ETV Bharat / bharat

मध्य प्रदेश : विधानसभा अध्यक्ष ने 16 बागी विधायकों का इस्तीफा स्वीकार किया - मध्य प्रदेश की सियासी भूचाल

मध्य प्रदेश में जारी सियासी संकट थमने का नाम नहीं ले रहा है. इस क्रम में गुरुवार को उच्चतम न्यायालय ने राज्य विधानसभा अध्यक्ष एन. पी. प्रजापति को बागी विधायकों से वीडियो लिंक के जरिए बात करने या उन्हें ‘बंधक’ बनाने के भय को दूर करने के लिए एक पर्यवेक्षक नियुक्त करने का सुझाव दिया. हालांकि विधानसभा अध्यक्ष ने शीर्ष अदालत का प्रस्ताव स्वीकार करने से इनकार कर दिया. इसी बीच गुरुवार देर रात स्पीकर ने 16 बागी विधायकों का इस्तीफा स्वीकार कर लिया. पढ़ें पूरी खबर...

डिजाइन फोटो
डिजाइन फोटो
author img

By

Published : Mar 19, 2020, 10:45 AM IST

Updated : Mar 19, 2020, 11:43 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने मध्य प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष एन. पी. प्रजापति को बागी विधायकों से वीडियो लिंक के जरिए बात करने या उन्हें ‘बंधक’ बनाने के भय को दूर करने के लिए एक पर्यवेक्षक नियुक्त करने का गुरुवार को सुझाव दिया. हालांकि विधानसभा अध्यक्ष ने शीर्ष अदालत का प्रस्ताव स्वीकार करने से इनकार कर दिया.

न्यायमूर्ति धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्त की पीठ ने कहा कि बागी विधायक अपनी मर्जी से गए हैं या नहीं, यह सुनिश्चित करने का वह इंतजाम कर सकते हैं. पीठ ने कहा, 'हम बेंगलुरु या कहीं और एक पर्यवेक्षक की नियुक्त भी कर सकते हैं ताकि बागी विधायक वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए अध्यक्ष से सम्पर्क कर सकें और उसके बाद वह निर्णय लें.'

पीठ ने अध्यक्ष से यह भी पूछा कि क्या बागी विधायकों के इस्तीफा देने के संबंध में कोई जांच की गई और उन्होंने उनके (बागी विधायकों के) संबंध में क्या निर्णय किया है.

विधानसभा अध्यक्ष की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक सिंघवी ने कहा कि जिस दिन अदालत अध्यक्ष को समय सीमा के तहत निर्देश देने लगेगा, तो यह संवैधानिक समस्या बन जाएगा.

राज्यपाल लालजी टंडन की ओर से पेश हुए वकील ने अदालत को बताया कि मुख्यमंत्री कमलनाथ आराम से बैठे हैं और अध्यक्ष अदालत में कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं.

पीठ ने सभी पक्षों से पूछा कि क्या विधायकों के इस्तीफे और अयोग्यता के मामले में अध्यक्ष का निर्णय शक्ति परीक्षण को प्रभावित करेगा. उसने कहा कि संवैधानिक सिद्धांत के अनुसार इस्तीफे और अयोग्यता के मामले अध्यक्ष के समक्ष लंबित होने से शक्ति परीक्षण पर कोई राके नहीं होती.

पढ़ें- मध्य प्रदेश मामला : सुप्रीम कोर्ट की दो टूक- ये बच्चों की कस्टडी नहीं है

पीठ ने कहा कि अदालत को यह देखना होगा कि क्या राज्यपाल ने उन्हें मिली शक्ति से आगे बढ़कर काम किया .

बता दें कि मध्य प्रदेश की सियासी भूचाल पर आज फिर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इससे पूर्व उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को यह स्वीकार किया कि कमलनाथ सरकार की किस्मत 16 बागी विधायकों के हाथों में है.

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में बहस
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अगर विधानसभा का सत्र नहीं चल रहा है और सरकार बहुमत खो देती है तो राज्यपाल के पास विधानसभा अध्यक्ष को विश्वास मत कराने का निर्देश देने की शक्ति है.

इस दौरान अभिषेक मनु सिंघवी ने कर्नाटक का आदेश पढ़ा. इस पर उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कर्नाटक के आदेश स्पीकर के अधिकार क्षेत्र में दखल नहीं देते हैं कि वो कब तक अयोग्यता पर फैसला लें. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि फ्लोर टेस्ट न हो. कर्नाटक के मामले में अगले दिन फ्लोर टेस्ट हुआ था और कोर्ट में विधायकों की अयोग्यता के मामले को लंबित होने की वजह से फ्लोर टेस्ट नहीं टाला गया था.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, 'हम कोई रास्ता निकालना चाहते हैं. यह केवल एक राज्य की परेशानी नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय समस्या है. आप यह नहीं कह सकते कि मैं अपना कर्तव्य तय करूंगा और दोष लगाऊंगा. हम उनकी स्थिति को सुनिश्चित करने के लिए परिस्थितियां बना सकते हैं कि इस्तीफे वास्तव में स्वैच्छिक हैं. हम एक पर्यवेक्षक को बेंगलुरु या किसी अन्य स्थान पर नियुक्त कर सकते हैं. वे आपके साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग पर जुड़ सकते हैं और फिर निर्णय ले सकते हैं.'

पढ़ें : कर्नाटक हाईकोर्ट ने खारिज की दिग्विजय की याचिका, बागी विधायकों से मिलने की कर रहे थे मांग

सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, 'एक बात बहुत स्पष्ट है कि सभी एमएलए एक साथ कार्य कर रहे हैं. यह एक राजनीतिक रुकावट हो सकती है. हम इसका कोई भी अर्थ नहीं निकाल सकते.'

इस पर जस्टिस हेमंत ने कहा कि संसद या विधानसभा के सदस्यों को विचार की कोई स्वतंत्रता नहीं है. वे ह्विप से संचालित होते हैं. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि नियम के मुताबिक इस्तीफा एक लाइन का होना चाहिए.

गौरतलब है कि विधानसभा अध्यक्ष द्वारा गत 16 मार्च को राज्यपाल के अभिभाषण के तुरंत बाद सदन की कार्यवाही 26 मार्च तक के लिए स्थगित किए जाने पर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा के नौ विधायकों ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की थी.

बता दें कि विधान सभा अध्यक्ष द्वारा कांग्रेस के छह विधायकों के इस्तीफे स्वीकार किए जाने के बाद 222 सदस्यीय विधान सभा में सत्तारूढ़ दल के सदस्यों की संख्या घटकर 108 रह गई है. इनमें वे 16 बागी विधायक भी शामिल हैं, जिनके इस्तीफे अभी स्वीकार नहीं किए गए हैं. राज्य विधानसभा में इस समय भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों की संख्या 107 है.

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने मध्य प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष एन. पी. प्रजापति को बागी विधायकों से वीडियो लिंक के जरिए बात करने या उन्हें ‘बंधक’ बनाने के भय को दूर करने के लिए एक पर्यवेक्षक नियुक्त करने का गुरुवार को सुझाव दिया. हालांकि विधानसभा अध्यक्ष ने शीर्ष अदालत का प्रस्ताव स्वीकार करने से इनकार कर दिया.

न्यायमूर्ति धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्त की पीठ ने कहा कि बागी विधायक अपनी मर्जी से गए हैं या नहीं, यह सुनिश्चित करने का वह इंतजाम कर सकते हैं. पीठ ने कहा, 'हम बेंगलुरु या कहीं और एक पर्यवेक्षक की नियुक्त भी कर सकते हैं ताकि बागी विधायक वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए अध्यक्ष से सम्पर्क कर सकें और उसके बाद वह निर्णय लें.'

पीठ ने अध्यक्ष से यह भी पूछा कि क्या बागी विधायकों के इस्तीफा देने के संबंध में कोई जांच की गई और उन्होंने उनके (बागी विधायकों के) संबंध में क्या निर्णय किया है.

विधानसभा अध्यक्ष की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक सिंघवी ने कहा कि जिस दिन अदालत अध्यक्ष को समय सीमा के तहत निर्देश देने लगेगा, तो यह संवैधानिक समस्या बन जाएगा.

राज्यपाल लालजी टंडन की ओर से पेश हुए वकील ने अदालत को बताया कि मुख्यमंत्री कमलनाथ आराम से बैठे हैं और अध्यक्ष अदालत में कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं.

पीठ ने सभी पक्षों से पूछा कि क्या विधायकों के इस्तीफे और अयोग्यता के मामले में अध्यक्ष का निर्णय शक्ति परीक्षण को प्रभावित करेगा. उसने कहा कि संवैधानिक सिद्धांत के अनुसार इस्तीफे और अयोग्यता के मामले अध्यक्ष के समक्ष लंबित होने से शक्ति परीक्षण पर कोई राके नहीं होती.

पढ़ें- मध्य प्रदेश मामला : सुप्रीम कोर्ट की दो टूक- ये बच्चों की कस्टडी नहीं है

पीठ ने कहा कि अदालत को यह देखना होगा कि क्या राज्यपाल ने उन्हें मिली शक्ति से आगे बढ़कर काम किया .

बता दें कि मध्य प्रदेश की सियासी भूचाल पर आज फिर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इससे पूर्व उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को यह स्वीकार किया कि कमलनाथ सरकार की किस्मत 16 बागी विधायकों के हाथों में है.

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में बहस
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अगर विधानसभा का सत्र नहीं चल रहा है और सरकार बहुमत खो देती है तो राज्यपाल के पास विधानसभा अध्यक्ष को विश्वास मत कराने का निर्देश देने की शक्ति है.

इस दौरान अभिषेक मनु सिंघवी ने कर्नाटक का आदेश पढ़ा. इस पर उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कर्नाटक के आदेश स्पीकर के अधिकार क्षेत्र में दखल नहीं देते हैं कि वो कब तक अयोग्यता पर फैसला लें. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि फ्लोर टेस्ट न हो. कर्नाटक के मामले में अगले दिन फ्लोर टेस्ट हुआ था और कोर्ट में विधायकों की अयोग्यता के मामले को लंबित होने की वजह से फ्लोर टेस्ट नहीं टाला गया था.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, 'हम कोई रास्ता निकालना चाहते हैं. यह केवल एक राज्य की परेशानी नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय समस्या है. आप यह नहीं कह सकते कि मैं अपना कर्तव्य तय करूंगा और दोष लगाऊंगा. हम उनकी स्थिति को सुनिश्चित करने के लिए परिस्थितियां बना सकते हैं कि इस्तीफे वास्तव में स्वैच्छिक हैं. हम एक पर्यवेक्षक को बेंगलुरु या किसी अन्य स्थान पर नियुक्त कर सकते हैं. वे आपके साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग पर जुड़ सकते हैं और फिर निर्णय ले सकते हैं.'

पढ़ें : कर्नाटक हाईकोर्ट ने खारिज की दिग्विजय की याचिका, बागी विधायकों से मिलने की कर रहे थे मांग

सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, 'एक बात बहुत स्पष्ट है कि सभी एमएलए एक साथ कार्य कर रहे हैं. यह एक राजनीतिक रुकावट हो सकती है. हम इसका कोई भी अर्थ नहीं निकाल सकते.'

इस पर जस्टिस हेमंत ने कहा कि संसद या विधानसभा के सदस्यों को विचार की कोई स्वतंत्रता नहीं है. वे ह्विप से संचालित होते हैं. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि नियम के मुताबिक इस्तीफा एक लाइन का होना चाहिए.

गौरतलब है कि विधानसभा अध्यक्ष द्वारा गत 16 मार्च को राज्यपाल के अभिभाषण के तुरंत बाद सदन की कार्यवाही 26 मार्च तक के लिए स्थगित किए जाने पर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा के नौ विधायकों ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की थी.

बता दें कि विधान सभा अध्यक्ष द्वारा कांग्रेस के छह विधायकों के इस्तीफे स्वीकार किए जाने के बाद 222 सदस्यीय विधान सभा में सत्तारूढ़ दल के सदस्यों की संख्या घटकर 108 रह गई है. इनमें वे 16 बागी विधायक भी शामिल हैं, जिनके इस्तीफे अभी स्वीकार नहीं किए गए हैं. राज्य विधानसभा में इस समय भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों की संख्या 107 है.

Last Updated : Mar 19, 2020, 11:43 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.