हैदराबाद : लद्दाख के लेह शहर के एक्जिक्यूटिव कांउसलर कोंचाक स्टैनजिन ने ईटीवी भारत से बात करते हुए पैंगोंग और लद्दाख की गैलवन घाटी में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास शीतकालीन चारागाह भूमि के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा है कि दोनों देशों के बीच जारी विवाद को केवल बातचीत के माध्यम से सुलझाया जा सकता है.
मई माह की शुरुआत में दोनों देशों के बीच हुए संघर्ष के बाद दोनों देशों ने एलएसी पर अपनी अपनी सेनाएं तैनात कर दी हैं. इसके बाद से ही क्षेत्र में खानाबदोशों की गतिविधियां न केवल कम हो गई हैं, बल्कि खत्म ही हो गई हैं.
स्टैनजिन ने कहा कि हाल ही में दोनों देशों के बीच हुए संघर्ष ने अभी तक ग्रामीण क्षेत्रों में निर्माण कार्य, कृषि गतिविधियों और रोजमर्रा के कामों को प्रभावित नहीं किया है, लेकिन उन्होंने चरागाह भूमि को लेकर अपनी चिंता जाहिर की. जो सीमावर्ती क्षेत्रों के निवासियों के लिए जीवन रेखा है. उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में ज्यादातर ग्रामीण खानाबदोश हैं और पश्मीना बकरियों को पालते हैं.
स्टैनजिन ने बताया कि इलाके में लगभग सात गांव, जो वास्तविक नियंत्रण रेखा पर स्थित हैं, वह बफर क्षेत्र बन गए हैं.
उन्होंने कहा कि खानाबदोशों की आजीविका का मुख्य स्रोत उनका पशुधन और पश्मीना बकरियां हैं. उन्होंने कहा कि वे अपने मवेशियों को सर्दियों में चरागाहों में ले जाते हैं , जहां पिछले दो सप्ताह से विवाद चल रहा है.
स्टैनजिन ने कहा कि इस क्षेत्र में सेना की गश्त एक नियमित मामला था और कभी-कभी कॉर्डन एंड सर्च ऑपरेशन (CASO ) एक या एक घंटे से अधिक चलता है, लेकिन पिछले महीने गांवो में जो कॉर्डन किया गया था. वह सबसे लंबा था.
उन्होंने कहा कि चीनी सेना ने हमारे क्षेत्र में प्रवेश किया है और अभी तक पीछे नहीं हटा है. इस दौरान शायद ही गालवान घाटी में नागरिकों ने कोई गतिविधि की हो.
स्टैनजिन का मानना है कि केवल वार्ता से ही दोनों देशों के बीच विवाद को हल किया जा सकता है.
उन्होंने कहा कि लद्दाख क्षेत्र में दोनों देशों के बीच कोई तय सीमा रेखा नहीं है, जो वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर रहने वाले लोगों के लिए सुरक्षित नहीं है. इन लोगों की आजीविका का एकमात्र स्रोत चारागाह हैं, जिन पर चीनी सेना कब्जा करने की कोशिश करती है.
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उन्होंने कहा कि LAC के चारागाहों पर दावा बदलते रहते हैं. कभी भारत उन पर दावा करता है, तो कभी इन पर चीन अपना दावा करता है.
स्टैनजिन ने कहा कि जब तक कि दोनों देशों के बीच स्पष्ट सीमांकन तय नहीं हो जाती है, संघर्ष कभी हल नहीं हो सकता.
उनके के अनुसार, एलएसी पर जो कुछ भी हो रहा है वह गांवों से दूर हो रहा है. इससे मुख्य रूप से सात गांव सीधे तौर पर प्रभावित होंगे और अगर संघर्ष सर्दियों तक चलता है, तो चीन के साथ लद्दाख सीमा साझा करने वाले निवासियों के जीवन पर इसका गहरा प्रभाव पड़ेगा.