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आरसीईपी से अलग होने का फैसला भारत के लिए फायदेमंद : विशेषज्ञ

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि भारत पिछले वर्ष क्षेत्रीय विस्तृत आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) से इसलिए अलग हो गया, क्योंकि यह भारत की अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं था. विदेश मंत्री के इस फैसले का विशेषज्ञों द्वारा स्वागत किया गया है. विशेषज्ञों को कहना है कि आरसीईपी भारत के हित में नहीं है और यह चीन के नेतृत्व वाला समझौता है.

आरसीईपी
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Published : Nov 19, 2020, 4:59 PM IST

नई दिल्ली : विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बुधवार को कहा कि भारत पिछले वर्ष क्षेत्रीय विस्तृत आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) से इसलिए अलग हो गया है, क्योंकि उसमें शामिल होने से देश की अर्थव्यवस्था पर काफी प्रतिकूल प्रभाव होता.

'सेंटर फॉर यूरोपियन पॉलिसी स्टडीज' की ओर से आयोजित ऑनलाइन चर्चा में जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र में सुधार/बदलाव की पुरजोर सिफारिश करते हुए कहा कि एक या दो देशों को अपने फायदे के लिए प्रक्रिया को रोकने की इजाजत नहीं होनी चाहिए.

भारत और यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार के प्रस्तावित समझौते पर जयशंकर ने कहा कि भारत 'निष्पक्ष और संतुलित' समझौते की आशा रखता है.

आरसीईपी के संबंध में सवाल करने पर विदेश मंत्री ने कहा कि भारत समूह से इसलिए बाहर हो गया, क्योंकि उसके द्वारा रखी गई मुख्य चिंताओं का समाधान नहीं किया गया.

एशिया-प्रशांत क्षेत्र के 15 देशों द्वारा आरसीईपी समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के तीन दिन बाद जयशंकर ने यह टिप्पणी की है. आरसीईपी दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार क्षेत्र बन गया है.

चर्चा के दौरान जयशंकर ने कहा कि बड़ी बात यह है कि हमने देखा कि हमारी प्रमुख चिंताओं का समाधान नहीं किया गया है. उस वक्त फिर हमें फैसला लेना था कि प्रमुख चिंताओं का समाधान हुए बगैर आप व्यापार समझौते में शामिल होंगे या फिर उसे अपने हितों के विरुद्ध बताते हुए उससे अलग हो जाएंगे.

उन्होंने कहा कि हमने एक फैसला लिया और आज वह आपके सामने है. समझौते में शामिल होना हमारे हित में नहीं था, क्योंकि उसका तुरंत हमारी अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव होता.

विदेश मंत्री के इस बयान पर जाने माने अर्थशास्त्री डॉ. एन आर भानुमूर्ति का कहना है कि भारत अपने मुद्दों के कारण किसी भी गंभीर व्यापार में आने के लिए तैयार नहीं है. हमारे पास इस बात का कोई आकलन नहीं है कि भारत पर इस तरह के व्यापार समूहों का प्रभाव क्या होगा? विशेष रूप से भारत का पहले से ही उन देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौता और द्विपक्षीय व्यापार समझौता है, जो इस समूह में शामिल हैं.

इन से भारत को इससे कोई फायदा नहीं हुआ. इन सभी वार्ताओं पर विशेष रूप से एफटीए और बीटीए को फिर से देखने का प्रयास है.

उन्होंने कहा कि हमारे पास ऐसा कोई डेटाबेस नहीं है, जिस पर हमारी व्यापार वार्ता मेज पर हो सके. हम मार्जिन पर बहस करने की कोशिश करते हैं, लेकिन मुझे लगता है, आरसीईपी जैसे समूह में किसी भी देश के साथ गंभीर बातचीत में शामिल होने के लिए हमारे पास डेटा पर जानकारी नहीं है.

पढ़ें - चीन के पास अगला दलाई लामा चुनने का कोई धार्मिक आधार नहीं है : अमेरिका

भानुमूर्ति ने आगे कहा कि व्यापार और आर्थिक दृष्टिकोण से जब तक हम इसको ठीक से नहीं समझेंगे कि भारत कि किन क्षेत्रों में उन देशों के साथ प्रतिस्पर्धा है. तब तक भारत एक मजबूत स्थिति में बातचीत नहीं कर सकता.

उन्होंने बताया कि भारत दूसरे देशों से आयात करने के मामले में हमेशा पीछे रहा है.

वहीं दूसरी ओर इस संबंध में विदेश नीति विशेषज्ञ और इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस अशोक बेहुरिया ने कहा कि भारत आरसीईपी से इसलिए अलग हो गया है, क्योंकि भारत इसे अपने हित में नहीं मानता है और भारत का मानना है कि यह अनुचित भी है.

इसके अलावा भारत को चीनी निर्माताओं द्वारा डंपिंग की चिंता भी थी. भारत ने यह भी गणना की कि कृषि और डेयरी उत्पादों को भारत में भी डंप किया जाए, जिससे हमारे आंतरिक उत्पादकों को लाभ हो. इसीलिए भारत ने आरसीईपी से अलग होना का फैसला किया.

उन्होंने कहा कि भले ही भारत RCEP की चर्चा का हिस्सा था, लेकिन भारत इसमें शामिल नहीं हुआ, क्योंकि इसमें शामिल होने से इसका आर्थिक हित बाधित होगा.

अशोक बेहुरिया ने कहा कि भारत को लगा कि अगर वह RCEP का हिस्सा बन जाता है, तो चीन से वस्तुओं और उत्पादों का प्रवाह होगा, जो हमारे उत्पादों को बाहर कर देगा और भारत के घरेलू उद्योग को नुकसान पहुंचाएगा. इसलिए, भारत ने अपने आंतरिक घरेलू, औद्योगिक उत्पादकों के साथ खड़े होने का विकल्प चुना.

पढ़ें - उत्तर प्रदेश: पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के खिलाफ कोर्ट में शिकायत, जानिए क्यों

नीति विशेषज्ञ ने कहा कि देश में कई ऐसे आलोचक हैं, जो कह रहे हैं कि भारत को अवसर नहीं छोड़ना चाहिए था, लेकिन हमारे घरेलू आधार और उत्पादकों की सुरक्षा के लिए यह निर्णय लिया गया है. मुझे लगता है कि भारत ने जो फैसला लिया भारत के हित में है.

इसके अलावा अर्थशास्त्री आकाश जिंदल का इस मामले में कहना है कि शुरुआत में, क्षेत्रीय व्यापार समझौते अच्छी चीजें हैं, क्योंकि यह क्षेत्र की अर्थव्यवस्था की शक्ति को बढ़ाता है, लेकिन आरसीईपी के बारे में बात करते हुए, मुझे लगता है कि भारत ने इसमें शामिल नहीं होकर सही निर्णय लिया है.

उन्होंने कहा कि यह चीन के नेतृत्व वाला समझौता है और हम जानते हैं कि चीन क्या कर रहा है.

क्या हमें एक ऐसे समझौते में शामिल होना चाहिए, जो चीन के नेतृत्व में उस मूर्खता के बाद सामने आया है, जिसको हम सब ने देखा? चीन अन्य देशों से दूर हो रहा है, चाहे वह जापान हो, दक्षिण कोरिया हो या ऑस्ट्रेलिया हो? हमने देखा है कि चीन समुद्री क्षेत्र में क्या कर रहा है. चीन दूसरों देशों को अपना माल बेचने की अनुमति नहीं देकर अपने बाजार की रक्षा करने की कोशिश कर रहा है.

नई दिल्ली : विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बुधवार को कहा कि भारत पिछले वर्ष क्षेत्रीय विस्तृत आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) से इसलिए अलग हो गया है, क्योंकि उसमें शामिल होने से देश की अर्थव्यवस्था पर काफी प्रतिकूल प्रभाव होता.

'सेंटर फॉर यूरोपियन पॉलिसी स्टडीज' की ओर से आयोजित ऑनलाइन चर्चा में जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र में सुधार/बदलाव की पुरजोर सिफारिश करते हुए कहा कि एक या दो देशों को अपने फायदे के लिए प्रक्रिया को रोकने की इजाजत नहीं होनी चाहिए.

भारत और यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार के प्रस्तावित समझौते पर जयशंकर ने कहा कि भारत 'निष्पक्ष और संतुलित' समझौते की आशा रखता है.

आरसीईपी के संबंध में सवाल करने पर विदेश मंत्री ने कहा कि भारत समूह से इसलिए बाहर हो गया, क्योंकि उसके द्वारा रखी गई मुख्य चिंताओं का समाधान नहीं किया गया.

एशिया-प्रशांत क्षेत्र के 15 देशों द्वारा आरसीईपी समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के तीन दिन बाद जयशंकर ने यह टिप्पणी की है. आरसीईपी दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार क्षेत्र बन गया है.

चर्चा के दौरान जयशंकर ने कहा कि बड़ी बात यह है कि हमने देखा कि हमारी प्रमुख चिंताओं का समाधान नहीं किया गया है. उस वक्त फिर हमें फैसला लेना था कि प्रमुख चिंताओं का समाधान हुए बगैर आप व्यापार समझौते में शामिल होंगे या फिर उसे अपने हितों के विरुद्ध बताते हुए उससे अलग हो जाएंगे.

उन्होंने कहा कि हमने एक फैसला लिया और आज वह आपके सामने है. समझौते में शामिल होना हमारे हित में नहीं था, क्योंकि उसका तुरंत हमारी अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव होता.

विदेश मंत्री के इस बयान पर जाने माने अर्थशास्त्री डॉ. एन आर भानुमूर्ति का कहना है कि भारत अपने मुद्दों के कारण किसी भी गंभीर व्यापार में आने के लिए तैयार नहीं है. हमारे पास इस बात का कोई आकलन नहीं है कि भारत पर इस तरह के व्यापार समूहों का प्रभाव क्या होगा? विशेष रूप से भारत का पहले से ही उन देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौता और द्विपक्षीय व्यापार समझौता है, जो इस समूह में शामिल हैं.

इन से भारत को इससे कोई फायदा नहीं हुआ. इन सभी वार्ताओं पर विशेष रूप से एफटीए और बीटीए को फिर से देखने का प्रयास है.

उन्होंने कहा कि हमारे पास ऐसा कोई डेटाबेस नहीं है, जिस पर हमारी व्यापार वार्ता मेज पर हो सके. हम मार्जिन पर बहस करने की कोशिश करते हैं, लेकिन मुझे लगता है, आरसीईपी जैसे समूह में किसी भी देश के साथ गंभीर बातचीत में शामिल होने के लिए हमारे पास डेटा पर जानकारी नहीं है.

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भानुमूर्ति ने आगे कहा कि व्यापार और आर्थिक दृष्टिकोण से जब तक हम इसको ठीक से नहीं समझेंगे कि भारत कि किन क्षेत्रों में उन देशों के साथ प्रतिस्पर्धा है. तब तक भारत एक मजबूत स्थिति में बातचीत नहीं कर सकता.

उन्होंने बताया कि भारत दूसरे देशों से आयात करने के मामले में हमेशा पीछे रहा है.

वहीं दूसरी ओर इस संबंध में विदेश नीति विशेषज्ञ और इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस अशोक बेहुरिया ने कहा कि भारत आरसीईपी से इसलिए अलग हो गया है, क्योंकि भारत इसे अपने हित में नहीं मानता है और भारत का मानना है कि यह अनुचित भी है.

इसके अलावा भारत को चीनी निर्माताओं द्वारा डंपिंग की चिंता भी थी. भारत ने यह भी गणना की कि कृषि और डेयरी उत्पादों को भारत में भी डंप किया जाए, जिससे हमारे आंतरिक उत्पादकों को लाभ हो. इसीलिए भारत ने आरसीईपी से अलग होना का फैसला किया.

उन्होंने कहा कि भले ही भारत RCEP की चर्चा का हिस्सा था, लेकिन भारत इसमें शामिल नहीं हुआ, क्योंकि इसमें शामिल होने से इसका आर्थिक हित बाधित होगा.

अशोक बेहुरिया ने कहा कि भारत को लगा कि अगर वह RCEP का हिस्सा बन जाता है, तो चीन से वस्तुओं और उत्पादों का प्रवाह होगा, जो हमारे उत्पादों को बाहर कर देगा और भारत के घरेलू उद्योग को नुकसान पहुंचाएगा. इसलिए, भारत ने अपने आंतरिक घरेलू, औद्योगिक उत्पादकों के साथ खड़े होने का विकल्प चुना.

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नीति विशेषज्ञ ने कहा कि देश में कई ऐसे आलोचक हैं, जो कह रहे हैं कि भारत को अवसर नहीं छोड़ना चाहिए था, लेकिन हमारे घरेलू आधार और उत्पादकों की सुरक्षा के लिए यह निर्णय लिया गया है. मुझे लगता है कि भारत ने जो फैसला लिया भारत के हित में है.

इसके अलावा अर्थशास्त्री आकाश जिंदल का इस मामले में कहना है कि शुरुआत में, क्षेत्रीय व्यापार समझौते अच्छी चीजें हैं, क्योंकि यह क्षेत्र की अर्थव्यवस्था की शक्ति को बढ़ाता है, लेकिन आरसीईपी के बारे में बात करते हुए, मुझे लगता है कि भारत ने इसमें शामिल नहीं होकर सही निर्णय लिया है.

उन्होंने कहा कि यह चीन के नेतृत्व वाला समझौता है और हम जानते हैं कि चीन क्या कर रहा है.

क्या हमें एक ऐसे समझौते में शामिल होना चाहिए, जो चीन के नेतृत्व में उस मूर्खता के बाद सामने आया है, जिसको हम सब ने देखा? चीन अन्य देशों से दूर हो रहा है, चाहे वह जापान हो, दक्षिण कोरिया हो या ऑस्ट्रेलिया हो? हमने देखा है कि चीन समुद्री क्षेत्र में क्या कर रहा है. चीन दूसरों देशों को अपना माल बेचने की अनुमति नहीं देकर अपने बाजार की रक्षा करने की कोशिश कर रहा है.

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