मुंबई : महाराष्ट्र सरकार ने राज्यभर की जेलों में बंद कुल 35 हजार कैदियों में से 17 हजार कैदियों को अस्थायी पैरोल पर छोड़ने का फैसला किया है. प्रदेश के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने मंगलवार को कहा कि ऐसा कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिये किया गया है.
इनमें से 5000 विचाराधीन कैदियों को पहले ही छोड़ा जा चुका है.
देशमुख ने कहा कि सरकार ने यह फैसला हाल में मुंबई की आर्थर रोड जेल में 185 कैदियों के संक्रमित पाए जाने के बाद किया है. इससे पहले महाराष्ट्र सरकार द्वारा नियुक्त एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने कोविड-19 महामारी के मद्देनजर राज्य की जेलों में भीड़ कम करने के उद्देश्य से करीब 50 प्रतिशत कैदियों को अस्थाई रूप से रिहा करने का फैसला किया था.
ट्विटर पर एक वीडियो संदेश में देशमुख ने कहा आर्थर रोड जेल के 185 कैदी संक्रमित मिले हैं. उनका इलाज चल रहा है.
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने अब जेलों में कोरोना वायरस का प्रसार रोकने के मद्देनजर महाराष्ट्र की जेलों में बंद 35 हजार कैदियों में से 17 हजार को अस्थाई पैरोल पर छोड़ने का फैसला किया है.
उन्होंने कहा कि 5000 विचाराधीन कैदियों को पहले ही रिहा किया जा चुका है.
देशमुख ने कहा कि 3000 और 9000 कैदी – जिन्हें क्रमश: सात साल तक के लिये और उससे ज्यादा समय के लिये कैद की सजा मिली है, उन्हें भी छोड़ा जाएगा.
उन्होंने स्पष्ट किया कि दुष्कर्म, बड़े आर्थिक और बैंक घोटालों, मकोका, टाडा और ऐसे ही अन्य संगीन मामलों में दोषी ठहराए गए कैदियों को नहीं छोड़ा जाएगा.
मंत्री ने कहा कि सरकार ने पहले ही आठ जेलों को 'लॉकडाउन' कर दिया है और कोरोना वायरस संबंधी बंदिशों के लागू रहने तक वहां किसी के प्रवेश या बाहर निकलने की इजाजत नहीं होगी.
समिति ने सोमवार को फैसला लेते हुए यह भी कहा कि भारतीय दंड संहिता के तहत गंभीर आरोपों में दोषी ठहराए गए और मकोका, गैर कानूनी गतिविधि (निरोधक) अधिनियम, धनशोधन (निरोधक) अधिनियम जैसे सख्त कानूनी प्रावधानों के तहत दोषी ठहराए गए कैदियों को अस्थायी जमानत या पैरोल पर रिहा नहीं किया जाएगा.
उच्चतम न्यायालय द्वारा मार्च में, कोरोना वायरस के मद्देनजर देश भर की जेलों में भीड़ कम किए जाने की बात कहे जाने के बाद इस समिति का गठन किया गया था. समिति में बंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए ए सैयद, राज्य के गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव संजय चहांडे और महाराष्ट्र के महानिदेशक कारागार एस एन पांडेय शामिल थे.
समिति ने अधिवक्ता एस बी तालेकर के उस प्रतिवेदन को भी खारिज कर दिया जिसमें दावा किया गया था कि विशेष कानूनों के तहत दोषी या आरोपी कैदियों को रिहा न करना भेदभावपूर्ण और मनमाना है.
समिति ने कहा कि जो कैदी अस्थायी जमानत या पैरोल के हकदार नहीं हैं उन्हें नियमित जमानत के लिए संबंधित अदालत में अर्जी देनी होगी.
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