नई दिल्ली : वैज्ञानिकों का कहना है कि कोविड-19 के खतरे के मद्देनजर दुनियाभर में एहतियातन लोगों के खुद पृथकवास में जाने और लॉकडाउन की वजह से मानवजनित 'भूकंपीय शोर' कम हुआ है, जिसकी वजह से कम तीव्रता वाले भूकंपों की पहचान भी ज्यादा सटीकता और स्पष्टता से की जा सकती है.
उन्होंने यह साफ किया कि इस बंद की वजह से धरती की सतह के कंपन में किसी तरह की कमी नहीं आई है.
वैज्ञानिकों ने कहा कि भूकंप का शोर जमीन का एक अपेक्षाकृत लगातार होने वाला कंपन है, जो आमतौर पर सिस्मोमीटर द्वारा दर्ज संकेतों का एक अवांछित घटक है.
इससे पहले के अध्ययनों में कहा गया था कि सभी तरह की मानव गतिविधियां ऐसे कंपन पैदा करती हैं, जो अच्छे भूकंप उपकरणों से की गई पैमाइश को विकृत कर देती हैं.
दुनिया के अनेक हिस्सों में जारी बंद की वजह से इन विकृतियों में कमी आई है और 'भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान', कोलकाता के एक प्रोफेसर सुप्रिय मित्रा समेत भूकंप वैज्ञानिकों का मानना है कि यह कहना गलत होगा कि धरती की सतह में अब 'कंपन धीरे' हो रहा है, जैसा कि मीडिया में आई कुछ खबरों में कहा गया है.
बेल्जियम में आंकड़े दर्शाते हैं कि ब्रसेल्स में कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए अपनाए गए बंद की वजह से मानव जनित भूकंपीय शोर में करीब 30 प्रतिशत की कमी आई है.
वैज्ञानिकों ने कहा कि इस शांति का मतबल यह है कि सतह पर भूकंप को मापने के पैमाने के आंकड़े उतने ही स्पष्ट हैं, जितना कि उसी उपकरण को पहले धरती की सतह में गहराई पर रखने से मिलते थे.
यह नया विचार देने वाले ब्रसेल्स के रॉयल ऑब्जर्वेटरी ऑफ बेल्जियम के भूकंप वैज्ञानिक थॉमस लेकॉक ने कहा कि इस पैमाने पर आवाज में कमी का अनुभव आम तौर पर सिर्फ क्रिसमस के आस-पास होता है.
भारत में मित्रा इसी तरह के भूकंपीय आंकड़ों और अध्ययनों को देख रहे हैं. मित्रा ने को बताया, 'हम लॉकडाउन के दौरान के आंकड़ों को जुटाना चाहते थे और यह देखना चाहते हैं कि भूकंपीय शोर किस स्तर तक कम हुआ है.'
उन्होंने कहा कि मानवजनित गतिविधियों के कारण सांस्कृतिक व परिवेशीय शोर एक हर्ट्ज या उससे ऊपर है- और एक हर्ट्ज वह मानक आवृत्ति है, जिस पर भूकंप की ऊर्जा आती है.
मित्रा ने कहा, 'इसलिये अगर शोर ज्यादा है, तो आम तौर पर भूकंपों का पता कम चलता है.' बंद के फलस्वरूप क्या हुआ, वह बताते हैं कि गाड़ियों की आवाजाही और मानव गतिविधियां कम हुईं, जिसकी वजह से परिवेशीय शोर कम हुआ.
उन्होंने कहा, 'भूकंप का पता लगाने की सीमा कम हो गई है. इसलिये छोटे भूकंपों का भी ज्यादा पता चल रहा है.'
भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु की भूकंप वैज्ञानिक कुशला राजेंद्रन ने कहा कि मानव गतिविधियों का स्तर कम होने से, भूकंप संवेदक अब छोटे भूकंपों का पता लगा सकते हैं जो पहले अन्यथा शोर का हिस्सा होते थे.
उन्होंने बताया कि भूकंप केंद्र यातायात, सामुद्रिक लहरों या अन्य तरह के शोर से दूर स्थापित किये जाते हैं.
राजेंद्रन ने कहा, 'स्थानिक कवरेज और पहुंच के लिहाज से कई केंद्रों को मानव गतिविधि की सीमा में ही बनाया जाता है. यह केंद्र इतने संवेदनशील होते हैं कि यह 500 मीटर के दायरे में किसी इंसान की पदचाप भी दर्ज कर सकते हैं.'
वह बताती हैं, 'अगर शोर का स्तर बेहद कम रखा जाए तो यह संवेदक सबकुछ दर्ज करेंगे….'
भारत के प्रमुख भूकंप वैज्ञानिकों ने यह भी बताया कि यह कहना गलत होगा कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों में कोविड-19 के कारण लागू किये गए बंद की वजह से धरती की सतह 'धीरे घूम रही हैं या उसके कम कंपन हो रहा है.'
मित्रा कहते हैं, 'इसका मतलब होगा कि टेक्टोनिक प्लेट धीमी हो गई हैं, जबकि ऐसा नहीं है.' उन्होंने कहा, 'सतह की गति कम हुई है यह कहना तथ्यों को गलत तरीके से पेश करना होगा. धरती की सतह की गति धीमे नहीं हुई है.'
राजेंद्रन भी मित्रा की बात से सहमति जताते हुए कहती हैं कि सिर्फ बंद की वजह से सिर्फ मानवजनित शोर कम हुआ है.