM IST

भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा अनुष्ठानों और रिवाजों के लिए जानी जाती है. यह अत्यंत दिलचस्प और पवित्र हैं. जगन्नाथ संस्कृति की विभिन्न रीतियों में कई तरह के नृत्य भी शामिल हैं. इनमें महरी नृत्य, ओडिसी और गोटी पुआ विशेष हैं. जानें क्यों...

dance during rath yatra
डिजाइन फोटो

पुरी: तमाम प्रतिबंधों के साथ 23 जून को भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का आयोजन किया गया था. रथ यात्रा की संस्कृति से अनेकों रस्म और रिवाज जुड़े हैं. यह अत्यंत दिलचस्प और पवित्र हैं.

जगन्नाथ संस्कृति की विभिन्न रीतियों में देवी-देवताओं के लिए किए जाने वाले नृत्य भी शामिल हैं. इनमें महरी, ओडिसी और गोटी पुआ नृत्य विशेष हैं. महरी नृत्य देवताओं के सम्मान में नर्तकियों द्वारा मंदिर में किया जाता है. ओडिसी और गोटी पुआ नृत्य नर्तकों के समूह द्वारा किया जाता है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

ओडिसी नृत्य पूरी दुनिया में ओडिशा के शास्त्रीय नृत्य के रूप में प्रसिद्ध है. राज्य के पारंपरिक गोटी पुआ नृत्य पर भी लोगों को गर्व है. इसके अलावा जब भी पारंपरिक महरी नृत्य की बात आती है तो देवदासियों का जिक्र जरूर आता है. इनका जगन्नाथ संस्कृति में अहम स्थान है. देव दासियों द्वारा किए जाने वाले महरी नृत्य का उल्लेख जगन्नाथ मंदिर के अभिलेखों में भी है.

पहंडी के दौरान गोटी पुआ और ओडिसी नृत्य की परंपरा है. भगवान को सेवादारों द्वारा मंदिर से रथ तक लेकर जाने की प्रक्रिया को पहंडी कहा जाता है. कलाकार अपने नृत्य के माध्यम से भगवान को नमन करते हैं. उनका नृत्य भक्तों के मन में भक्ति की भावना को पैदा करता है. नृत्य को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि वह भगवान का उनकी वार्षिक यात्रा से पहले स्वागत कर रहे हैं.

महरी नृत्य करने वाली कलाकारों को देव दासी के रूप में जाना जाता है. महरी सेवा का जगन्नाथ मंदिर के विभिन्न अनुष्ठानों में प्रमुख स्थान है. यह 36 नियोगों (सेवादार) में से एक है. इनमें से 35 नियोग पुरुषों के लिए आरक्षित हैं. महरी सेवा ही एक ऐसी सेवा है जो महिलाएं करती हैं.

देव दासी शशिमणी देबी के निधन के बाद, जगन्नाथ मंदिर में इस अनुष्ठान को समाप्त कर दिया गया था. हालांकि, कुछ कलाकार जगन्नाथ संस्कृति और परंपरा को बनाए रखने के लिए महरी नृत्य अब भी करती हैं. जगन्नाथ मंदिर में 'सकल धूप' (भगवान के नाश्ते का समय), 'संध्या धूप' (शाम के नाश्ते का समय) और 'बदसिंगार धूप (रात के खाने के समय)' जैसे अनुष्ठानों के समय महरी नृत्य किया जाता था.

प्रमुख त्योहारों जैसे, नंदोत्सव, जन्माष्टमी और चंदन यात्रा पर भी महारी नृत्य आयोजित किया जाता था. धीरे-धीरे इस प्रथा को बंद कर दिया गया. आज के समय में सिर्फ गोटी पुआ और ओडिशी नृत्य का ही आयोजन किया जाता है.

पढ़ें-कोरोना की मार ने तोड़ी 625 साल पुरानी महेश रथयात्रा की परंपरा

पुरी: तमाम प्रतिबंधों के साथ 23 जून को भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का आयोजन किया गया था. रथ यात्रा की संस्कृति से अनेकों रस्म और रिवाज जुड़े हैं. यह अत्यंत दिलचस्प और पवित्र हैं.

जगन्नाथ संस्कृति की विभिन्न रीतियों में देवी-देवताओं के लिए किए जाने वाले नृत्य भी शामिल हैं. इनमें महरी, ओडिसी और गोटी पुआ नृत्य विशेष हैं. महरी नृत्य देवताओं के सम्मान में नर्तकियों द्वारा मंदिर में किया जाता है. ओडिसी और गोटी पुआ नृत्य नर्तकों के समूह द्वारा किया जाता है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

ओडिसी नृत्य पूरी दुनिया में ओडिशा के शास्त्रीय नृत्य के रूप में प्रसिद्ध है. राज्य के पारंपरिक गोटी पुआ नृत्य पर भी लोगों को गर्व है. इसके अलावा जब भी पारंपरिक महरी नृत्य की बात आती है तो देवदासियों का जिक्र जरूर आता है. इनका जगन्नाथ संस्कृति में अहम स्थान है. देव दासियों द्वारा किए जाने वाले महरी नृत्य का उल्लेख जगन्नाथ मंदिर के अभिलेखों में भी है.

पहंडी के दौरान गोटी पुआ और ओडिसी नृत्य की परंपरा है. भगवान को सेवादारों द्वारा मंदिर से रथ तक लेकर जाने की प्रक्रिया को पहंडी कहा जाता है. कलाकार अपने नृत्य के माध्यम से भगवान को नमन करते हैं. उनका नृत्य भक्तों के मन में भक्ति की भावना को पैदा करता है. नृत्य को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि वह भगवान का उनकी वार्षिक यात्रा से पहले स्वागत कर रहे हैं.

महरी नृत्य करने वाली कलाकारों को देव दासी के रूप में जाना जाता है. महरी सेवा का जगन्नाथ मंदिर के विभिन्न अनुष्ठानों में प्रमुख स्थान है. यह 36 नियोगों (सेवादार) में से एक है. इनमें से 35 नियोग पुरुषों के लिए आरक्षित हैं. महरी सेवा ही एक ऐसी सेवा है जो महिलाएं करती हैं.

देव दासी शशिमणी देबी के निधन के बाद, जगन्नाथ मंदिर में इस अनुष्ठान को समाप्त कर दिया गया था. हालांकि, कुछ कलाकार जगन्नाथ संस्कृति और परंपरा को बनाए रखने के लिए महरी नृत्य अब भी करती हैं. जगन्नाथ मंदिर में 'सकल धूप' (भगवान के नाश्ते का समय), 'संध्या धूप' (शाम के नाश्ते का समय) और 'बदसिंगार धूप (रात के खाने के समय)' जैसे अनुष्ठानों के समय महरी नृत्य किया जाता था.

प्रमुख त्योहारों जैसे, नंदोत्सव, जन्माष्टमी और चंदन यात्रा पर भी महारी नृत्य आयोजित किया जाता था. धीरे-धीरे इस प्रथा को बंद कर दिया गया. आज के समय में सिर्फ गोटी पुआ और ओडिशी नृत्य का ही आयोजन किया जाता है.

पढ़ें-कोरोना की मार ने तोड़ी 625 साल पुरानी महेश रथयात्रा की परंपरा

Last Updated : Jun 29, 2020, 5:51 PM IST
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