किशनगंज: कोरोना महामारी के रोकथाम के लिये देशव्यापी लॉकडाउन जारी है. इस दौरान देश के कई उद्योग-धंधे लॉकडाउन का दंश झेल रहे हैं. बिहार के किशनगंज जिले के चाय बागान मालिक भी इससे अछूते नहीं हैं. आलम यह है कि लॉकडाउन की वजह से किशनगंज चाय की हरियाली सूख चुकी है. लॉकडाउन ने चाय उत्पादक किसानों के सामने विषम परिस्थिति खड़ी कर दी है.
दरअसल, देश भर में मशहूर किशनगंज जिले की चाय पत्ती को तैयार करने के लिए बागानों से इसी समय पत्तियां चुनी जाती हैं, लेकिन लॉकडाउन में बागानों के बंद होने से चाय की हरी पत्तियां चुनी नहीं जा सकीं और पूरी तरह से बर्बाद हो गई हैं. जिस कारण उद्योग को अनुमानित तकरीबन 20 करोड़ का नुकसान हुआ है. वहीं, इस विकट परिस्थिति में अब चाय बागान मालिकों ने सरकार से मुआवजे की मांग की है. मौजूदा दौर में इस उद्योग के लगभग 10 हजार किसान सहित हजारों मजदूरों की रोजी-रोटी खतरे में पड़ गई है.
हरी पत्तियां तोड़ने के वक्त लॉकडाउन
बिहार के किशनगंज जिले में सन् 1990 में चाय की खेती की शुरूआत की गई थी. जिसके फलस्वरूप जिले में आज 25 हजार एकड़ में चाय की खेती की जाती है. बिहार के किशनगंज में 10 टी प्रोसेसिंग प्लांट लगे हैं. जिनमें कुल 75 लाख किलोग्राम प्रति वर्ष चाय उत्पादन होता है. 10 हजार किसान चाय उद्योग से जुड़े हैं. जिससे 50 हजार मजदूरों का रोजी-रोटी चलता है. वहीं, देश में कोरोना वायरस को रोकने के लिए देशभर में लॉक डाउन होने से जिले मे चाय बागान मालिक और फैक्टरी मालिकों को सबसे ज्यादा नुकसान झेलना पड़ रहा है. बागान मालिकों के अनुसार चाय बागानों में हरी पत्तियां लहलहा रही थी. जब तोड़ने का वक्त आया तो देश में 21 दिनों का लॉक डाउन घोषित हो गया.
'जिले के नक्शे से चाय खेती और बागान हो जायेंगे गायब'
लॉकडाउन के कारण तैयार पत्तियां बागानों में ही बर्बाद हो गयीं. लॉक डाउन के कारण इस उद्योग को 20 करोड़ का नुकसान हुआ है. वहीं, चाय बागान मालिक राज्य सरकार से आर्थिक मदद करने की मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि सरकार विपदा के समय में किसानों पर ध्यान नहीं देती है, तो यह उद्योग बिहार में दम तोड़ देगी. और बिहार के किशनगंज जिले के नक्शे से चाय खेती और बागान गायब हो जाएगा. चाय किसानों के अनुसार किसी भी चाय बागान के लिए पहला फ्लश, यानी पहली बार पत्तियां तोड़ने का काम मार्च में होता है. और दूसरा फ्लश मई महीने में. इन पत्तियों से ही बेहतरीन किस्म की सबसे महंगी चाय तैयार होती है. इसका ज्यादातर हिस्सा निर्यात किया जाता है. इस पिक सीजन में लॉक डाउन की वजह से उद्योग को हुए नुकसान की वजह से नगदी की भारी किल्लत हो गई है.
'लॉक डाउन में सरकार नहीं दिया चाय उद्योग पर ध्यान'
बागान मालिकों का कहना है कि मजदूरों के वेतन भुगतान के लिए इसे सरकार समर्थन की जरूरत है. केंद्र सरकार ने आधे मजदूरों के साथ चाय बागानों को चलाने की अनुमति दे दी थी. उसके बाद बागान मालिकों के अनुरोध पर राज्य सरकार ने 6 अप्रैल से महज 50 फीसदी मजदूरों के साथ बागानों को खोलने की अनुमति दी है. फैक्ट्री मालिकों का कहना है कि लॉक डाउन के दौरान सरकार इस उद्योग पर ध्यान नहीं दिया. जिससे किसानों को नुकसान तो हुआ ही साथ ही फैक्ट्री मालिकों को भी भारी नुकसान भी हुआ है. वहीं, मामले को लेकर कृषि पदाधिकारी संत कुमार से पूछे जाने पर उन्होंने उद्योग विभाग का हवाला देते हुए कहा कि सरकार के आदेश के बाद चाय बागान और सभी फैक्ट्रियां को खोल दिया गया है.
केंद्र और राज्य सरकार से किसानों को हैं काफी आशाएं
संत कुमार ने आगे बताया कि किसान के मुआवजा के सवाल पर सरकार ने हाथ खड़े कर लिये. सरकार ने कहा कि चाय बागान उद्योग विभाग के अंतर्गत आता है. कोरोना महामारी के चलते देशव्यापी लॉक डाउन ने दुनिया भर में मशहूर मिनी दार्जिलिंग किशनगंज चाय की हरियाली को फीका जरूर कर दिया है. कोविड-19 महामारी से निपटने को लेकर सार्वजनिक पाबंदियां के चलते बागानों में पहले दौर की खिली पत्तियां बर्बाद हो गई हैं. वहीं, बागान मालिक वित्तीय संकट में आ गए हैं. ऐसे में केंद्र और राज्य सरकार से किसानों को काफी आशाएं हैं. सरकार अगर मामले में मदद का आश्वासन देती है, तब किसानों के चेहरे और बागान के मुरझाए हुई पत्तियां फिर से खिल सकती हैं.