हैदराबाद : हाल ही में आंध्र प्रदेश की सरकार ने विधान परिषद भंग करने का फैसला किया है. इस संदर्भ में हम आपको भारतीय संविधान में दो सदनों वाली प्रणाली के विषय में बताएंगे. हमं सब जानते हैं कि भारतीय संसद के दो भाग हैं. उच्च सदन यानी राज्यसभा और निम्न सदन यानी लोकसभा. राज्य सभा और विधान परिषद को उच्च सदन इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इन्हें कभी भंग नहीं किया जाता.
संविधान में जिस तरह से केंद्र में दो सदनों की व्यवस्था है, उसी तरह राज्यों में भी द्विसदनात्मक प्रणाली पर काम कर सकते हैं. जिस तरह केंद्र में लोकसभा काम करती है, उस तरह राज्य में विधानसभा. वहीं राज्यसभा की भांति ही राज्यों में विधान परिषद काम करती है.
इन राज्यों में है उच्च सदन की व्यवस्था
भारत के छह राज्यों में द्विसदनात्मक व्यवस्था है, यानी इन राज्यों में विधानसभा के साथ विधान परिषद भी काम करती है. भारत के द्विसदन वाले राज्य हैं- उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र. वहीं ओडिशा, राजस्थान और असम ने राज्य में विधान परिषद लाने के लिए प्रस्ताव पारित किया है.
आंध्र प्रदेश विधान परिषद का इतिहास
हाल ही में आंध्र प्रदेश सरकार की कैबिनेट ने राज्य से विधान परिषद समाप्त करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है. यदि इस प्रस्ताव को केंद्र सरकार भी पास कर देता हैं, तो यह संख्या घटकर पांच हो जाएगी. गौरतलब है कि आंध्र प्रदेश के इतिहास में यह पहली बार नहीं है जब विधान परिषद खत्म करने के लिए प्रस्ताव लाया गया हो. इससे पहले आंध्र प्रदेश सरकार ने 1985 में प्रस्ताव लाकर राज्य से विधान परिषद खत्म कर दिया था. 2007 में फिर से राज्य में विधान परिषद गठन का प्रस्ताव लाकर इसे बनाया गया.
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इससे पहले तमिलनाडु ने1986 में राज्य से विधान परिषद खत्म करने का फैसला किया था.
कैसे होता है विधान परिषद का गठन और विघटन
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 169 के तहत राज्य विधान परिषद बना भी सकते हैं और खत्म भी कर सकते हैं. राज्य से विधान परिषद खत्म करने के लिए विधानसभा में विशेष प्रस्ताव लाया जाता है. विशेष प्रस्ताव का मतलब है कि कुल सदस्यों के दो तिहाई मतों से यह प्रस्ताव हो. इसके बाद यह प्रस्ताव संसद के पास जाता है. वहां पास होने के बाद इसे राष्ट्रपति की मंजूरी की जरूरत होती है. यदि इस प्रस्ताव पर राष्ट्रपति की मुहर लग जाती है, तो यह प्रस्ताव पास हो जाता है.
विधान परिषद के लिए सदस्यों का चुनाव
विधान परिषद के एकतिहाई सदस्य राज्य के विधानसभा सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं. अन्य एकतिहाई सदस्य एक विशेष निर्वाचक मंडल द्वारा निर्वाचित होते हैं, जिसमें नगर पालिकाओं, जिला बोर्डों और अन्य स्थानीय निकायों के सदस्य शामिल होते हैं.
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इसके अलावा सदस्यों के बारहवें (1/12) भाग का निर्वाचन शिक्षकों के निर्वाचक मंडल द्वारा और एक अन्य बारहवें भाग का निर्वाचन पंजीकृत ऐसे स्नातकों के निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है, जिन्हें स्नातक पास किए हुए तीन वर्ष हो गए हों. शेष सदस्यों को विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट सेवाओं के लिए राज्यपाल द्वारा मनोनीत किया जाता है.
विधान परिषद के सदस्यों का कार्यकाल
अनुच्छेद 171 के अनुसार विधान परिषद के सदस्यों की संख्या राज्य के विधानसभा सदस्यों की कुल संख्या के एक तिहाई (1/3) से अधिक और 40 से कम नहीं होना चाहिए. विधान परिषद के सदस्यों का कार्यकाय भी राज्यसभा सांसदों की तरह छह वर्ष का होता है. विधान परिषद के एक तिहाई सदस्य प्रत्येक दो वर्ष में कार्यनिवृत्त हो जाते हैं.
विधान परिषद का सदस्य बनने के लिए कम-कम से 30 वर्ष आयु होना जरूरी है.
राज्यों में विधान परिषद की कितनी सीटें
भारत में आबादी के हिसाब से बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश है और इस राज्य में ही सबसे ज्यादा विधानसभा सीटें भी हैं. इस राज्य के विधान परिषद सदस्यों की संख्या 100 है. इसके बाद बिहार में 96, कर्नाटक में 75, महाराष्ट्र में 78, आंध्र प्रदेश में 58 और तेलंगाना में 40 सदस्य हैं.
विधान परिषद से जुड़े कुछ तथ्य
विधान परिषद का अध्यक्ष भी सभापति होता है, लेकिन यह राज्यसभा की तरह चुना नहीं जाता है, बल्कि विधान परिषद के किसी एक सदस्य को सभापति के लिए चुन लिया जाता है.
विधान परिषद के सदस्य राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के चुनाव में भाग नहीं ले सकते. विधान परिषद वित्त विधेयक को 14 दिन से ज्यादा नहीं रोक सकती. यदि रोकती है तो वह अपने आप पास हो जाता है. विधान परिषद किसी भी विधेयक को चार माह से ज्यादा नहीं रोक सकती है.
जम्मू-कश्मीर एक ऐसा राज्य था, जहां विधान परिषद में 36 सदस्य थे. यह राज्य के संविधान 50 के तहत था. फिलहाल जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश बन गया है और वहां से विधान परिषद खत्म हो गया है.