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झारखंड : नक्सलियों के गढ़ में अपनी तकदीर लिख रहे ग्रामीण, शराब से तोड़ा नाता - liquor free village

झारखंड की राजधानी रांची से करीब 70 किलोमीटर दूर खूंटी जिले में तोरपा प्रखंड है. पुलिस फाइल में यह इलाका नक्सलियों के गढ़ के रूप में जाना जाता है. लेकिन अब इस प्रखंड के कई गांवों की आबोहवा बदलने लगी है. दीनदयाल ग्राम स्वावलंबन योजना के जरिए स्वावलंबी हो रहे हैं. पढ़ें पूरी खबर...

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झारखंड : शराब से नाता तोड़ रहे यह ग्रामीण, नशामुक्त बना गांव
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Published : Aug 27, 2020, 10:38 AM IST

खूंटी : झारखंड में रांची से करीब 70 किलोमीटर दूर खूंटी के तोरपा ब्लॉक में सोनपुर गांव के कुटाम और अलंकेल ने देश के सामने मिसाल पेश की है. वह जिसकी तारीफ देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मन की बात में की थी.

कुटाम और अलंकेल गांव में आया बदलाव
दोनों टोलों में करीब 900 की आबादी है. सितंबर 2019 से पहले इन दोनों गांव के ज्यादातर घरों में शराब बनाई जाती थी. गांव के ही मुहाने पर शराब की दुकान सजती थी. लेकिन अब यहां के ग्रामीणों ने शराब से तौबा कर ली है. अब यहां सफाई है, खुशहाली है, मैदानों में बच्चे खेलते नजर आते हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

दोनों गांव में श्रमदान कर साफ सफाई होती है. ग्रामीणों ने जगह-जगह खुद का बनाया डस्टबिन लगाया है. सप्ताह में दो दिन ग्रामसभा होती है, जिसमें महिलाएं और पुरुषों के अलावा बच्चे भी शामिल होते हैं. महिलाएं कहती हैं कि जब से शराब पर प्रतिबंध लगा है, तब से गांव में शांति और खुशहाली आ गई है. छोटी-छोटी बात पर होने वाले झगड़े बंद हो गए हैं.

इसी साल 30 जुलाई को अलंकेल को नशा मुक्त घोषित किया गया है. पिछले साल नवंबर महीने में ही कुटाम गांव नशा मुक्त हो चुका है. दोनों गांव के ग्रामीणों ने ईटीवी भारत से अपना अनुभव साझा किया. दोनों गांव के कई लोग लॉकडाउन के दौरान लौटे हैं और अब मनरेगा से जुड़कर काम कर रहे हैं.

वहीं ग्राम सभा के निर्देश का पालन करते हुए अब कोई भी खुले में शौच के लिए नहीं जाता है. जिनके घरों में शौचालय नहीं बना है वहां के लोगों को पड़ोसी के शौचालय के इस्तेमाल की छूट है.

कभी लाखों की शराब पीते थे ग्रामीण
पुलिस फाइल में यह इलाका नक्सलियों के गढ़ के रूप में जाना जाता है. लेकिन अब इस प्रखंड के कई गांवों की आबोहवा बदलने लगी है. इसमें सबसे अहम भूमिका लोक प्रेरक दीदी निभा रही हैं. दीनदयाल ग्राम स्वावलंबन योजना के जरिए ग्रामीणों की सोच बदलने जब लोक प्रेरक दीदी गांव पहुंची तो ग्रामीणों के तीखे तंज का सामना करना पड़ा. लेकिन लोक प्रेरक दीदी हेमंती ने हिम्मत नहीं हारी.

उन्होंने गांव की महिलाओं और पुरुषों को ग्राम सभा शुरू करने के लिए प्रेरित किया. स्वच्छता अभियान से इसकी शुरुआत हुई. ग्रामीण महिलाओं को समझते देर नहीं लगी कि प्रेरक दीदी उनकी जिंदगी बदलने आई है. सितंबर 2019 में ग्रामीणों को प्रेरित करने के लिए शुरू हुई यह योजना अब असर दिखाने लगी है.

जल संरक्षण कर आत्मनिर्भरता की ओर कदम
दोनों गांव में पानी एक बड़ी समस्या है. दीनदयाल ग्राम स्वावलंबन योजना के तहत जब ग्रामीणों को उनकी ताकत समझाई गई, तब ग्रामीण एकजुट होने लगे. जहां ग्रामीण कल तक नरेगा से मरेगा का नारा देते थे. अब मनरेगा के जरिए कुटाम गांव में टीसीबी (ट्रेंच कम बंड) और मेड़बंदी कर दो सौ एकड़ खेती योग्य जमीन में वर्षा जल रोकने में कामयाब हुए हैं.

वहीं अलंकेल गांव के ग्रामीणों ने करीब डेढ़ सौ एकड़ जमीन पर टीसीबी और मेड़बंदी कर ली है, जिससे गर्मी के मौसम में तरबूज की खेती होती है.

मनरेगा आयुक्त खुद ग्रामीणों को करते रहते हैं मोटिवेट
झारखंड के मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी छुट्टी के दिनों में खुद उन गांव में पहुंच जाते हैं, जहां दीनदयाल ग्राम स्वालंबन योजना चल रही है. इस बार अलंकेल गांव जाकर उन्होंने ग्रामीणों से सीधी बात की. ग्रामीणों को ग्राम सभा की ताकत समझाई.

साथ ही उन्होंने गांव की तकदीर बदलने के लिए युवाओं को आगे आने को कहा. महिलाओं को स्वयं सहायता समूह के फायदे गिनाए. उन्होंने कहा कि स्कूल और अस्पताल की बिल्डिंग बन जाने से विकास नहीं होता. सही मायने में तब विकास होगा, जब ग्रामीण खुद इसकी अहमियत समझेंगे और अपने स्तर से पहल करेंगे.

खूंटी : झारखंड में रांची से करीब 70 किलोमीटर दूर खूंटी के तोरपा ब्लॉक में सोनपुर गांव के कुटाम और अलंकेल ने देश के सामने मिसाल पेश की है. वह जिसकी तारीफ देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मन की बात में की थी.

कुटाम और अलंकेल गांव में आया बदलाव
दोनों टोलों में करीब 900 की आबादी है. सितंबर 2019 से पहले इन दोनों गांव के ज्यादातर घरों में शराब बनाई जाती थी. गांव के ही मुहाने पर शराब की दुकान सजती थी. लेकिन अब यहां के ग्रामीणों ने शराब से तौबा कर ली है. अब यहां सफाई है, खुशहाली है, मैदानों में बच्चे खेलते नजर आते हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

दोनों गांव में श्रमदान कर साफ सफाई होती है. ग्रामीणों ने जगह-जगह खुद का बनाया डस्टबिन लगाया है. सप्ताह में दो दिन ग्रामसभा होती है, जिसमें महिलाएं और पुरुषों के अलावा बच्चे भी शामिल होते हैं. महिलाएं कहती हैं कि जब से शराब पर प्रतिबंध लगा है, तब से गांव में शांति और खुशहाली आ गई है. छोटी-छोटी बात पर होने वाले झगड़े बंद हो गए हैं.

इसी साल 30 जुलाई को अलंकेल को नशा मुक्त घोषित किया गया है. पिछले साल नवंबर महीने में ही कुटाम गांव नशा मुक्त हो चुका है. दोनों गांव के ग्रामीणों ने ईटीवी भारत से अपना अनुभव साझा किया. दोनों गांव के कई लोग लॉकडाउन के दौरान लौटे हैं और अब मनरेगा से जुड़कर काम कर रहे हैं.

वहीं ग्राम सभा के निर्देश का पालन करते हुए अब कोई भी खुले में शौच के लिए नहीं जाता है. जिनके घरों में शौचालय नहीं बना है वहां के लोगों को पड़ोसी के शौचालय के इस्तेमाल की छूट है.

कभी लाखों की शराब पीते थे ग्रामीण
पुलिस फाइल में यह इलाका नक्सलियों के गढ़ के रूप में जाना जाता है. लेकिन अब इस प्रखंड के कई गांवों की आबोहवा बदलने लगी है. इसमें सबसे अहम भूमिका लोक प्रेरक दीदी निभा रही हैं. दीनदयाल ग्राम स्वावलंबन योजना के जरिए ग्रामीणों की सोच बदलने जब लोक प्रेरक दीदी गांव पहुंची तो ग्रामीणों के तीखे तंज का सामना करना पड़ा. लेकिन लोक प्रेरक दीदी हेमंती ने हिम्मत नहीं हारी.

उन्होंने गांव की महिलाओं और पुरुषों को ग्राम सभा शुरू करने के लिए प्रेरित किया. स्वच्छता अभियान से इसकी शुरुआत हुई. ग्रामीण महिलाओं को समझते देर नहीं लगी कि प्रेरक दीदी उनकी जिंदगी बदलने आई है. सितंबर 2019 में ग्रामीणों को प्रेरित करने के लिए शुरू हुई यह योजना अब असर दिखाने लगी है.

जल संरक्षण कर आत्मनिर्भरता की ओर कदम
दोनों गांव में पानी एक बड़ी समस्या है. दीनदयाल ग्राम स्वावलंबन योजना के तहत जब ग्रामीणों को उनकी ताकत समझाई गई, तब ग्रामीण एकजुट होने लगे. जहां ग्रामीण कल तक नरेगा से मरेगा का नारा देते थे. अब मनरेगा के जरिए कुटाम गांव में टीसीबी (ट्रेंच कम बंड) और मेड़बंदी कर दो सौ एकड़ खेती योग्य जमीन में वर्षा जल रोकने में कामयाब हुए हैं.

वहीं अलंकेल गांव के ग्रामीणों ने करीब डेढ़ सौ एकड़ जमीन पर टीसीबी और मेड़बंदी कर ली है, जिससे गर्मी के मौसम में तरबूज की खेती होती है.

मनरेगा आयुक्त खुद ग्रामीणों को करते रहते हैं मोटिवेट
झारखंड के मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी छुट्टी के दिनों में खुद उन गांव में पहुंच जाते हैं, जहां दीनदयाल ग्राम स्वालंबन योजना चल रही है. इस बार अलंकेल गांव जाकर उन्होंने ग्रामीणों से सीधी बात की. ग्रामीणों को ग्राम सभा की ताकत समझाई.

साथ ही उन्होंने गांव की तकदीर बदलने के लिए युवाओं को आगे आने को कहा. महिलाओं को स्वयं सहायता समूह के फायदे गिनाए. उन्होंने कहा कि स्कूल और अस्पताल की बिल्डिंग बन जाने से विकास नहीं होता. सही मायने में तब विकास होगा, जब ग्रामीण खुद इसकी अहमियत समझेंगे और अपने स्तर से पहल करेंगे.

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